हैरानी: 25 लाख से कम की हेराफेरी को घपला नहीं मानते यूपी के पंचायती राज मंत्री चौधरी भूपेंद्र सिंह, सबूत है उनका ये पत्र

पंचायती राज मंत्री अपने ही पत्र में एक तरफ ग्राम निधि के खाते से धनराशि के गबन की बात लिखते हैं, वहीं दूसरी तरफ उन्होंने ऐसी ग्राम पंचायतों में जांच कराने का आदेश दिया है, जहां 25 लाख से अधिक धनराशि खर्च की गई है। इससे साफ है कि 25 लाख से कम की धनराशि निकालने के मामलों को मंत्री जी जांच के दायरे में ही नहीं मानते।

हैरानी: 25 लाख से कम की हेराफेरी को घपला नहीं मानते यूपी के पंचायती राज मंत्री चौधरी भूपेंद्र सिंह, सबूत है उनका ये पत्र

विस्तार
उत्तर प्रदेश के पंचायती राज मंत्री चौधरी भूपेंद्र सिंह ग्राम पंचायतों में प्रशासकों के कार्यकाल में की गई गड़बड़ियों में 25 लाख से नीचे के खर्च में हुई हेराफेरी को घपला नहीं मानते। पंचायती राज मंत्री के दो जून को अपर मुख्य सचिव को लिखे गए पत्र से यह बात साफ हो रही है।


पत्र में लिखा है कि प्रशासकों द्वारा ग्राम निधि की धनराशि का भारी मात्रा में फर्जी भुगतान करके दुरुपयोग किया गया है। इसके बाद भी मंत्री ने एक महीने में ऐसी ग्राम पंचायतों की जांच करने को कहा है, जहां 25 लाख से अधिक की धनराशि खर्च की गई है। इससे मंत्री की भूमिका में जांच के नाम पर औपचारिकता और जांच में गड़बड़ियां मिलने के बाद भी 15 दिन का समय देने वाले जिले के डीपीआरओ की लीपापोती को मजबूती मिलती प्रतीत हो रही है।


याद रहे कि अमर उजाला को विभागीय सूत्रों से जानकारी मिली थी कि जिले की 646 गांवों में पंचायत प्रधानों का कार्यकाल पूरा होने के बाद 12 करोड़ रुपये के विकास कार्य दर्शा दिए गए। वहीं, 11 करोड़ की अदायगी भी कर दी गई।
इस पर अनेक गांव में संबंधित कार्य न किए जाने तथा अनेक में काम अधूरा छोड़ने संबंधी खबर छपी तो पंचायती राज मंत्री ने अपर मुख्य सचिव को पत्र लिखकर जांच कराने को कहा। 

हैरानी की बात यह है कि पंचायती राज मंत्री अपने ही पत्र में एक तरफ ग्राम निधि के खाते से धनराशि के गबन की बात लिखते हैं, वहीं दूसरी तरफ उन्होंने ऐसी ग्राम पंचायतों में जांच कराने का आदेश दिया है, जहां 25 लाख से अधिक धनराशि खर्च की गई है। इससे साफ है कि 25 लाख से कम की धनराशि निकालने के मामलों को मंत्री जी जांच के दायरे में ही नहीं मानते। इतना ही नहीं पंचायती राज मंत्री ने जांच और रिपोर्ट के लिए एक महीने का समय देकर मनमानी करने वालों को सब कुछ ठीक करने का अप्रत्यक्ष मौका भी दे दिया है। वहीं घपलेबाजी पकड़ने के बाद जिला पंचायत राज अधिकारी राजेश कुमार ने भी कोई कार्रवाई करने के बजाय पंचायत सचिवों को 15 दिन का समय देकर ऐसा मौका दे दिया था। इससे ग्राम पंचायतों में गबन और घपलेबाजी के बाद लीपापोती कर स्थितियां सुधारने की कवायद शुरू हो चुकी है।

