संकट : नहीं मिल रहा पोस्ट कोविड से छुटकारा, मासूम बच्चे तक परेशान
बैचेनी के साथ पेट की बीमारियों से परेशान मासूम जिंदगियां कोरोना से ठीक होने के बाद बढ़ रही बैचेनी, न लग रही भूख, न चेहरे पर दिखी मुस्कराहट आईसीयू में बच्चे भी भर्ती, फेफड़े में फैला कोरोना
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8 वर्षीय मुस्कान दो महीने पहले कोरोना संक्रमित हुई थी। पूरा परिवार संक्रमण की चपेट में आने के बाद मुस्कान की तबियत बिगड़ी तो उसे सरोज अस्पताल में भर्ती कराया। यहां एक वक्त ऐसा भी आया कि पूरा परिवार स्वस्थ हो गया लेकिन मुस्कान आईसीयू तक पहुंच गई थी।
काफी प्रयासों के बाद मुस्कान कोरोना को हराने में कामयाब रही लेकिन उसकी मां बबिता परमार बताती हैं कि कोरोना से ठीक होने के बाद भी मुस्कान के चेहरे पर मुस्कराहट नहीं है। उसे न भूख लगती है और न ही खेलने में दिल लगता है। दिन भर या तो चुप रहती है या फिर चिड़चिड़ापन उस पर हावी रहता है। अभी मुस्कान का इलाज दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में डॉ. धीरेन की निगरानी में चल रहा है।
डॉ. धीरेन ने बताया कि यह सिर्फ मुस्कान की कहानी नहीं है। दिल्ली में इनदिनों सैंकड़ों बच्चे हैं जो कोरोना संक्रमण की चपेट में आकर स्वस्थ हो गए लेकिन व्यस्कों की तरह पोस्ट कोविड स्थिति में इन्हें भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। बच्चों के साथ यह परेशानी मुसीबत ज्यादा इसलिए भी होती है क्योंकि ये मासूम अपने दर्द के बारे में अच्छे से बता भी नहीं पाते।
ठीक इसी तरह नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के वरिष्ठ बालरोग विशेषज्ञ डॉ. शांतनु का कहना है कि पिछले महीने से ओपीडी शुरू होने के बाद उनके पास सबसे ज्यादा मामले पोस्ट कोविड से जुड़े ही आ रहे हैं। वह भी काफी आश्चर्यचकित हैं क्योंकि कई बच्चे बाहरी रुप से एकदम स्वस्थ दिखाई दे रहे हैं लेकिन अंदर ही अंदर उनके मन में बहुत कुछ चल रहा है। डर और चिड़चिड़ापन इनकी दिनचर्या से पता चलता है। ऐसे बच्चों को दवा नहीं, बल्कि बेहतर निगरानी और देखभाल की जरूरत है।
हाल ही में सामने आए दिल्ली एम्स के अध्ययन के अनुसार कोरोना से ठीक होने के बाद भी लोगों में लंबे समय तक पोस्ट कोविड लक्षण देखने को मिल रहे हैं। मेडिकल जर्नल मेडरेक्सिव में प्रकाशित इस अध्ययन में 91 दिन तक 1200 से अधिक मरीजों का फालोअप लेने के बाद डॉक्टरों ने यह निष्कर्ष निकाला था।
इसके अलावा एम्स की बालरोग विशेषज्ञ डॉ. शेफाली गुलाटी ने एक अध्ययन के जरिए निष्कर्ष निकाला है कि 41.7 फीसदी बच्चे अवसाद का शिकार हुए हैं। जबकि 79.4 फीसदी बच्चों को महामारी के दौरान काफी नकारात्मक असर पड़ा है। डॉ. गुलाटी का कहना है कि कोरोना से ठीक होने के बाद पोस्ट कोविड से बच्चे जूझ रहे हैं लेकिन काफी बच्चे ऐसे भी हैं जिन्हें कोरोना नहीं हुआ लेकिन मानसिक तौर पर वह काफी परेशान हैं।