आगामी बजट के लिए निर्मला सीतारमण के सामने जानें क्या हैं छह सबसे बड़ी चुनौतियां
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के लिए इस बार का बजट कई तरह की चुनौतियों से निपटने की एक कड़ी परीक्षा है। इसमें भी छह ऐसी चुनौतियां हैं जो उनका कड़ा इम्तिहान लेंगी। इनके बारे में उन्हें विचार जरूर करना होगा।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण कोरोना महामारी से पटरी पर लौट रहे देश के लिए आम बजट पेश करेंगी। जनता की उम्मीदें आसमान छू रही हैं। अर्थव्यवस्था के सामने इस साल चुनौतियां तो बहुत हैं, लेकिन छह ऐसी हैं जिन्हें बजट के लिए बड़ी चुनौतियां कहा जा सकता है।
समग्र विकास
कोरोना के आने से पहले देश की अर्थव्यवस्था की रफ्तार काफी अच्छी थी। दुनिया हमारी तरफ नजरें टिकाए बैठी थी, लेकिन महामारी ने हमें सबसे प्रभावित देशों की श्रेणी में ला खड़ा किया। नीति निर्माताओं के सामने अर्थव्यवस्था को रसातल से निकालकर न सिर्फ गतिमान बनाने, बल्कि रफ्तार पकड़ाने की भी चुनौती है। हालांकि, अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटती दिखाई दे रही है, लेकिन इसे जारी रखना और निवेश तथा रोजगार का सृजन बड़ी चुनौती होगी। हटकर सोचने की जरूरत होगी, जिससे विकास को गति मिले, मांग बढ़े और अर्थव्यवस्था को दीर्घकालिक लाभ हो।
राजकोषीय प्रबंधन
वित्त मंत्री को जहां देश की 1.3 अरब आबादी के टीकाकरण के लिए भारी-भरकम राशि की जरूरत पड़ेगी, वहीं बड़ी बुनियादी परियोजनाओं को पुनर्जीवित करने के लिए भी बड़ी रकम की आवश्यकता होगी। इसके अलावा बैंकों को भी धन उपलब्ध कराना होगा, जिससे वे अधिक से अधिक ऋण वितरण कर सकें। कर संग्रह नए वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही से पहले पटरी पर लौटता नहीं दिख रहा है। ऐसे में वित्त मंत्री को राजकोषीय घाटा तार्किक स्तर पर रखना होगा, ताकि देश के कर्ज का प्रबंधन किया जा सके और एजेंसियों को रेटिंग कम करने का मौका ही न मिले। इस दिशा में काम शुरू हो चुका है, लेकिन विकल्प बहुत कम हैं। आशंका है कि कोरोना संक्रमण की महामारी के कारण केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के 7.5 फीसद के करीब पहुंच चुका है। सरकार राजकोषीय लक्ष्य की प्राप्ति पर फिलहाल रोक लगा सकती है, लेकिन नया राजकोषीय रोडमैप यह तय करेगा कि सरकार किस प्रकार कम कर संग्रह की स्थिति में खर्च का नियोजन करती है और रेटिंग एजेंसियों को भी खुश रख सकती है।
बैंकिंग क्षेत्र की बेहतरी
देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लौटाने के लिए सरकार को सावर्जनिक क्षेत्र के बैंकों की आर्थिक स्थिति सुधारनी होगी। वर्षों से बैंकों का लेखाजोखा संतुलित नहीं रहा है। आरबीआइ की एक जांच में पता चला है कि बैंकों की गैर निष्पादित परिसंपत्तियां यानी एनपीए जो मार्च 2020 में 8.5 फीसद थीं, मार्च 2021 में बढ़कर 12.5 फीसद तक हो सकती हैं। इस पर पार पाने के लिए सरकार को बैंकों में पूंजी का निवेश करना होगा। एक रास्ता यह हो सकता है कि घाटे में चल रहे सार्वजिनक बैंकों को निजी निवेशकों के हवाले कर दिया जाए। आरबीआइ की आंतरिक कार्यसमिति ने बैंकों को निजी हाथों में सौंपने की सिफारिश करते हुए कहा है कि अगर ऐसा हुआ तो यह र्बैंंकग क्षेत्र में बड़ा बदलाव होगा।
निजीकरण अभियान
सरकार निजीकरण पर बल दे रही है। हालांकि, कोरोना महामारी के कारण एयर इंडिया व सार्वजनिक क्षेत्र के लाभकारी उद्यम बीपीसीएल, शिपिंग कारपोरेशन व कोंकोर आदि के विनिवेश की प्रक्रिया प्रभावित हुई है। विनिवेश में देरी के कारण कुछ कंपनियों के मूल्यांकन में कमी आई है। अब देखना यह होगा कि इनमें से किस कंपनी की विनिवेश की प्रक्रिया नए वित्तीय वर्ष में पहले पूरी होती है। 2021 में गैरलाभकारी के साथ-साथ कुछ लाभकारी सार्वजनिक कंपनियों जैसे, बीईएमएल, नीलांचल इस्पात निगम लिमिटेड व कोंकोर आदि का विनिवेश कर सकती है।
वैक्सीन फंड
महामारी ने सरकार को इस वित्तीय वर्ष के लिए एक नया वर्ग बनाने पर मजबूर कर दिया है, जिसे वैक्सीन फंड कहा जाएगा। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी के टीकाकरण के लिए केंद्र सरकार को 40-80 हजार करोड़ रुपये की जरूरत होगी। वित्त मंत्री को स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च बढ़ाना होगा और ऐसी नीतियां बनानी होंगी, जिससे सरकारी क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा मिले।
रक्षा क्षेत्र की अहमियत
सैन्य बलों की मांग और आवंटन में खाई बढ़ती जा रही है। वर्ष 2010-11 में यह अंतर जहां 23,014.43 करोड़ रुपये था, वहीं वर्ष 2020-21 में 1,03,535 करोड़ रुपये हो चुका है। ऐसा तो तब था जब स्थितियां आज के मुकाबले सामान्य थीं। गलवन घाटी में चीनी सैनिकों के साथ जारी तनातनी ने सरकार पर अत्याधुनिक रक्षा उपकरणों की आपात खरीद का दबाव बढ़ा दिया है। इसके लिए सरकार को अतिरक्त धन की जरूरत होगी। पूर्व सैनिकों की पेंशन पर खर्च भी वर्ष 2010-11 के 25,000 करोड़ रुपये के मुकाबले मौजूदा वित्त वर्ष में 1,33,825 करोड़ रुपये हो चुका है। वन रैंक वन पेंशन के तहत पेंशन में दूसरी बार वृद्धि की गई तो और अधिक धन की जरूरत पड़ेगी। संभव है इस बार रक्षा बजट में वृद्धि भी की जाए, लेकिन रक्षा बलों की मांग की पूर्ति होने की गुंजायश कम ही दिखाई देती है।