ग्राम पंचायतों में प्रशासकों के कार्यकाल में ग्राम निधि की धनराशि का दुरुपयोग करने की जानकारी मिली है। 25 लाख से अधिक की धनराशि खर्च करने वाली ग्राम पंचायतों की जांच की बात इसलिए लिख दी है, क्योंकि कुछ ग्राम पंचायतों में पंचायत भवन, शौचालय निर्माण, रोजगार कल्याण और कोरोना संक्रमण में सैनिटाइजर, मास्क की खरीद आदि पर खर्चा किया गया था, लेकिन यदि कहीं बिना काम कराए धनराशि निकाल ली गई है तो वह गबन की श्रेणी में माना जाएगा और संबंधित के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराकर सख्त कार्रवाई की जाएगी।  - चौ. भूपेंद्र सिंह, पंचायतीराज मंत्री
 
जांच कराने में बदल गया मंत्री जी का दावा
पंचायती राज विभाग में प्रशासकों के समय में हुए भुगतान में फर्जीवाड़े का खेल जानने के दावे और हकीकत में उठाए गए कदम में जमीन आसमान का अंतर दिखाई दे रहा है। खेल के खुलासे के समय अमर उजाला से बातचीत में विभागीय मंत्री ने इस पूरे मामले की न केवल निष्पक्ष जांच की बात कही थी बल्कि एफआईआर दर्ज कराकर सीधे वसूली कराने का दावा किया था। जबकि अपर मुख्य सचिव को अगले ही दिन जारी किए गए पत्र में उनका रुख पूरी तरह अलग था। ये दोनों बातें साफ कर रही हैं कि उनकी ओर से भी इस मामले को गंभीरता से न लेकर कड़ी कार्रवाई से बचा जा  रहा है।

प्रशासकों के समय में 12 करोड़ के काम दिखाकर फर्जीवाड़ा करने की खबर छपते ही विभाग में हलचल हुई और आनन-फानन पूरे मामले की जांच शुरू कर दी गई। पंचायती राज अधिकारियों ने मौके पर पहुंचकर निर्माण कार्यों की स्थिति देखी तो कई जगह निर्माण कार्य अधूरे पाए गए, जबकि कई स्थान ऐसे भी थे जहां निर्माण कार्य हुआ ही नहीं और धनराशि उस काम के नाम पर निकाल ली गई। अब ऐसी जगहों पर प्रशासकों पर कार्रवाई करने के स्थान पर उन्हें निर्माण कार्य कराने के लिए 15 दिन की मोहलत दे दी गई। पंचायती राज मंत्री चौधरी भूपेंद्र सिंह भी अपने दावे से पलटते दिखाई दिए। पूरे मामले की निष्पक्ष जांच की बात कहने के बाद उन्होंने केवल 25 लाख से अधिक खर्च वाली ग्राम पंचायतों की जांच के आदेश दिए। जबकि इस पूरे प्रकरण में प्रशासकों की अवधि में अचानक हुए 12 करोड़ के कार्यों की जांच जरूरी थी। कैबिनेट मंत्री ने भी इस पूरी जांच के लिए एक माह का समय दे दिया है। ये बातें विभागीय मिलीभगत की ओर इशारा कर रही हैं। लेकिन अभी सब कुछ जांच रिपोर्ट और कार्रवाई पर निर्भर है कि वह कितनी निष्पक्ष और कठोर होती है।

पूरे मामले की जांच होगी, दोषियों से होगी वसूली
पंचायती राज मंत्री चौधरी भूपेंद्र सिंह ने एक जून को अमर उजाला को दिए बयान में कहा था कि प्रदेश सरकार की प्राथमिकताओं में सिर्फ सामुदायिक शौचालय और बहुउद्देश्यीय पंचायत भवन का निर्माण था। जब प्रशासक नियुक्त हुए, तब वे सिर्फ यही काम करा सकते थे। इन दो कामों के अलावा अन्य कामों पर प्रतिबंध था। अन्य कामों के भुगतान भी नहीं होने थे। आचार संहिता लागू होने के बाद कोई नया कार्य नहीं किया जा सकता, लेकिन अगर अन्य भुगतान हुए हैं तो जांच कराई जाएगी और सरकार के निर्देश के विरुद्ध कार्य करने वालों पर एफआईआर दर्ज कराई जाएगी और वसूली होगी।

