अफवाह नहीं हकीकत : लखनऊ में घूम रहे दो तेंदुए, वन व‍िभाग ने पकड़ने को कई जगह बांधे मुर्गे-बकरे

डीएफओ डा. आरके सिंह ने बताया कि बंथरा के एनबीआरआइ परिसर में दो तेंदुआ होने की पुष्टि हो गई है। दोनों के पगमार्क पाए गए। पगमार्क से साफ है कि दोनो तेंदुआ व्यस्क हैं। परिसर में कई जगह ट्रैकिंग के लिए बालू और मिट्टी की लेयर बनाई गई है।

अफवाह नहीं हकीकत : लखनऊ में घूम रहे दो तेंदुए, वन व‍िभाग ने पकड़ने को कई जगह बांधे मुर्गे-बकरे

तेंदुआ को लेकर अफवाह सच साबित हो गई है। बंथरा क्षेत्र में दो तेंदुआ शिकार की तलाश में घूम रहे हैं। यहां राष्ट्रीय वनास्पति संस्थान परिसर (एनबीआरआइ) में दो तेंदुआ होने की पुष्टि हो गई है। दोनों ही व्यस्क है। वन विभाग ने तेंदुआ होने की सूचना पर ट्रैकिंग की थी। करीब सात मीटर जमीन के हिस्से को साफ करने के बाद उसमे मिट्टी व बालू की लेयर बनाई गई थी। एनबीआरआइ परिसर में पांच जगह ट्रैकिंग की गई थी, जिसमे से दो जगह तेंदुआ के पगमार्क मिले हैं। अब तेंदुआ को पकडऩे के लिए वन विभाग की टीम सक्रिय हो गई है। जगह-जगह पिंजड़ा लगाकर उसमे मुर्गा और बकरा बांधा गया है।

अभी तक मलिहाबाद क्षेत्र में तेंदुआ होने की सूचना थी, लेकिन अगले दिन तेंदुआ की कोई लोकेशन न मिलने से यह माना जा रहा था कि वह जंगल के रास्ते बाहर निकल गया था लेकिन एक सप्ताह पहले बंथरा में तेंदुआ होने की सूचना पर वन विभाग ने लकड़बग्‍घा बताया था। इस दौरान (एनबीआरआइ) के अधिकारियों ने परिसर में किसी जंगली वन्यजीव होने की सूचना दी थी। वन विभाग की टीम ने पांच दिन पहले ही परिसर में ट्रैकिंग कराई थी। दो दिन पहले बालू व मिट्टी की लेयर में दो अलग-अलग पगमार्क मिले थे। जिसकी स्केल में जांच की गई तो तेंदुआ होने की पुष्टि हुई।

डीएफओ डा. आरके सिंह ने बताया कि बंथरा के एनबीआरआइ परिसर में दो तेंदुआ होने की पुष्टि हो गई है। दोनों के पगमार्क पाए गए। पगमार्क से साफ है कि दोनो तेंदुआ व्यस्क हैं। परिसर में कई जगह ट्रैकिंग के लिए जमीन को समतल करने के साथ ही वहां पर बालू और मिट्टी की लेयर बनाई गई है। इस लेयर से अगर तेंदुआ गुजरेगा तो पगमार्क बन जाएगा। उसे पकडऩे के लिए पिंजड़े लगाए गए हैं। यह वन्यजीव रात में ही अपना शिकार करने के साथ ही यात्रा भी तय करता है। दिन भर जंगल व झाडिय़ों में छिपा रहता है।

गोमती नदी के किनारे माल और बक्शी का तालाब सीमा के कठवारा जंगल के आसपास तेंदुआ होने की सूचना पहले से ही है। कठवारा गांव में आबादी भी है और मवेशी भी रहते हैं। गोमती नदी के कछार और कठवारा जंगल में उसके भोजन पानी का ठीक-ठाक इंतजाम होने से वह आबादी के बीच नहीं आ रहा था और माना जा रहा है कि यही तेंदुआ शहर के विभिन्न ग्रामीण इलाकों से होकर बंथरा पहुंचा है।

लखनऊ में वन्यजीवों की दहशत

  • 1993 से अब तक कई तेंदुआ और बाघ-बाघिन लखनऊ आ चुके हैं
  • वर्ष 1993 में तो कुकरैल के जंगल में खूंखार हो गए एक बाघ को मारना तक पड़ा था।
  • कुछ साल पहले करीब सौ दिन तक काकोरी व आसपास इलाके में दहशत कायम करने वाला व्यस्क बाघ पकड़ा गया था।
  • वर्ष 2009 में माल के कमालपुर लधौरा में तेंदुआ पकड़ा गया
  • वर्ष 2009 में मोहनलालगंज में दहशत फैलाने वाले बाघ को फैजाबाद में मारा गया था।
  • वर्ष 2012 में माल के उतरेहटा गांव में तेंदुआ पकड़ा गया।
  • अप्रैल 2012 में काकोरी के रहमान खेड़ा में बाघ पकड़ा गया।
  • 21-22 अप्रैल 2013 की रात पीजीआइ के पास रानी खेड़ा में तेंदुआ पकड़ा गया।
  • करीब तीन साल पहले आशियाना में घर घुस आए तेंदुआ को पुलिस ने मार गिराया था
  • इसके कुछ दिन बाद ही ठाकुरगंज के एक प्राथमिक स्कूल में तेंदुआ घुस आया था और पकड़ा गया।
  • अभी तीन माह पूर्व ही गोसाईगंज में तेंदुआ पकड़ा गया था।