दिल्ली मास्टर प्लान-2041 : लीक से हटना बेहद जरूरी, तभी शहर की जरूरतें होंगी पूरी

सघन बसावट वाली दिल्ली की आबादी अगले बीस साल में पहुंचेगी तीन करोड़ इसके लिए शहर नियोजन पर रखना होगा ध्यान बढ़ती आबादी की चुनौतियों का माकूल समाधान करने के लिए डीडीए ने मास्टर प्लान 2041 का ड्राफ्ट जारी कर दिया है

दिल्ली मास्टर प्लान-2041 : लीक से हटना बेहद जरूरी, तभी शहर की जरूरतें होंगी पूरी

विस्तार
दिल्ली फिलवक्त सघन बसावट वाला शहर है। 2011 की जनगणना के अनुसार, यहां एक वर्ग किमी में 11,320 लोगों की रिहायश है। आने वाले वक्त में क्षेत्रफल बढ़ेगा नहीं, लेकिन आबादी दिल्ली की तेजी से बढ़ रही है। 2040 तक दिल्ली की आबादी तीन करोड़ के करीब पहुंच जाएगी, 2011 में जो 1.13 करोड़ थी। दिल्ली का करीब 75 फीसदी हिस्सा यानि 1483 वर्ग किमी शहरी है। 


बढ़ती आबादी की चुनौतियों का माकूल समाधान करने के लिए डीडीए ने मास्टर प्लान 2041 का ड्राफ्ट जारी कर दिया है। इस पर आ रही प्रतिक्रियाएं काफी उत्साहवर्धक हैं। विशेषज्ञों समेत आम लोगों की राय है कि दिल्ली की बसावट का इस तरह से नियोजित  किया जाना चाहिए, जिससे आम लोगों को बुनियादी सुविधाएं हासिल हो सकें। विशेषज्ञ रेंटल हाउसिंग समेत ट्रांजिट ओरिएंटेड डवलेपमेंट (टीओडी) सरीखी परियोजनाएं युद्धस्तर पर लागू करने की सलाह दे रहे हैं। 


इससे करीब तीन करोड़ की आबादी को छह मुहैया कराना आसान होगा। इसके साथ स्लम और अनाधिकृत कालोनियों को दोबारा नए सिरे से विकसित करने के लिए पीपीपी मॉडल पर काम करने की जरूरत है। विशेषज्ञों के मुताबिक, अनाधिकृत कालोनियों का नए सिरे से विकास किया जाए तो मेट्रो और रेल लाइन के नजदीक के इलाकों को भी विकसित कर सभी वर्गों के लिए रिहायश की जरूरतें पूरी की जा सकती हैं। 

विशेषज्ञों ने कहा...

जापान की तर्ज पर दिल्ली में भी लागू करनी होगी रेंटल पॉलिसी
दिल्ली की आबादी में बढ़ोतरी के बाद 20 साल बाद आंकड़ा तीन करोड़ से अधिक होगी। इससे और अधिक मकानों की जरूरत होगी जबकि अनाधिकृत कालोनियों और स्लम को नए सिरे से विकिसित करना होगा। इसके लिए रेंटल हाउसिंग परियोजनाओं को पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत बढ़ावा देने से रिहायशी की कमी दूर होने के साथ साथ बुनियादी सुविधाएं भी बेहतर होंगी। जापान में अभी भी रेंटल हाउसिंग का प्रचलन है, जिसे अपनाने से मौजूदा संसाधनों के साथ ही दिल्ली को नई शक्ल दी जा सकती है। रेंटल हाउसिंग परियोजना के तहत सरकारी जमीन पर निजी क्षेत्र के सहयोग से हाउसिंग प्रोजेक्ट को बढ़ावा दिया जा सकता है। इससे कम जगह में अधिक लोगों के लिए रहने की सुविधा होगी। 

स्लम की बजाय बहुमंजिला इमारतें बनाई जा सकती है। अनाधिकृत कालोनियों की बजाय छोटे छोटे टाउनशिप को अमली जामा पहनाने से लोगों को सेक्टरों की तरह मॉल्स, दुकानें, क्लब, चिकित्सा सुविधाओं के लिए नए निर्माण किए जा सकते हैं। इससे लोगों को जहां बेहतर बुनियादी सुविधाएं मिलेंगी तो दूसरी तरफ सरकार को भी वाणिज्यिक परिसरों से आय होगा। दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र में रहने वालों की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए एनसीआर प्लानिंग बोर्ड को विस्तार देते हुए नया कानून बनाने से भी काफी हद तक संभावित परेशानियों को दूर किया जा सकता है। 