25 लाख से ज्यादा के खर्च की जांच रिपोर्ट दें
दो जून को पंचायती राज मंत्री चौधरी भूपेंद्र सिंह ने अपर मुख्य सचिव को लिखे पत्र में कहा है कि मेरे संज्ञान में लाया गया है कि ग्राम पंचायतों में प्रशासकों द्वारा शासन के निर्देश के बाद अनेक ग्राम पंचायतों में पंचायत भवन एवं सामुदायिक शौचालय का भुगतान लंबित रखते हुए अन्य कार्यों में धनराशि का मनमाने ढंग से दुरुपयोग किया गया है। उन सभी ग्राम पंचायतों की जांच तकनीकी टीम द्वारा कराकर एक महीने में आख्या मुझे उपलब्ध कराएं। जिनमें प्रशासक की भुगतान अवधि में 25 लाख रुपये से अधिक की धनराशि खर्च की गई हो। 

अधिकारी और मंत्री दोनों ने दिया लीपापोती का मौका
अनेक ग्राम पंचायतों में विकास कार्य कराए बिना धन निकाला गया, जबकि कुछ में निर्माण शुरू करने की औपचारिकता निभाई गई। यह बात जिला पंचायतराज अधिकारी की जांच में साफ हो चुकी है। इसके बाद भी विकास कार्यों की जांच का जो आदेश पंचायतीराज मंत्री ने दिया है, उसमें एक महीने का समय दिया है। पत्र को देखने से ही औपचारिकता प्रतीत हो रही है। वहीं मंत्री के पत्र के क्रम में ही जिला पंचायतराज अधिकारी निर्माण कार्य न कराए जाने के बाद भी तत्कालीन प्रशासकों को 15 दिन का समय देकर चले आए, जबकि अब प्रधानों का कार्यकाल शुरू हो चुका है। ऐसे में प्रशासकों के कार्यकाल में हुई घपलेबाजी की सच्चाई सामने आ पाएगी या फिर सिर्फ लीपापोती हो जाएगी। इस बाबत जांच पूरी होने तक कुछ भी कह पाना संभव नहीं है।
भ्रष्टाचार से पुराना नाता रहा है पंचायती राज विभाग का
ग्राम पंचायतों में प्रशासकों द्वारा ग्राम निधि की हेराफेरी का मामला पहली बार किया गया भ्रष्टाचार नहीं है। पंचायती राज विभाग में इसके अलावा भी अनेक बार भ्रष्टाचार के मामले सामने आते रहे हैं। स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण के अंतर्गत शौचालय निर्माण में कई ग्राम पंचायतों में प्रधान और सचिवों के खिलाफ पूर्व जिलाधिकारी द्वारा एफआईआर दर्ज कराई गई थी, जिसमें कई को जेल भी जाना पड़ा था। इसके अलावा कोरोना काल के प्रथम चरण में ग्राम पंचायतों में पूरे जिले में एक ही फर्म से पीपीई किट, मास्क, सेनिटाइजर और ऑक्सीमीटर आदि बाजार से कई गुना कीमत पर खरीदने के आरोप भी लगे थे, लेकिन उस पूरे मामले को भी दबा दिया गया था।

मुरादाबाद में तैनात वर्तमान डीपीआरओ का जनपद में कार्य काल लगभग चार वर्ष का हो चुका है और हैरत की बात यह है कि प्रशासकों द्वारा चुनाव आचार संहिता के दौरान इतनी बड़ी धनराशि का आहरण और लगातार भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद शासकीय धन का गबन करने वालों के विरुद्ध कार्रवाई के बजाय कार्य पूर्ण कराने के लिए समय दिया जाना। इसमें बड़े अधिकारियों की भी संलिप्तता के संकेत मिल रहे हैं।

