विवादित ढांचा ध्वंस केस में CBI स्पेशल कोर्ट के फैसले को चुनौती
अयोध्या के विवादित ढांचा ध्वंस करने के मामले में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट के सभी आरोपियों को बरी करने के फैसले के खिलाफ शुक्रवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच मे संशोधन याचिका दायर की गई है।
रामनगरी अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण कार्य शुरू होने के बीच में अयोध्या के विवादित ढांचा ध्वंस मामले में सीबीआई स्पेशल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में क्रिमिनल रिवीजन पिटीशन दाखिल की गई है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में रिवीजन याचिका दायर कर अयोध्या के विवादित ढांचा विध्वंस मामले में पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी, यूपी के तत्कालीन सीएम कल्याण सिंह, भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनेाहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार, ऋतंभरा सहित 32 अभियुक्तों केा बरी करने के सीबीआई के विशेष अदालत के 30 सितम्बर 2020 के फैसले केा चुनौती दी गयी है।
यह याचिका अयेाध्या निवासी 74 वर्षीय हाजी मुहम्मद अहमद व 81 वर्षीय सैयद अखलाक अहमद ने दायर की है। याचिका हाई कोर्ट में शुक्रवार केा दाखिल की गयी है जो कि रोटोशन के अनुसार सुनवायी के लिए सूचीबद्ध की जायेगी। याचिका में दांनों ने कहा है कि वह इस केस में अभियुक्तों के खिलाफ गवाह थे और विवादित ढांचा विघ्वंस के बाद वे पीडि़त भी हुए थे। उनके वकील जफरयाब जिलानी ने बताया कि 30 सितम्बर 2020 के फैसले के खिलाफ सीबीआई ने आज तक कोई अपील दाखिल की। लिहाजा रिवीजनकर्ताओं को आगे आना पड़ रहा है क्योंकि विचारण अदालत में फैसले में कई खामियां हैं।
अयोध्या में सैकड़ों से अधिक की संख्या में कारसेवकों ने छह दिसम्बर 1992 को विवादित ढांचे का विध्वंस कर दिया था। जिसके बाद इस प्रकरण में कई प्राथमिकियां दर्ज की गयी थी। इस प्रकरण की जाचं सीबीआई ने पूरी करके आरोप पत्र प्रेषित किया था। जिसके बाद लंबी कानूनी लड़ाई के बाद 30 सितम्बर 2020 को सीबीआई के विशेष जज एस के यादव ने सभी जीवित 32 अभियुक्तों केा बरी कर दिया था। इस दौरान विचारण जज ने अपने विस्तृत फैसले में पाया था कि रिकार्ड पर सीबीआइ ने अखबार की कटिंग और आडियों व वीडियों क्लीपिंग के अलावा कोई ठोस सबूत एकत्र नहीं किया था। विचारण के दौरान सीबीआई ने इन दस्तावेजी साक्ष्यों के मूल कोर्ट में पेश कर साबित नहीं कराये। इसके साथ ही कोर्ट ने सीबीआई के ढाई सौ से अधिक गवाहों की गवाही का सिलसिलेवार जिक्र करते हुए पाया था कि अभियुक्तों ने कारसेवकों को नहीं भड़काया था। कोर्ट ने गवाही में यह तक आया है कि कुछ अभियुक्त तो कारसेवकों को समझा रहे थे कि घटनास्थल की ओर न जाएं।
रिवीजनकर्ताअेां ने अपनी याचिका में कहा है कि विचारण अदालत ने उसके सामने पेश सबूतों को ठीक से नहीं परखा और अभियुक्तों केा रिहा करने में गलती की। उन्होंने कहा कि विचारण अदालत का फैसला तर्क संगत नहीं है। यहां तक कि उन्हेंं अपने वकील करने तक की अनुमति नहीं दी गयी। अब रिवीजनकर्ताओं ने मांग की है कि विचारण अदालत से केस की पूरी पत्रावल मंगाकर 30 सितम्बर 2020 के फैसले केा खारिज कर और सभी अभियुक्तों को देाषी करार देकर उन्हेंं उचित सजा सुनाए।