जीवन की राह : साहित्य के रास्ते शांति की तलाश कर रहा है बागपत जेल में बंद एक कैदी
बागपत जेल से ‘व्योमकेश दरवेश’ पढ़कर लिखा साहित्यकार विश्वनाथ प्रसाद त्रिपाठी को पत्र
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बागपत जिला जेल के बैरक नंबर तीन में एक ऐसा भी बंदी है, जो अपने सिरहाने रामधारी सिंह दिनकर की कुरुक्षेत्र रखता है, तो हाथ में व्योमकेश दरवेश की प्रति। पिछले चार साल से हत्या के आरोप में वह जेल में बंद है, लेकिन साहित्य की पुस्तकों में अपने जीवन की शांति तलाशता है।
ऐसे समय में, जब हाथ से चिट्ठी लिखना लगभग चलन से बाहर हो गया है और साहित्य में पठनीयता के संकट पर बहस होती रहती है, तब एक कैदी अगर कोई
पुस्तक पढ़कर संबंधित लेखक को पाठकीय पत्र लिखे, तो उसके साहित्य प्रेम को समझा जा सकता है। पिछले दिनों ऐसा ही एक पत्र वरिष्ठ साहित्यकार विश्वनाथ प्रसाद त्रिपाठी को बागपत जेल से 26 वर्षीय रोहन धामा नामक कैदी ने उनकी पुस्तक ‘व्योमकेश दरवेश’ (हजारी प्रसाद द्विवेदी की जीवनी) पढ़कर लिखा।
अपने पत्र में वह लिखता है कि आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का व्यक्तित्व इस कृति में जीवंत हो उठा है। श्रद्धेय आचार्य जी के जीवन-चरित्र के साथ-साथ तत्कालीन साहित्य-जगत, देशकाल व हिंदी संसार भी इस पुस्तक में अभिलेख के रूप में दर्ज हो गया है।
यूपीएससी की तैयारी कर रहा था
कभी साहित्य की सेवा का सपना देखने वाला यह युवा कैदी एमए में दाखिला लेकर यूपीएससी की तैयारी कर रहा था, लेकिन नियति ने उसे जेल पहुंचा दिया। वह अपने पत्र में लिखता है, कि ‘निद्राहीन जागती रातों’ में साहित्यिक पुस्तकों को उलट-पलट कर उनमें से कुछ तत्व खोजता रहता है और मन में उठ रहे विचारों के वेग को पृष्ठों पर उतार कर शांति हासिल करता है। व्योमकेश दरवेश के लेखक विश्वनाथ प्रसाद त्रिपाठी का कहना है कि उसका यह प्यारा पत्र पाकर मैं अभिभूत हूं।