करीब एक साल बाद खुले स्कूल, लेकिन बच्चों की उपस्थिति काफी कम, शिक्षकों ने घर-घर जाकर बुलाया
ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालयों में न तो सैनिटाइजर दिखे न डिजिटल थर्मामीटर व मास्क। जीविका द्वारा भी अभी तक स्कूलों को मास्क उपलब्ध नहीं कराया जा सका है। कक्षा संचालन से पूर्व शैक्षणिक संस्थानों को पूरी तरह से सैनिटाइज्ड करने का भी निर्देश दिया गया था।
लगभग एक साल की बंदी के बाद सोमवार से कक्षा छठी से आठवीं तक का शिक्षण कार्य शुरू हुआ। खासकर सरकारी विद्यालयों में बच्चे सामान्य रूप से ही पढ़ने गए। ग्रामीण इलाके के विद्यालयों में अधितर बच्चे बगैर मास्क के ही स्कूल गए। निजी विद्यालयों में कोरोना गाइडलाइन का पालन होते दिखा। पहले दिन बच्चों की उपस्थिति बहुत कम दिखी।
किसी-किसी विद्यालय में 50 फीसद भी बच्चे पढ़ने के लिए नहीं पहुंच पाए थे। कई स्कूल मे शिक्षको को बच्चों के घर जाकर बुलाना पडा। फिर भी 50 कौन कहे 25 फीसद छात्रो की उपस्थिति नही हो सकी।हालांकि शिक्षा विभाग ने कोरोना से बचाव को ले जारी विभागीय निर्देश के आलोक में शिक्षण कार्य संचालित करने का निर्देश प्रधानाध्यापकों को दिया है।
ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालयों में न तो सैनिटाइजर दिखे न डिजिटल थर्मामीटर व मास्क। जीविका द्वारा भी अभी तक स्कूलों को मास्क उपलब्ध नहीं कराया जा सका है। कक्षा संचालन से पूर्व शैक्षणिक संस्थानों को पूरी तरह से सैनिटाइज्ड करने का भी निर्देश दिया गया था। अधिकांश सरकारी स्कूलों की साफ-सफाई सिर्फ पानी से ही किया गया है। जबकि इस कार्य को विद्यालय विकास अनुदान व रख-रखाव को ले उपलब्ध कराई गई राशि से करने का निर्देश पूर्व में दिया गया था।
निजी विद्यालयो द्वारा बच्चे को अपने घर से मास्क पहन कर स्कूल आने का निर्देश दिया गया था। छठवीं से आठवीं तक की पढ़ाई शुरू होने से छात्र से लेकर अभिभावकों तक ने राहत की सांस ली है। ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान होने वाली परेशानियों से छुटकारा मिलेगी। बच्चों के चेहरे पर खुशी दिखी, कारण कि लंबे अंतराल के बाद स्कूल गए थे।
इस संबंध डीईओ संजीव कुमार ने कहा कि विभागीय गाइडलाइन के आलोक में संचालकों व प्रधानाध्यापकों को कक्षा संचालित करने का निर्देश दिया गया है। जिस संस्थान में गाइडलाइन का पालन नहीं किया जाएगा, वहां के संचालक या प्रधानाध्यापक पर कार्रवाई की जाएगी। गौरतलब है कि कोरोना महामारी के कारण गत वर्ष 23 मार्च से ही स्कूलों को शिक्षण कार्य के लिए बंद कर दिया गया था। उसके बाद ऑनलाइन के माध्यम से बच्चों को शिक्षा की व्यवस्था की गई थी, जो सभी बच्चों के लिए संभव नहीं हो पा रहा था।