टीओडी परियोजना से कंपनियों में काम करने वालों को घरों के आसपास ही तमाम सुविधाएं उपलब्ध होंगी। एनसीआर के शहरों के दूसरे राज्यों में होने की वजह से भविष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए एकीकृत शहरों के लिए अलग प्रावधान होना चाहिए। इससे किसी भी काम के लिए बार बार राज्य सरकारों से मंजूरी लेने की बजाय बोर्ड से बुनियादी सुविधाओं की बेहतरी से जुड़ी परियोजनाओं को मूर्त रूप देना आसान होगा।
-शोवन के साहा, पूर्व प्रोफेसर स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर, नई दिल्ली

घनी बसावट को नियोजित करने के लिए नए सिरे से काम करना जरूरी
जमीन की सीमित उपलब्धता और भविष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए स्लम कॉलोनियों में रहने वालों का सर्वेक्षण कर उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए बुनियादी सुविधाओं को नए सिरे से विकसित करना होगा। बहुमंजिला इमारतों के निर्माण के साथ साथ बुनियादी सुविधाओं को नए सिरे से विकसित करने की जरूरत है।

सभी वर्गों के लिए रिहायश की जरूरतों को पूरा करने के लिए पहले जरूरी है कि कनेक्टिविटी को बेहतर किया जाए। हालात सुधरने पर लोगों को किसी भी क्षेत्र में रहने के लिए बसावट को बढ़ावा मिलेगी। दफ्तरों और कार्यक्षेत्र के नजदीक इमारतों के निर्माण से एक साथ हजारों परिवारों की रिहायश की जरूरतें पूरी होंगी। घनी आबादी वाले इलाकों में नए सिरे से विकसित करना होगा ताकि एक जगह पर ही लोगों की जरूरतें पूरी हो सके।

निजी क्षेत्रों के सहयोग से लोगों के लिए मकान के लिए ऐसी योजना की शुरुआत जरूरी है ताकि सभी वर्गों को अपनी जरूरतों को पूरा करने का मौका मिल सके। इससे दिल्ली की शक्ल भी बदलेगी।

-डॉ. पीके सरकार, स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर, दिल्ली के विजिटिंग फैकल्टी
 
मास्टर प्लान में किए गए प्रावधान
दिल्ली के 40 फीसदी क्षेत्र को हरित क्षेत्र के तौर पर किया जाएगा विकसित। रिज क्षेत्र को नए सिरे से किया जाएगा विकसित।
लैंड पूलिंग योजना को तेजी से लागू करने के लिए कमेटी का गठन होगा, रिहायश के लिए अतिरिक्त जगह मिलेगी।
85 फीसदी आबादी की जरूरत के हिसाब से किफायती दर पर आवासीय इकाइयों का निर्माण। इसमें से करीब 28 फीसदी आबादी के  लिए सस्ती दरों पर किराए के मकानों का इंतजाम होगा।
एक परिवारों के लिए 60 वर्ग मीटर तक के मकान बनेंगे।
दिल्लीवालों की पार्किंग की समस्या दूर करने के लिए मेट्रो के नजदीक बनेगी पार्किंग। मल्टीलेवल पार्किंग की संख्या बढ़ेगी।
2018-19 में 32.3 फीसदी आबादी प्रवासी थी। यह प्राथमिकता के आधार पर किराए का मकान लेना चाहते हैं।

दिल्ली की आबादी:
2011: करीब 1.13 करोड़
2019: करीब 1.90 करोड़
2040: करीब 3.00 करोड़

पानी
साल        मांग      आपूर्ति
2020      1140     955
2041      1746         -
पानी की मात्रा एमजीडी में
लैंड पूलिंग और टीओडी से बदलेगी दिल्ली की शक्ल 
रिहायश की कमी को पूरा करने के लिए बदलाव जरूरी मास्टर प्लान-2041 के तहत दिल्ली में सभी को रिहायश की सुविधा देने के लिए लैंड पूलिंग कारगर साबित होगी। इसके स्लम को कम करने सहित अनाधिकृत कॉलोनियों में बुनियादी सुविधाएं बेहतर करने पर केंद्रित परियोजनाएं जरूरी है।

