मजदूर कमला बनीं प्रधान, बूढ़ी आंखों में पल रहा है गांव के विकास का मासूम सा सपना

गांव में एक कच्चे घर में रहती हैं बेटा भी पंजाब में करता है मजदूरी

मजदूर कमला बनीं प्रधान, बूढ़ी आंखों में पल रहा है गांव के विकास का मासूम सा सपना

विस्तार
गांव खरसोल के खेतों में मजदूरी करने वाली कमला अब प्रधान बन गई है। दो वक्त की रोटी के लिए इकलौता बेटा मां से दूर दूसरे प्रदेश में मजदूरी कर रहा है। अब तक मां-बेटे मजदूरी कर परिवार का गुजारा कर रहे थे। जीवन यापन के लिए दूसरों के यहां मजदूरी करने वाली कमला के हाथों में अब पूरे गांव के विकास की जिम्मेदारी है। उनका कहना है कि वह पूरे गांव का विकास करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगी।


शाहबाद तहसील क्षेत्र के खरसोल गांव निवासी कमला की कहानी भी उन लोगों में से एक है जिनकी किस्मत आर्थिक तंगी के बीच चमकी है। कमला गांव में रहकर खेतों में मजदूरी करती थीं तो उनका बेटा पंजाब में मजदूरी करता था। आर्थिक तंगी के चलते ही कमला को अपने इकलौते बेटे को भी अपने से दूर भेजना पड़ा। बेटे की गैर मौजूदगी में गांव के ही एक परिवार ने उन्हें सहारा दिया और घर के कुछ काम करने के बदले उनके खाने व अन्य जरूरतों को पूरा किया। 


इस बीच पंचायत चुनाव का बिगुल बजा और गांव की सीट आरक्षित हो गई। यहीं से कमला देवी के किस्मत के सितारे भी बदल गए। कमला जिस घर के सहारे जीवन यापन कर रहीं थीं उन्होंने ही कमला को पंचायत चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित किया और चुनाव लड़वा दिया। इसके बाद कमला 162 वोटों से चुनाव जीत गईं और ग्राम प्रधान बन गईं। कमला देवी ग्राम प्रधान बनकर खुश हैं और कहती हैं कि उन्होंने जिन हालातों में जिंदगी बिताई है वो हर गरीब का दर्द समझती हैं। इसलिए गांव के विकास और गरीबों को सभी योजनाओं का लाभ दिलाने का काम करेंगी। 

कमला ने कहा..
मेरा एक ही बेटा है वो भी बाहर रहकर मजदूरी करता है। दो वक्त की रोटी के लिए बेटे से दूर होना पड़ा। गांव में रहकर खेतों में मजदूरी कर जीवन कट रहा था। इस दौरान गांव के ही एक परिवार ने मेरी काफी मदद की। बेटे की गैर मौजूदगी में इस परिवार के सदस्यों ने मेरा ख्याल रखा और मेरा सहारा बने। इस परिवार की सहायता से ही मैं चुनाव लड़ी और अब जब जीत गई हूं तो सभी गांव वालों की सेवा और उनको सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने के लिए काम करूंगी।