पंचायतीराज मंत्री से सीधी बात
प्रश्न: प्रशासकों के गबन मामले की निष्पक्ष जांच नहीं, बल्कि पर्दा डालने की कोशिश कर रहे हैं?
मंत्रीजी: जिले में जिलाधिकारी, सीडीओ और डीपीआरओ को निर्देशित किया है कि जिन ग्राम सभाओं में 25 लाख से अधिक की धनराशि का आहरण हुआ है, उसकी विशेष रूप से जांच कराई जाए। हम मानते हैं कि 25 लाख रुपये तक का खर्चा, सरकार की प्राथमिकता वाली योजनाओं जैसे सामुदायिक शौचालय, बहुउद्देश्यीय पंचायत भवन और कोरोना संक्रमण के कारण सफाई अभियान और सैनिटाइजेशन पर खर्च हुआ है।

प्रश्न: 25 लाख से कम धनराशि निकालने के बाद भी काम नहीं कराया तो क्या ये घपलेबाजी नहीं है?
मंत्रीजी: यदि काम नहीं कराया है तो यह घपलेबाजी है। ये भ्रष्टाचार है। इसे गबन माना जाएगा और कार्रवाई की जाएगी।

प्रश्न: फिर 25 लाख के ऊपर जांच कराने के लिए क्यों कहा? इससे नीचे की धनराशि की जांच क्यों नहीं?
मंत्रीजी: चूंकि प्रधानों का कार्यकाल 25 दिसंबर को समाप्त हो गया था। प्रशासकों को गरीब कल्याण योजना के तहत, सामुदायिक शौचालय, बहुउद्देश्यीय पंचायत भवन और कोरोना संक्रमण के कारण फाॅगिंग आदि पर काफी खर्च करना पड़ा है। जिसमें 25 लाख तक खर्च हो जाएगा, इसलिए 25 लाख से अधिक की धनराशि की जांच करा रहे हैं। फिर सभी कामों की भी जांच कराऊंगा।

प्रश्न: जिला पंचायत राज अधिकारी गांवों में निरीक्षण करने गए और 15 दिन का समय देकर चले आए। क्या कार्रवाई नहीं होनी चाहिए थी?
मंत्रीजी: कार्रवाई होगी, लेकिन कुछ काम ऐसे होंगे, जो चल रहे होंगे, उन्हें पूरा करने को कहा होगा। फिलहाल  एक भी पैसे का भ्रष्टाचार है तो अक्षम्य अपराध है। इसमें एफआईआर कराई जाएगी और वसूली भी होगी। सौ फीसदी ऐसे मामले में कार्रवाई होगी।

प्रश्न: अमर उजाला ने छह दिन में अलग-अलग ब्लाॅकों के छह ग्राम पंचायतों में पड़ताल की, जिसमें लाखों की धनराशि निकाल ली गई। निर्माण कार्य नहीं कराए गए। क्या ये भ्रष्टाचार नहीं है?
मंत्रीजी: ये भ्रष्टाचार है। ग्राम पंचायतों में कराए गए सभी कार्यों की भी जांच कराऊंगा और जहां धन निकालने के बाद भी काम नहीं कराए गए हैं, वहां के तत्कालीन प्रशासक पर रिपोर्ट दर्ज कराई जाएगी। साथ ही धनराशि की वसूली भी होगी।

प्रश्न: चर्चा है कि आप प्रशासकों और अधिकारियों को बचा रहे हैं?
मंत्री जी: मेरा कोई परिवार का व्यक्ति, सगा संबंधी भी किसी विभाग में फोन नहीं करता। यदि कोई मंत्री के बेटे, भाई या रिश्तेदार-सहयोगी भी किसी अधिकारी को फोन करने की बात साबित कर दे तो खुद को उस श्रेणी में मान लूंगा। यह बात वही लोग कहते हैं, जो खुद ऐसा करते रहे हैं।