ट्रांजिट ओरिएंटेड डवलेपमेंट(टीओडी) भविष्य की मांग होगी, जिसे पूरा करने के लिए योजनाओं को सिरे चढ़ाना होगा। दिल्ली की मौजूदा स्थिति, जमीन की उपलब्धता, आबादी और बुनियादी सुविधाओं के साथ साथ दिल्ली की सूरत बदलने में टीओडी की अहम भूमिका होगी। लैंड पूलिंग के लिए उत्तरी और पश्चिमी दिल्ली में संभावनाएं काफी हैं और इस दिशा में पहल भी की जा रही है।

रेंटल हाउसिंग स्कीम से स्टूडेंट्स, नौकरीपेशा लोगों सहित देश के दूसरे प्रदेशों से आने वालों को काफी राहत मिलेगी। दिल्ली में ऐसे लोगों की संख्या लाखों में है। इससे लोगों को मकान खरीदने की बजाय रिहायश की जरूरतें आसानी से पूरा की जा सकेंगी।
प्रो. पीएसएन राव, डायरेक्टर, स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर, दिल्ली

लोगों ने कहा...
दिल्ली में बढ़ती आबादी के लिए मकानों की बुनियादी जरूरत होगी। इसके लिए दिल्ली और एनसीआर के शहरों में अफोर्डेबल हाउसिंग परियोजनाओं को बढ़ावा देने से भविष्य में कम चुनौतियां होंगी। अगर, दफ्तरों के नजदीक ही फ्लैट उपलब्ध हो तो नौकरीपेशा लोगों के लिए अधिक सहूलियत होगी। 
-अनुपम 

देश की राजधानी होने की वजह से सभी प्रदेशों के लोग बसे हुए हैं। भविष्य की जरूरतों के ध्यान में रखकर ऐसी परियोजनाओं को अमली जामा पहनाया जाना चाहिए, जिनसे खुद के फ्लैट या किराये में भी रिहायश की आसान उपलब्धता है। सभी वर्गों के लिए अलग अलग श्रेणी के फ्लैटों के निर्माण से भी मुश्किलें कम होंगी। 
-.आनंद कुमार 

20 साल बाद की जनसंख्या को सोचकर दिल्ली में फ्लैट्स के निर्माण की दिशा में शुरुआत से हालात बदल सकते हैं। लैंड पूलिंग स्कीम के तहत सरकार को लोगों के लिए कुछ रियायतें बढ़ाने से भी राहत मिल सकती है। पीपीपी मॉडल पर अफोर्डेबल हाउसिंग परियोजनाओं से भी भविष्य में रिहायश की कमी को पूरा करना संभव होगा।
-परवेज आलम 

आबादी बढ़ने के साथ साथ मकानों की संख्या में भी बढ़ोतरी जरूरी है। कॉलोनियों और स्लम की बजाय सेक्टरों की तर्ज पर बुनियादी सुविधाओं को विकसित कर, सभी के लिए रिहायश का होना जरूरी है। किराये के बराबर अगर लोगों को ईएमआई पर फ्लैट के लिए परियोजनाएं तो समस्या दूर हो सकती है। 
-आकांक्षा

मौजूदा स्थिति...
1483 वर्ग किलोमीटर के दायरे में बसी दिल्ली में आबादी फिलहाल दो करोड़ है। 
जनसंख्या में बढ़ोतरी के साथ लाखों मकानों की बहुमंजिला इमारत से पूरी होंगी जरूरतें। 
डीडीए की ओर से दिल्ली में जहांगीरपुरी, द्वारका और दिलशाद गार्डन सहित तीन क्षेत्रों में 40-60 वर्ग मीटर के फ्लैट्स बनाने की परियोजना है। 
करीब 15 फीसदी आबादी है स्लम में, इसलिए स्लम और कॉलोनियों का नए सिरे से विकास करना होगा। इसके साथ ही तमाम बुनियादी जरूरतों को पूरा करना होगा, जिसमें निजी क्षेत्रों की भी भूमिका अहम होगी।
जमीन की कमी है, इसलिए लैंड पूलिंग से छोटी छोटी परियोजनाएं विकसित कर दिल्लीवासियों को राहत दी जा सकती है। 
ईएमआई में सस्ते मकान के लिए सरकार की ओर से योजना शुरू करने से भी लोगों को काफी सहूलियतें मिल सकती हैं।