Jharkhand: 'टॉफी जैसे दिन हों भाई, चॉकलेट जैसी रातें'; पढ़ें झगड़ा टॉफी का

Jharkhand Political Update Raghubar Das Saryu Roy झारखंड की राजनीति में झगड़ा टॉफी का है। किसी को मिली किसी को नहीं। अब इसमें रुठना तो जायज है। रुठें न तो क्या करें। आखिर दिल तो बच्चा है जी।

Jharkhand: 'टॉफी जैसे दिन हों भाई, चॉकलेट जैसी रातें'; पढ़ें झगड़ा टॉफी का

ये चाहत सिर्फ बच्चों की ही नहीं होती, बड़ों की भी होती है। सियासत में तो इसके मायने और भी गहरे हैं। कोई टॉफी-चाकलेट छोड़ना ही नहीं चाहता। यहां भी झगड़ा टॉफी का है। किसी को मिली, किसी को नहीं। अब इसमें रूठना तो जायज है। रूठें न तो क्या करें। आखिर दिल तो बच्चा है जी। थोड़ा कच्चा है जी। हेडमास्टर से कर दी है शिकायत। हेड मास्टर कमाल हैं। पूरे लाल हैं। 'ए-बी-सी' की जगह 'ए-सी-बी' पढ़ा रहे हैं। इस हिदायत के साथ, कि जिसे पढ़ना हो पढ़ें, नहीं तो जाएं। ये कुछ दो और दो पांच सरीखा है। जब दो का झगड़ा हो तो एक अपने आप जुड़ जाता है। टॉफी की जिरह लंबी हो चली है। किसी को कुछ मिला या नहीं, लेकिन कहने वाले कहते हैं कि इस खेल में लाला, लाल और शर्मा मालामाल हो गए।

मुद्दों की भरमार

सत्ताधारी दल हमेशा अलर्ट मोड़ पर रहता है। कामकाज को पारदर्शी और तार्किक ढंग से करने की कोशिश करता है ताकि विपक्ष को तंग करने और कोसने का कोई मौका न मिले। तमाम राज्यों में इसे देखा जा सकता है, लेकिन वो अपना झारखंड ही क्या जो बनी बनाई लकीरों पर चले। यहां सियासत जरा दूजे टाइप की है। सत्ता पक्ष ने विपक्ष को इतने मुद्दे दे दिए हैं कि वो कंफ्यूज हो गया है कि किसको पकड़े, किसको छोड़े। कुछ समझ नहीं आ रहा है। अकबका गया है पूरा टोला। क्रिकेट की टीम की तरह पूरे 11 खिलाड़‍ियों की फिल्डिंग सजाई गई है, लेकिन फिर भी गेंद अलग-बगल से पार हो ही जा रही है। सियासत में यह एक नया प्रयोग है, जिसे देर-सवेर दूसरे राज्य भी अपनाएंगे। विपक्ष को मुद्दे तोहफे में देंगे और खुद खिलखिलाएंगे।

लॉकडाउन में हो गए लॉक

लॉकडाउन में जनता को घर में रहने की नसीहत देने वाले माननीय खुद लॉक हो गए। तगड़ी फजीहत हुई। हालांकि इनके लिए नई बात नहीं है। पुलिस-प्रशासन, समय-समय पर विधायक जी का मानमर्दन करता रहा है। सदन में चिल्ला-चिल्ला कर आसान को कई बार अपने दर्द की दुहाई दे चुके हैं। लेकिन मामला जुदा है इस बार। लॉक पब्लिक ने लगाया है। इस मंशा के साथ कि 'तुझे घर में बंद कर दूं और दरिया में फेंक दूं चाबी'। ताकि उपनाम के अनुरूप रहो अकेला और करो मंथन। जिससे निकले अमृत कलश जो दिलाए वन पट्टा। वो तो भला हो कि दरिया में चाबी फेंकने से पहले आ गया हाथ शिरोमणि का फोन। किसी तरह हुए मुक्त लेकिन सबक मिला है बड़ा। जनता की निगाह हो गई है टेढ़ी। चेत जाएं अभी भी, जनता जनार्दन को दिल्लगी कतई नहीं भाती। जब खुश हो तो सदन की राह दिखाती है, नाराज हो तो घर पर लॉक लगाती है।

अस्पताल कहीं-इलाज कहीं

बीमारी सियासी हो तो मर्ज का इलाज अस्पतालों में नहीं, दरबार में निकलता है और दरबार का फैसला अस्पताल को ही कोमा में भेज देता है। दरबारों के दरबानी भी करतब दिखा रहे हैं। एक से एक वेष धारण कर रहे हैं, शिव बरात जैसा माहौल है। अस्पताल हो न हो, एक दूसरे के इलाज में पूरी शिद्दत से लगे हैं। देवघर वाले बाबा ने सत्ता के कारिंदे को निशाने पर ले लिया है। ले भी क्यों नहीं, बरात में दूल्हे की दावेदारी कर रहे बाबा को बाहर का रास्ता दिखाने की हिमाकत जो की गई। बाबा ने अपनी पूरी ताकत लगाकर बरात आने की तारीख ही बदलवा दी। अब कारिंदे भी मोर्चा लेने को तैयार हैं। अंदर ही अंदर अगली तारीख पर भी मुंह दिखाई की रस्म पूरी नहीं होने देने की कसम ली जा चुकी है।