चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने वुहान की त्रासदी को अपने फायदे में बदल दिया
महामारी के बाद सरकार के खिलाफ पैदा हुआ लोगों का आक्रोश एक साल बाद गायब। चीन की नियंत्रित इंटरनेट मीडिया पर कोरोना वायरस को लेकर कोई चर्चा तक नहीं। एक साल बाद चीन सरकार ने विद्रोहियों की आवाजों को पूरी तरह से दबा दिया है।
एक साल पहले जनवरी के इसी हफ्ते में चीन की कम्युनिस्ट सरकार सदी के सबसे बड़े संकट के मुहाने पर खड़ी थी। कोरोना वायरस ने चीन के वुहान शहर को पूरी तरह ठप कर दिया था। चीन सरकार इस महामारी को दबाने से ज्यादा दुनिया की नजरों से इसे छिपाने में लगी थी। इस महामारी को लेकर चीन में इंटरनेट मीडिया पर भारी बवाल छिड़ गया था। दशकों बाद चीन की सरकार को लोगों के भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा था।
वैचारिक रूप से दशकों तक दबाए गए और सख्त सेंसरशिप में रहने वाले चीन के उदारवाली लोग खुलकर अपनी बातें रखने लगे थे। ऐसा लगने लगा था कि चीन सरकार की प्रोपेगंडा मशीनरी कोरोना वायरस को लेकर लोगों के मन में सरकार के प्रति पैदा हुई नाराजगी को दूर करने में विफल रहेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
एक साल बाद चीन सरकार ने विद्रोहियों की आवाजों को पूरी तरह से दबा दिया है। इंटरनेट मीडिया पर कोरोना वायरस को लेकर किसी तरह की बहस नहीं चल रही है। महामारी से निपटने में चीन सरकार की विफलता को लेकर जो अवधारणा बनी थी, वह पूरी तरह बदल गई है। शी चिनफिंग सरकार ने वुहान की त्रासदी को अपने फायदे में बदल दिया है। दमन के बल पर वह अपने ही लोगों समझाने में सफल रही है कि उसने बहुत ही सफल तरीके से इस महामारी को दबा दिया।
वुहान में कोरोना वायरस के बारे में सबसे पहले लोगों को आगाह करने वाले डॉ. ली वेनलियांग को सरकारी मशीनरी द्वारा पकड़ने और कुछ दिनों पर उनकी इस महामारी के चलते हुई मौत ने चीन के युवाओं में सरकार के प्रति आक्रोश पैदा कर दिया था। एक साल बाद युवाओं का आक्रोश भी न जाने कहां गायब हो गया है। चीन में इस महामारी की वजह से अपनी जान गंवाने वालों को श्रद्धांजलि देने के बजाय लोग एक अभिनेत्री और उसके सरोगेट बच्चों को लेकर पैदा हुए विवाद में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं।