आग VIP में लगी, धुंआ कांग्रेस से निकल रहा-मांझी की एक मांग ने और बढ़ा दी परेशानी

आग वीआइपी यानी विकासशील इंसान पार्टी में लगी हुई है। धुंआ कांग्रेस से निकल रहा है। बिना विधायक बने मंत्री पद ग्रहण करने वाले पार्टी के अध्यक्ष मुकेश सहनी की चिंता विधान परिषद की सदस्यता को लेकर हो रही है। 

आग VIP में लगी, धुंआ कांग्रेस से निकल रहा-मांझी की एक मांग ने और बढ़ा दी परेशानी

सब राजनीति की माया है। आग वीआइपी यानी विकासशील इंसान पार्टी में लगी हुई है। धुंआ कांग्रेस से निकल रहा है। पार्टी के चार विधायक हैं। सबकी अपनी पहचान है। आकांक्षा भी है। बिना विधायक बने मंत्री पद ग्रहण करने वाले पार्टी  के अध्यक्ष मुकेश सहनी की चिंता विधान परिषद की सदस्यता को लेकर हो रही है। वादा था कि परिषद में किसी मेहनती कार्यकर्ता को भेज देंगे। उन्हें क्या पता कि खुद परिषद का आसरा होगा। 

विधानसभा चुनाव में वीआइपी का भाजपा से समझौता हुआ था। 11 में चार सीटों पर कामयाबी मिली थी। ज्यादा उम्मीदवार नियम और शर्तों को पूरा करने के बाद ही टिकट हासिल कर पाए थे। उम्मीदवारों की जीत भी एनडीए और खुद के जनाधार के चलते हो पाई थी। लिहाजा कोई भी विधायक जीत का श्रेय अपनी पार्टी के नेतृत्व को नहीं दे रहा है। चार में से दो विधायक मिश्री लाल यादव और मुसाफिर पासवान की राजनीतिक शुरुआत राजद से हुई है। ये क्रमश: राजद के विधान पार्षद और विधायक रहे हैं। तीसरे विधायक राजू कुमार सिंह जदयू और भाजपा के विधायक रह चुके हैं। पहली बार विधायक बनीं स्वर्णा सिंह भाजपा पृष्ठभूमि की हैं। इनके ससुर सुनील कुमार सिंह भाजपा के विधान परिषद सदस्य थे।

नहीं चलती वीआइपी नेतृत्व की कमांड

सूत्रों की मानें तो चारों विधायकों पर वीआइपी नेतृत्व की कमांड नहीं चलती है। वीआइपी से कहीं अधिक इनकी करीबी भाजपा और दूसरे दलों नेतृत्व से है। दो विधायक तो एनडीए और महागठबंधन में किसी तरफ गमन कर सकते हैं। नेतृत्व भी अपने विधायकों की मानसिक अवस्था से परिचित है। पार्टी के अध्यक्ष मुकेश सहनी की अपनी भी मजबूरी है। भाजपा का सहनी के साथ विधान परिषद की एक सीट देने का करार है। उस समय सहनी ने घोषणा की थी कि चुनाव के बाद किसी कार्यकर्ता को परिषद में भेजा जाएगा। वह खुद चुनाव हारे। मंत्री बने तो उनके लिए विधान परिषद का सदस्य बनना जरूरी हो गया है। चुनाव के दिनों में परिषद जाने की लालच में सक्रिय कार्यकर्ता अब उत्साहित नहीं रहे। विधायक राजू कुमार सिंह कहते हैं कि पार्टी के सभी विधायक एनडीए सरकार के साथ है। वे स्वीकार करते हैं कि विधायकों की अपनी राजनीतिक पहचान है। 

एक सीट की मांग से मांझी ने बढ़ा दी परेशानी

हिन्दुस्तानी अवामी मोर्चा के अध्यक्ष जीतनराम मांझी ने कैबिनेट में एक और सीट मांग कर भाजपा-जदयू से अधिक वीआइपी की परेशानी बढ़ा दी है। अब सहनी पर भी ऐसी ही मांग करने का दबाव बढ़ रहा है। मुश्किल यह है, ये कैबिनेट में एक सीट की मांग करें। वह मिल भी जाए तो बाकी तीन विधायक नाराज हो जाएंगे। असल खेल तो इसी तीन पर टिका हुआ है। चार सदस्यीय विधायक दल में तीन मर्जी से जिधर चाहें, निकल सकते हैं। मांझी की पार्टी के विधायकों को यह सुविधा नहीं है। सभी चार विधायक अपने हैं। खुद हैं। पुत्र हैं। समधिन हैं। परिवार से अलग अनिल कुमार हैं। अनिल हर अच्छे-बुरे वक्त में मांझी के साथ रहे हैं। इसलिए उन्हें अधिक तरजीह भी मिल रही है।

बैक अप के लिए तैयारी

यह जो कांग्रेस-बसपा और कुछ दूसरे दलों में टूट और उनके विधायकों के भाजपा या जदयू में मिलने की चर्चाएं हो रही हैं, उसकी जड़ में भी विकासशील इंसान पार्टी ही है। पार्टी इसलिए बची हुई है, क्योंकि इसके दो-दो विधायकों की राजनीतिक पृष्ठभूमि अलग-अलग है। इसलिए तीन का आंकड़ा जुटना असंभव है। यह संभव हो सकता है, जब कोई गठबंधन सभी विधायकों को कैबिनेट में जगह देने की गारंटी करे। संयोग से बिहार में यह हुआ भी है। 2000 में कांग्रेस के 24 विधायक जीते थे। राजद सरकार में 23 का नियोजन हो गया था।  22 मंत्री बने थे। 23वें विधायक सदानंद सिंह विधानसभा अध्यक्ष बने थे। 24वें विधायक ने मंत्री पद का त्याग किया था। क्यों? इसलिए कि उन्हें कैबिनेट के बदले राज्यमंत्री बनाया जा रहा था। 

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