नवजात बच्चों के लिए खतरनाक है एंटीबायोटिक्स, घटने लगता है शिशु का वजन और लंबाई
जीवन के शुरुआती दिनों में एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल खतरनाक साबित हो सकता है। एक अध्ययन में दावा किया गया है कि इससे नवजात खास तौर पर लड़कों का वजन कम होने के साथ-साथ उनकी लंबाई पर भी असर पड़ सकता है।
जीवन के शुरुआती दिनों में एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल खतरनाक साबित हो सकता है। एक अध्ययन में दावा किया गया है कि इससे नवजात खास तौर पर लड़कों का वजन कम होने के साथ-साथ उनकी लंबाई पर भी असर पड़ सकता है। जर्नल नेचर कम्युनिकेशन में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि जन्म के 14 दिन के भीतर एंटीबायोटिक दवाओं के जरिये इलाज करने से छह साल तक के लड़कों का वजन कम होने और लंबाई घटने का खतरा रहता है, जबकि लड़कियों में ऐसी समस्या नहीं देखी गई।
शोधकर्ताओं ने कहा, 'नवजात बच्चों का शरीर बेहद संवेदनशील होता है। जरा-सी लापरवाही उन्हें बीमार कर सकती है। इसलिए शुरुआती दिनों में अभिभावकों को चाहिए कि वे अतिरिक्त सतर्कता बरतें।' इजरायल की बार-इलान यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और इस अध्ययन के शोधकर्ता ओमी कोरेन ने कहा, 'एंटीबायोटिक्स नवजात शिशुओं के लिए महत्वपूर्ण और जीवन रक्षक दवाएं हैं। लेकिन हमारे अध्ययन के परिणाम बताते हैं कि उनके उपयोग के अवांछित दीर्घकालिक परिणाम भी हो सकते हैं, जिन पर विचार करने की आवश्यकता है।'
इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं की टीम ने 2008 से 2010 के बीच जन्म लेने वाले 12,422 बच्चों पर एंटीबायोटिक्स के प्रभाव की जांच की। इन शिशुओं में कोई आनुवंशिक असामान्यताएं या क्रॉनिक डिसऑर्डर नहीं था, जो विकास को प्रभावित करते थे और न ही उन्हें दीर्घकालिक एंटीबायोटिक उपचार की आवश्यकता थी। हालांकि, इनमें से 9.3 फीसद यानी 1151 शिशुओं को जन्म के 14 दिन के भीतर एंटीबायोटिक दवाएं दी गई थीं।
शोधकर्ताओं ने पाया कि एंटीबायोटिक्स के जरिये इलाज कराने वाले बच्चों का वजन शुरुआती छह वर्षो के दौरान अन्य बच्चों की अपेक्षा कम रहता है। साथ ही ऐसे बच्चों की लंबाई और बीएमआइ (बॉडी मास इडेक्स) में दो और छठें वर्ष के दौरान उल्लेखनीय रूप से कमी पाई गई।
माइक्रोबायोम काफी कमजोर होता है
शोधकर्ताओं ने कहा कि इसके अलावा जीवन के शुरुआती दिनों में एंटीबायोटिक एक्सपोजर यानी इसके जरिये इलाज दो साल की उम्र वाले बच्चों में गट माइक्रोबायोम में गड़बड़ी से जुड़ा भी पाया गया। उन्होंने कहा कि एंटीबायोटिक दवाओं के संपर्क में आने वाले शिशुओं का गट माइक्रोबायोम एक महीने की उम्र में अन्य शिशुओं की तुलना में काफी कमजोर होता है।
मां का दूध है सर्वोत्तम
शोधकर्ताओं ने कहा कि जन्म के बाद सबसे पहले शिशुओं को बैक्टीरिया के संक्रमण से जूझना पड़ता है। इसके लिए उन्हें एंटीबायोटिक्स दी जाती हैं। लेकिन इसके इस्तेमाल में बेहद सावधानी बरतने की जरूरत है। क्योंकि बेवजह एंटीबायोटिक्स देने से शिशुओं को डायरिया, उल्टी, रेशेज और एलर्जी जैसे समस्याएं हो सकती हैं। इसका ज्यादा इस्तेमाल बैक्टीरियल रेसिस्टेंस को भी बढ़ा देता है। ऐसा तब होता है जब सामान्य तौर पर इस्तेमाल होने वाले एंटीबायोटिक्स कुछ बैक्टीरिया पर बेअसर हो जाते हैं या उनका इलाज करना मुश्किल हो जाता है। इसलिए जन्म के बाद मां का दूध ही सर्वोत्तम है। इसमें वे सभी गुण मौजूद होते हैं जो उन्हें संक्रमण से बचा सकते हैं।