Bioscope S2: राजेश खन्ना व तनुजा की ‘हाथी मेरे साथी’ को 50 साल पूरे, पढ़िए मेकिंग के दिलचस्प किस्से
अभिनेता बनने आए सलीम खान और शुरू से राइटर बनने की जुगत में लगे रहे जावेद अख्तर ने साथ मिलकर फिल्म ‘अधिकार’ की पहली पटकथा लिखी थी लेकिन जिस फिल्म की पटकथा ने उनके लिए कामयाबी के दरवाजे खोले, वह फिल्म थी ‘‘हाथी मेरे साथी’’। जानवरों की कहानी पर बनी इस फिल्म को हिंदी सिनेमा की डिज्नी फिल्म भी कहा जाता है। इस फिल्म ने राजेश खन्ना के स्टारडम को सुपरस्टारडम तक पहुंचाया। कम लोगों को ही पता होगा कि फिल्म ‘‘हाथी मेरे साथी’’ राजेश खन्ना की बैक टू बैक 16 सुपरहिट फिल्मों की लिस्ट की आखिरी फिल्म भी है। फिल्म ‘‘हाथी मेरे साथी’’ ने देश के हर फिल्म वितरण क्षेत्र में एक करोड़ रुपये की कमाई करने वाली पहली फिल्म का रिकॉर्ड भी बनाया।
सलीम जावेद के नाम चढ़ी पहली फिल्म
सलीम जावेद की लिखी पहली फिल्म ‘अधिकार’ के बारे में आप बाइस्कोप में पढ़ ही चुके हैं। लेकिन फिल्म की क्रेडिट्स में उनका नाम नहीं है। फिल्म ‘‘हाथी मेरे साथी’’ में सलीम जावेद का नाम पहली बार ओपनिंग क्रेडिट्स में स्क्रीनप्ले लिखने वालों के तौर पर आता है, हालांकि दोनों की चाहत थी कि फिल्म की क्रेडिट्स में उनका नाम ‘रिटेन बाई सलीम जावेद’ के तौर पर जाए। फिल्म ‘हाथी मेरे साथी’ में सलीम जावेद की एंट्री की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। लेकिन इसके बारे में बात करने से पहले आपको बताते हैं कि आखिर ‘हाथी मेरे साथी’ को बनाने वाले चिनप्पा देवर कौन हैं जिन्होंने दक्षिण भारतीय फिल्म निर्माताओँ के लिए हिंदी सिनेमा के रास्ते खोले। चिनप्पा देवर दरअसल मशहूर अभिनेता और राजनीतिज्ञ एम जी रामचंद्रन की फिल्मों के निर्माता रहे हैं।
संजीव कुमार ने सुझाया राजेश खन्ना का नाम
बात 1969 की है जब एमजीआर की सियासी गतिविधियां एकदम से बढ़ गईं और फिल्मों से उनकी दूरी बढ़ती गई। देवर तब बिना एमजीआर के छोटे बजट की एक फिल्म बनाने की तैयारी कर रहे थे और एक दिन उनके पड़ोसी निर्देशक श्रीधर ने उन्हें एक हिंदी फिल्म बनाने का आइडिया दिया। देवर के दिमाग में तुरंत अपनी ही फिल्म ‘देइवा चेयल’ की रीमेक बनाने का ख्याल आया। उन्होंने ओरीजनल फिल्म में थोड़ी फेरबदल की और कहानी सुनाने पहुंच गए संजीव कुमार के पास। संजीव कुमार ने खुद को फिल्म के रोमांटिक ट्रैक के हिसाब का नहीं पाया और चिनप्पा देवर को राजेश खन्ना से मिलने की सलाह दी। उन्हीं दिनों राजेश खन्ना ने जुबली कुमार के नाम से मशहूर अभिनेता राजेंद्र कुमार को उनका कार्टर रोड स्थित बंगला बेचने के लिए मना लिया था। जितनी रकम राजेंद्र कुमार ने इस बंगले की कीमत के तौर पर राजेश खन्ना से मांगी, राजेश खन्ना ने वही रकम फिल्म ‘हाथी मेरे साथी’ करने के नाम पर चिनप्पा देवर से मांग ली। सैंडो एम एम ए चिनप्पा देवर का जितना बड़ा नाम, उतना ही बड़ा उनका दिल। राजेश खन्ना ने जितनी रकम मांगी, वह सब की सब उन्होंने लाकर राजेश खन्ना के सामने रख दी। राजेश खन्ना ने उसी रकम से वह बंगला खरीद लिया।
