इंग्लैंड के डेथ ओवर्स स्पेशलिस्ट जॉर्डन का दावा- कोरोना के डर की वजह से खराब होता है प्रदर्शन

इंग्लैंड की टीम के तेज गेंदबाज क्रिस जॉर्डन ने दैनिक जागरण को दिए साक्षात्कार में तमाम सवालों का जवाब दिया। इसी दौरान उन्होंने कहा कि बायो-बबल में प्रदर्शन खराब होने का डर काफी रहता है।

इंग्लैंड के डेथ ओवर्स स्पेशलिस्ट जॉर्डन का दावा- कोरोना के डर की वजह से खराब होता है प्रदर्शन

कोरोना महामारी के बीच क्रिकेट को बायो-बबल में शुरू तो कर दिया गया है, लेकिन कई बार लंबे क्वारंटाइन, परिवार से दूर रहने, होटल में बंद रहने से खिलाडि़यों की मानसिक स्वास्थ्य पर सवाल भी खड़े होने लगे हैं। इंग्लैंड के ऑलराउंडर और टी-10 लीग में कलंदर्स की ओर से खेल रहे क्रिस जॉर्डन का मानना है कि बायो-बबल में खेलने से खिलाड़ी का मैदान पर खराब खेल उस पर बहुत हावी हो जाता है। क्रिकेट से जुड़े अहम पहलुओं पर निखिल शर्मा ने क्रिस जॉर्डन से लंबी बातचीत की। पेश हैं प्रमुख अंश..

- ओलंपिक में क्रिकेट को देखने के लिए क्या टी-10 प्रारूप सही होगा?

--आपका अच्छा सवाल है। मुझे लगता है इस प्रारूप में काफी गति है। यहां आपको बड़े शॉट देखने को मिलेंगे, बढि़या कैच देखने को मिलेंगे। शीर्ष खिलाड़ी इसमें खेल रहे हैं, तो मुझे लगता है कि यह प्रारूप ओलंपिक में क्रिकेट को पहुंचाने में अहम भूमिका निभा सकता है।

--यह प्रारूप बहुत तेज है। सब कुछ बहुत जल्दी होता है। शॉट लगाने के चक्कर में बल्लेबाज दो से तीन विकेट जल्दी गंवा देते हैं। यह ऐसा प्रारूप है जिसमें मुझे खेलना पसंद है। मुझे यहां पर अपना कौशल निखारने में मदद मिलती है।

- बायो-बबल में इस वक्त क्रिकेट खेला जा रहा है। यह क्रिकेटरों के लिए कितना मुश्किल है?

-- यह बहुत चुनौतीपूर्ण है, मुश्किल है। हम लॉकडाउन में थे। फिर क्रिकेट की शुरुआत बायो-बबल में हुई। यह मानसिक रूप से बहुत चुनौतीपूर्ण है। पहले आप मैदान पर खराब प्रदर्शन करते थे तो फिर परिवार, दोस्तों और बच्चों से मिलकर उस सोच से बाहर निकल जाते थे, लेकिन बायो-बबल में आप परिवार, दोस्तों से नहीं मिल सकते। ऐसे में आपका मैदान पर किया गया खराब प्रदर्शन आपके दिमाग में बना रहता है और आप इससे बाहर नहीं आ पाते हैं।

- आप डेथ ओवरों में काफी अच्छी गेंदबाजी करते हैं। आप कैसे दबाव को संभालते हैं?

- पहले मैं धन्यवाद कहना चाहूंगा। मैं काफी समय से ऐसा कर रहा हूं। यह मेरी मेहनत का फल है। मैं परिस्थतियों को समझता हूं और रणनीति के हिसाब से गेंदबाजी करता हूं। शांत रहने की कोशिश करता हूं। छक्का लगता है, दर्शकों का शोर होता है, तो आप थोड़ा बिखर जाते हो। यहां आपको समझना होता है कि अगर आप डेथ ओवर में गेंदबाजी कर रहे हो, तो आपको बहुत सोच समझकर गेंदबाजी करनी होगी। आप पर रन भी पड़ेंगे, लेकिन अगर आप लगातार गेंदबाजी में विविधता लेकर आए, तो आप काफी आगे जा सकते हो।

-अगला टी-20 विश्व कप भारत में है, तो आगामी भारत दौरा आपके लिए कितना अहम है?

