लखनऊ में प्रधानमंत्री जनऔषधि केंद्रों पर ताला, बाजार में दस गुना महंगा बिक रहा सेनेटरी नैपकिन
इन पर बाजार दर से 50 से 90 फीसद तक सस्ती दवा का दावा किया गया। मगर औषधि केंद्रों पर समय से दवा आपूर्ति चुनौती बनी हुई है। कारण राज्य में जनऔषधि को वेयर हाउस का न होना है।
शहर में जनऔषधि केंद्रों की सेवाएं लड़खड़ाई हुई हैं। यहां कई केंद्रों पर ताला लटक रहा है। ऐसे में सस्ती दवाओं की किल्लत है। वहीं महिलाएं बाजार से दस गुना तक महंगा सेनेटरी नैपकिन खरीदने को मजबूर हैं। राजधानी में 72 प्रधानमंत्री जनऔषधि केंद्र खोले गए। इन पर बाजार दर से 50 से 90 फीसद तक सस्ती दवा का दावा किया गया। मगर, औषधि केंद्रों पर समय से दवा आपूर्ति चुनौती बनी हुई है। कारण, राज्य में जनऔषधि को वेयर हाउस का न होना है। वहीं सरकारी अस्पतालों में खुले केंद्र अव्यवस्था के भेंट चढ़ गए। यहां सरकार व निजी वेंडर में कागजी दांव-पेंच चल रहा। लिहाजा, 12 सरकारी अस्पतालों में खुले जनऔषिध केंद्रों पर नवंबर अंत से ताला लग गया है। लिहाजा, हजारों मरीज रोजाना सस्ती दवा के लिए भटक रहे हैं। ठंड में हृदय, सांस, गठिया रोगी बढ़ गए हैं। मगर, वह बाजार से कई गुना महंगी दवा खरीदने को मजबूर हैं। वहीं जनऔषधि केंद्रों के मुकाबले किशोरी, महिलाएं मेडिकल स्टोर से दस गुना तक महंगा सेनेटरी नैपकिन खरीद रही हैं।
एक रुपये का पीस, बाहर दस रुपये तक
जनऔषधि केंद्रों पर सेनेटरी नैपकिन के एक पैकेट की कीमत चार रुपये है। इसमें चार पीस होते हैं। ऐसे में प्रति पीस एक रुपये ग्राहक को पड़ा। वहीं मेडिकल स्टोर पर चार से लेकर 10 रुपये तक प्रति पीस सेनेटरी नैपकिन बेचा जा रहा है। यहां के प्राइवेट व सरकारी जनऔषधि केंद्रों पर हर माह औसतन 30 लाख सेनेटरी नैपकिन की खपत थी। इसमें 20 लाख के करीब पीस 60 खुले निजी जनऔषधि केंद्रों पर बिक जाते थे। मगर, उपलब्धता की कमी से इसमें भी गिरावट आ गई है।
इन सरकारी अस्पतालों के केंद्रों पर पड़े ताले
केजीएमयू, बलरामपुर अस्पताल, सिविल अस्पताल, ठाकुरगंज संयुक्त अस्पताल, आरएलबी अस्पताल, लोकबंधु राजनारायण अस्पताल, बीआरडी अस्पताल, आरएसएम अस्पताल के जनऔषधि केंद्रों को बंद करने का आदेश डेढ़ माह पहले दिया गया था। वहीं मोहनलाल गंज व गोसाईगंज सीएचसी का भी जनऔषधि केंद्र बंद है।
जनऔषधि केंद्रों पर दवा आपूर्ति केंद्र सरकार के उपक्रम ब्यूराे ऑफ फार्मास्युटिकल ऑफ इंडिया ( बीपीपीआइ) करती है। दिसंबर में ही केंद्र से शहर में टीम आई। इस दौरान सरकारी अस्पतालों में बंद जनऔषधि केंद्रों का निरीक्षण किया। इसके बाद नए वर्ष में पहले चार सरकारी अस्पतालों में खुद स्टोर संचालन का दावा किया। मगर, अभी शुरू नहीं हुए हैं। राजधानी के सरकारी व निजी केंद्रों पर हर माह 90 लाख के करीब दवा बिक्री होती रही।
दवा समेत 1400 उत्पादों का दावा
प्रधानमंत्री जनऔषधि योजना वर्ष 2015 में शुरू हुई थी। इस दौरान आठ सौ दवा व अन्य उत्पाद मुहैया कराने का दावा किया गया था। इसमें 650 दवाएं व 150 सर्जिकल सामान शामिल किया गया। वहीं वर्ष 2020 से पेटेंट से बाहर आईं नई दवाएं शामिल की गईं। इसमें एक हजार दवाएं व चार सौ सर्जिकल व अन्य समान लिस्ट में शामिल किया गया। मगर, प्राइवेट पर भी सभी दवाएं व उत्पाद समय पर उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं।
'सरकारी अस्पतालों में बंद जनऔषधि केंद्र जल्द शुरू हो जाएंगे। इसको लेकर प्रयास जारी हैं। वहीं प्राइवेट जनऔषधि केंद्रों पर सेनेटरी नैपकिन व दवा के जो भी ऑर्डर किए जाते हैं, उनकी तत्काल आपूर्ति सुनि िश्चत की जाती है।' -नितिन सिंह, नोडल ऑफीसर-जनऔषधि केंद्र लखनऊ