निर्माता से मिली मुंहमांगी रकम
जब फिल्म ‘अंदाज’ बन रही थी तो सलीम जावेद का ज्यादातर वक्त राजेश खन्ना के इर्द गिर्द ही बीतता था। राजेश खन्ना को भी समझ आने लगा था कि फिल्म ‘अंदाज’ की मेकिंग में इन दोनों नए लड़कों की अहमियत कितनी है। फिल्म ‘आराधना’ सुपरहिट हो चुकी थी और चिनप्पा देवर फिर आ चुके थे, राजेश खन्ना से ये पूछने कि वो जो हाथी और हीरो वाली कहानी उन्होंने सुनाई थी और जिसका एडवांस भी वह दे चुके हैं, उस पर काम कब शुरू करना है। चिनप्पा देवर की खासियत ये रही कि वह मौके पर चौका मारने से कभी नहीं चूकते थे। इस बार उन्होंने राजेश खन्ना से बात यहां से शुरू की कि ‘आराधना’ के सुपरहिट होने के बाद उन्हें कितनी रकम राजेश खन्ना को और देनी है ताकि उनकी बढ़ी हुई मार्केट प्राइस वह मैच कर सकें। राजेश खन्ना को यही बात भा गई। वह बोले कि ‘आराधना’ फ्लॉप होती तो क्या मैं अपनी मार्केट प्राइस कम करने को राजी होता। फिल्म तो उसी रेट पर बनेगी जिस रेट पर तय हुई थी। उन्होंने चिनप्पा देवर से कुछ दिन बाद आने को कहा ताकि शूटिंग की तारीखें तय हो सकें।
सलीम खान के पास पहुंचे राजेश खन्ना
चिनप्पा देवर तो चेन्नई लौट गए पर राजेश खन्ना परेशान हो गए। उनको कहानी पसंद नहीं आ रही थी। फिल्म ‘हाथी मेरे साथी’ का नाम तब तक ‘प्यार की दुनिया’ था। फिल्म की कहानी लेकर राजेश खन्ना पहुंचे सलीम खान के पास और बोले कि इसे कुछ ऐसा कर दीजिए कि इस पर फिल्म बन सके क्योंकि पैसा अब वह लौटा नहीं सकते। खैर सलीम जावेद ने इसकी पटकथा शानदार तरीके से लिखी। फिल्म ब्लॉकबस्टर हुई और सलीम जावेद का नाम पूरी इंडस्ट्री के दिल औऱ दिमाग दोनों पर छप गया। फिल्म ‘हाथी मेरे साथी’ के निर्देशन की जिम्मेदारी एम ए थिरुमुगम को मिली जो चिनप्पा देवर के छोटे भाई थे। वाहिनी स्टूडियो में 1970 में फिल्म की शूटिंग शुरू हुई। फिल्म के सारे आउटडोर सीन ऊटी में फिल्माए गए।
किशोर के चार गानों पर रफी का एक गीत भारी
राजेश खन्ना और तनुजा ने इस फिल्म में कमाल का काम किया है। दोनों पर फिल्माए गए फिल्म ‘हाथी मेरे साथी’ के सारे गाने हिट रहे। फिल्म में मोहम्मद रफी का एक ही गाना था और ये गाना किशोर कुमार व लता मंगेशकर के गाए बाकी चारों गानों पर भारी पड़ा। ‘नफरत की दुनिया को छोड़ के प्यार की दुनिया में, खुश रहना मेरे यार…’, ये गाना जिसने भी सुना, तो थिएटर में तो रोया ही, थिएटर के बाहर तक लोग रोते हुए सिनेमाघरों से निकलते हुए देखे जाते थे। बच्चों के बीच फिल्म ‘हाथी मेरे साथी’ का क्रेज इतना था कि स्कूलों की बुकिंग तक हफ्ते हफ्ते भर पहले एडवांस में करानी होती थी। फिल्म की रिलीज की तारीख भी अलग अलग जगहों पर अलग अलग क्यों मिलती है, इसे बताने से पहले एक जरूरी किस्सा फिल्म के संगीत का।
ऐसे बदल गई फिल्म की संगीतकार जोड़ी
