झारखंड के इन जिलों में क्यों कभी कम नहीं होता माओवादी आतंक? गढ़वा बना 3 राज्यों के नक्सलियों का गढ़
झारखंड के आठ जिले माओवादियों की सक्रियता के लिहाज से अति माओवाद प्रभाव श्रेणी में हैं। वहीं राज्य के 16 जिलों में माओवादियों का प्रभाव है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने केंद्र की एसआरआई स्कीम के तहत माओवाद प्रभाव वाले जिलों की समीक्षा की है। केंद्रीय गृह मंत्रालय के मुताबिक, पूर्व में देशभर के 90 जिले माओवाद प्रभावित थे, अब संख्या घटकर 70 रह गयी है। केंद्र ने 70 में से 25 जिलों को अति माओवादी प्रभाव वाला माना है। देश के अति माओवाद प्रभाव वाले 25 में 8 जिले झारखंड के हैं।
झारखंड में माओवाद प्रभाव वाले 16 जिलों में रांची, खूंटी, बोकारो, चतरा, धनबाद, पूर्वी सिंहभूम, गढ़वा, गिरिडीह, गुमला, हजारीबाग, लातेहार, लोहरदगा, पलामू, सिमडेगा, सरायकेला-खरसावां, पश्चिमी सिंहभूम शामिल हैं। वहीं आठ अति माओवाद प्रभावित जिलों में चतरा, गिरिडीह, गुमला, खूंटी, लोहरदगा, लातेहार, सरायकेला-खरसावां, पश्चिमी सिंहभूम शामिल हैं।
गढ़वा जिले को केंद्र ने माना डिस्ट्रिक्ट ऑफ कंसर्न
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने माओवादी गतिविधियों के हिसाब से गढ़वा जिला को डिस्ट्रिक्ट ऑफ कंसर्न की श्रेणी में रखा है। गढ़वा जिले के बूढा पहाड़ में हाल के दिनों में माओवादी गतिविधि बढ़ी है। झारखंड, छत्तीसगढ़ और बिहार तक फैले बूढापहाड़ के इलाके में माओवादियों की कमान बिहार के मिथिलेश के द्वारा संभाली जा रही है। यहां छत्तीसगढ़ के माओवादी हथियारबंद दस्ता भी कैम्प कर रहा है।
कोडरमा और रामगढ़ में खत्म हुआ माओवाद
साल 2018 में आखिरी बार केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एसआरई योजना शुरू की थी। तब झारखंड के 18 जिले माओवाद प्रभावित थे। कोडरमा और रामगढ़ जिले को अब माओवाद प्रभावित जिले की सूची से हटा दिया गया है। समीक्षा में यह बात निकलकर सामने आई कि झारखंड में उग्रवादी संगठनों में भाकपा माओवादी, पीएलएफआई,टीपीसी, जेपीसी, झारखंड टाइगर ग्रुप समेत अन्य अलग-अलग जिलों में सक्रिय हैं।