- मैं आबूधाबी में टी-10 लीग में खेल रहा हूं। मैं यहां अच्छा करने की कोशिश करूंगा। मेरा ध्यान भारत दौरे और विश्व कप पर है। मैं सिर्फ यही कर सकता हूं कि लगातार अच्छा प्रदर्शन कर पाऊं और लगातार अपना खेल सुधार सकूं। तो काफी आगे जा सकता हूं।

- कलंदर्स के साथ अनुभव कैसा रहा है?

--मैं पिछले वर्ष भी टी-10 लीग में इस टीम से खेला था। यह अच्छी फ्रेंचाइजी है, कई अच्छे खिलाड़ी हैं। जो भी खिलाड़ी हैं, वे हमेशा खास करने को तैयार रहते हैं। इस बार भी मैं यहां यही सोच रहा हूं कि हम सिर्फ अपने पिछले साल के प्रदर्शन को ध्यान में रखकर इस बार मैदान पर उतरें।

- कई लीग आने से अंतरराष्ट्रीय कैलेंडर पर फर्क पड़ा है। क्रिकेटरों को भी इससे फर्क पड़ा है। आपका क्या मानना है?

- सच कहूं तो आप इसे बड़ी दिक्कत कह सकते हैं, लेकिन मेरे नजरिये में कई लीग आएंगी, कई दर्शक पहुंचेंगे। यह हमारे खेल के लिए अच्छा है। आप कई परिस्थतियों में खेल सकते हो। यही इसकी खूबसूरती है। इससे आप पूरी दुनिया तक खेल को पहुंचा सकते हो।

- टी-10 प्रारूप का भविष्य आप क्या देखते हो?

--टी-20 की तरह ही यह भी प्रचलित हो जाएगा। कैसे गेंदबाजी करनी है, कैसे बल्लेबाजी करनी है। अब यहां पर 15 से 20 रन बन जाते हैं। 10 ओवर में 120 से 130 रनों का लक्ष्य पाया जा सकता है। इस प्रारूप के आने से टी-20 प्रारूप भी काफी तेज हो गया है। अब बल्लेबाज यहां और तेजी से रन बना सकते हैं। गेंदबाजों के पास भी काफी विविधता आ गई हैं।

- टी-10 क्या वाकई गेंदबाजों के लिए आसान हो जाता है, क्योंकि बल्लेबाज जल्दबाजी में खुद गलती कर बैठते हैं?

--यह परिस्थति पर निर्भर करता है। मैं अपने साथियों को हर गेंद पर विकेट लेने के लिए कहता हूं। टी-10 में जल्दी विकेट गिर जाते हैं। कोई भी बल्लेबाज पहली गेंद से मारने की कोशिश करता है। यह मुश्किल तो है, लेकिन गेंदबाज के लिए विविधता लाकर बल्लेबाजों को अपने चंगुल में फंसाने का मौका बना रहता है।

- आप नस्लवाद के खिलाफ क्या संदेश देना चाहेंगे?

-- हम यह अब नहीं देखना चाहते हैं। कई बार बात हो चुकी हैं। हम सभी इंसान है। हम भी जीना चाहते हैं। रंग मायने नहीं रखता है। नस्लवाद एक रात में खत्म नहीं होगा, लेकिन व्यक्तिगत सोच, संदेश से इसे दूर किया जा सकता है। मुझे लगता है कि परिवारिक शिक्षा भी इसमें एक अहम रोल निभा सकती है।