दिल्ली हिंसा मामला: देवांगना, नताशा, आसिफ की रिहाई के आदेश के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई कल
दरअसल हाईकोर्ट ने इन्हें 15 जून को ही जमानत दे दी थी लेकिन दिल्ली पुलिस ने पेपर वर्क के लिए अधिक समय मांगा था जिसके चलते ये तीनों अभी तक रिहा नहीं हो सके हैं।
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दिल्ली दंगा मामले में जमानत पा चुके छात्र आसिफ, नताशा और देवांगना को तत्काल रिहा करने के लिए निचली अदालत ने आदेश दे दिया है। दरअसल तीनों आरोपियों ने बुधवार को निचली अदालत में रिहाई के लिए अपील की थी जिस पर अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया था और आज उस पर सुनवाई हुई। वहीं, इस आदेश के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई करेगा।
इससे पहले गुरुवार सुबह इन तीनों छात्रों ने अपनी तत्काल रिहाई की मांग के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया था। अदालत ने इस मामले में छात्रों के वकील को निचली अदालत में जाने को कहा था। फिर साढ़े तीन बजे दोबारा मामले की सुनवाई करने वाली थी। दरअसल हाईकोर्ट ने इन्हें 15 जून को ही जमानत दे दी थी लेकिन दिल्ली पुलिस ने पेपर वर्क के लिए अधिक समय मांगा था जिसके चलते ये तीनों अभी तक रिहा नहीं हो सके हैं।
बुधवार को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की अदालत में दी थी अर्जी
दिल्ली दंगा मामले में हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद जेएनयू छात्र नताशा नारवाल और देवांगना कलिता ने सत्र न्यायालय में जेल से जल्द रिहाई की मांग की है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रविंदर बेदी इस अर्जी पर आज सुनवाई करने वाले हैं।
अदालत ने मंगलवार को पुलिस से इस मामले की वेरिफिकेशन तलब की थी, जिसे जमा करने के लिए पुलिस ने और समय की मांग की है। हाईकोर्ट ने मंगलवार को सत्र न्यायालय के उस आदेश को खारिज कर दिया था जिसमें नताशा, देवांगना और जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा को जमानत देने से इनकार किया गया था।
हाईकोर्ट से जमानत के बाद जेएनयू की दोनों महिला कार्यकर्ताओं ने तत्काल रिहाई के लिए सत्र न्यायालय का रुख किया है। तीनों को मई 2020 में गिरफ्तार किया गया था। पुलिस ने इन्हें फरवरी 2020 में हुई हिंसा का मास्टरमाइंड बताते हुए यूएपीए के तहत मुकदमा दर्ज किया था।
तीनों छात्रों को जमानत के फैसले को पुलिस ने दी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
दिल्ली पुलिस ने गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत दिल्ली दंगों के एक मामले में आसिफ इकबाल तन्हा, देवांगना कलिता और नताशा नरवाल को जमानत देने के दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर की है। याचिका में पुलिस ने हाईकोर्ट द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण पर सवाल उठाते हुए कहा, तीन अलग-अलग जमानत फैसले बिना किसी आधार के थे और चार्जशीट में एकत्रित और विस्तृत सबूतों की तुलना में सोशल मीडिया कथा पर आधारित प्रतीत होते हैं।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि प्रथम दृष्टया जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा और जेएनयू के दो स्कॉलर देवांगना कलिता और नताशा नरवाल पर यूएपीए की धारा-15, 17 और 18 के तहत अपराध नहीं बनता है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने तीनों को जमानत देते हुए अपने फैसले में कहा था कि विरोध करना सांविधानिक अधिकार है और इसे यूएपीए कानून के तहत आतंकी गतिविधि नहीं कहा जा सकता है। हाईकोर्ट का कहना था कि यूएपीए कानून के तहत आतंकी गतिविधि की परिभाषा स्पष्ट नहीं है। इसे लापरवाही से लागू नहीं किया जा सकता।
हाईकोर्ट का कहना था कि इसमें कोई बहस नहीं है कि इन्होंने सीएए के खिलाफ होने वाले प्रदर्शन में हिस्सा लिया लेकिन विरोध का अधिकार मूल अधिकार है। अपनी अपील में दिल्ली पुलिस ने कहा, हाईकोर्ट ने न केवल एक ‘मिनी-ट्रायल’ किया है बल्कि हाईकोर्ट ने जो निष्कर्ष दर्ज किए हैं जो रिकॉर्ड और मामले की सुनवाई के दौरान की गई दलीलों के विपरीत हैं।
हाईकोर्ट ने पूर्व-कल्पित तरीके से इस मामले का निपटारा किया और यह पूरी तरह से गलत फैसला है। हाईकोर्ट ने मामले का इस तरह से निपटारा किया जैसे कि छात्रों द्वारा विरोध का एक सरल मामला हो। नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध के बाद फरवरी, 2020 में शुरू हुए दंगों में 53 लोगों की जान चली गई थी और सैकड़ों लोग घायल हुए थे।
Appeal filed by Delhi Police challenging Delhi High Court's order granting bail to Devangana Kalita, Natasha Narwal, and Asif Iqbal Tanha in connection with Northeast Delhi violence to be heard by Supreme Court tomorrow
तीनों एक साल से अधिक समय से जेल में थे। पुलिस ने तर्क दिया है कि हाईकोर्ट का विचार है कि यूएपीए के प्रावधानों को केवल ‘भारत की रक्षा’ पर गहरा प्रभाव वाले मामलों से निपटने के लिए लागू किया जा सकता है, न ही अधिक और न ही कम। पुलिस का कहना है कि हाईकोर्ट का यह मानना गलत है कि वर्तमान मामला असंतोष को दबाने के लिए था।