हुआ यूं कि फिल्म के संगीत के लिए चिनप्पा देवर ने शंकर जयकिशन को साइन किया था। लेकिन, वे दोनों समय लेकर संगीत बनाते थे और देवर को फिल्म के गाने जल्दी चाहिए थे ताकि वे फटाफट शूटिंग पूरी कर फिल्म को रिलीज कर सकें। उन्हें नाम सुझाया गया लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का। लेकिन, दोनों उन दिनों सुपरबिजी थे। देवर को पता चला कि लक्ष्मीकांत के बेटे का पहला जन्मदिन है। वह शाम को बिना बुलाए लक्ष्मीकांत के घर पहुंच गए। रास्ते में उन्होंने सोने की ढेर सारी गिन्नियां खरीदीं और लक्ष्मीकांत के घर पहुंचकर उस साल भर के बच्चे पर निछावर कर दीं और लौट आए। इसके बाद लक्ष्मीकांत को अपनी पत्नी की जिद पर ये फिल्म करनी प़ड़ी। चिनप्पा देवर ने लक्ष्मीकांत और प्यारेलाल को फिल्म के साइनिंग अमाउंट के तौर पर चांदी की प्लेट में रखकर एक एक लाख रुपये दिए। फिल्म के हिट होने के बाद इतनी ही रकम दोनों को और दी गई। किसी हिंदी फिल्म के संगीतकार को एक फिल्म में संगीत देने के लिए मिली ये तब तक की सबसे बड़ी रकम बताई जाती है।
दिल्ली के दो हफ्ते बाद मुंबई में रिलीज हुई फिल्म
फिल्म ‘हाथी मेरे साथी’ को राजेश खन्ना ने पहले दिल्ली और आसपास के शहरों में 1 मई को रिलीज कराया। फिल्म को शुरू के तीन दिनों में अच्छा रेस्पॉन्स नहीं मिला तो चिनप्पा देवर थोड़ा उदास थे। इस पर राजेश खन्ना ने कहा कि आप दिल्ली आ जाओ यहां बैठकर बात करते हैं। चिनप्पा देवर चेन्नई से ट्रेन से दिल्ली के लिए निकल पड़े और इधर सोमवार से फिल्म निकल पड़ी। फिल्म की इतवार के बाद इतनी माउथ पब्लिसिटी हुई कि सोमवार के बाद से सारे थिएटरों में सारे शोज हाउसफुल होने लगे। फिल्म निर्माता निर्देशक शक्ति सामंत के साथ मिलकर इसके बाद राजेश खन्ना ने फिल्म वितरण कंपनी शक्ति राज बनाई। वैसे ही जैसे यश चोपड़ा के साथ मिलकर उन्होंने यश राज फिल्म्स बनाई थी। शक्ति राज फिल्म्स ने बंबई में 14 मई को इस फिल्म को शानदार तरीके से रिलीज किया। फिल्म इतनी बड़ी सुपरहिट हुई कि एम जी रामचंद्रन ने चिनप्पा देवर को बुलाकर इस फिल्म को फिर से तमिल में बनाने को कहा। ‘नाल्ला नेरम नाम’ से 1972 में रिलीज हुई ये फिल्म तमिल में भी ब्लॉकबस्टर रही।
चलते चलते...
फिल्म ‘हाथी मेरे साथी’ की कहानी बस इतनी सी है कि एक बच्चे राजू की जान एक रामू नाम का एक हाथ बचाता है। बच्चा अनाथ हो जाता है तो रामू और उसके तीन और दोस्तों के साथ ही रहने लगता है। बड़ा होकर वह अपना सर्कस खोलता है और सारे जानवरों को अपने दोस्तों की तरह ही रखता है। राजू की दोस्ती रईस की बेटी तनु से होती है। दोनों की शादी होती है। एक बच्चा होता है और एक दिन तनु को गलतफहमी हो जाती है कि रामू उसके बच्चे को मारना चाहता है। बस, शंका का ये बीज रामू और तनु के बीच घमासान मचा देता है। रामू अपनी कुर्बानी देकर दोनों को फिर से मिला देता है।
(‘बाइस्कोप’ कॉलम में प्रकाशित यह आलेख बौद्धिक संपदा अधिकारों के तहत संरक्षित हैं।)