EXCLUSIVE: ओटीटी स्टार बिदिता बाग बोलीं, 'बड़े निर्देशकों से ट्यूनिंग के मामले में कच्ची हूं मैंं

EXCLUSIVE: ओटीटी स्टार बिदिता बाग बोलीं, 'बड़े निर्देशकों से ट्यूनिंग के मामले में कच्ची हूं मैंं

बिदिता बाग

दो साल पहले रिलीज हुई देश की पहली महिला स्टंट कलाकार रेशमा की बायोपिक ‘शोले गर्ल’ अब भी ओटीटी की अव्वल नंबर फिल्म मानी जाती है। इस फिल्म ने देसी ओटीटी जी5 की तरफ लाखों दर्शकों को आकर्षित किया। तब से लगातार बिदिता डिजिटल दुनिया में टॉप पर बनी हुई हैं। इस बीच उनकी एक फीचर फिल्म का ट्रेलर देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रिलीज किया। मुंबई से मौका मिलते ही अपनी कुछ दिनों के लिए अपनी जड़ों की ओर कोलकाता लौट जाने वाली बिदिता से ये एक्सक्लूसिव बातचीत की ‘अमर उजाला’ के सलाहकार संपादक पंकज शुक्ल ने।

बिदिता बाग

‘बाबूमोशाय बंदूकबाज’ के किरदार फुलवा और ‘द शोले गर्ल’ के किरदार रेशमा के बीच का दो साल का समय आपका कड़े संघर्ष का रहा। लेकिन, उसके बाद बीते दो साल काफी व्यस्त रहीं आप?

हां, फसल उगाने में मेहनत तो होती है। गेहूं की बालियां सहलाने का असली सुख उसी किसान को समझ आता है जिसने चार डिग्री तापमान में रात रात भर खेतों को सींचा हो। एक कलाकार के लिए भी संघर्ष का समय ऐसा ही होता है। उसे दिन रात खुद को खपाना होता है। अलग अलग किरदारों के लिए खुद को सींचना होता है। इसके बाद फसल पकने का समय आता है तो अच्छा ही लगता है। मैं शुक्रगुजार हूं उन सभी दर्शकों की जिन्होंने ओटीटी की दुनिया में मुझे इस तरह से स्वीकार किया।

बिदिता बाग

ओटीटी पर रिलीज हुई वेब सीरीज ‘भौकाल’ रही हो, ‘अभय’ हो या फिर ‘द मिसिंग स्टोन’, सारे किरदार एक दूसरे से काफी अलहदा रहे। ये इरादतन था या संयोग से?

सिनेमा में संयोग उन लोगों के हिस्से में आते हैं जिनके गॉडफादर होते हैं। मैं पिछले 10 साल से फिल्म इंडस्ट्री में हूं। ज्यादातर ऐसे निर्देशकों के साथ काम किया जो अपनी पहली फिल्म या पहली सीरीज बना रहे थे। लेकिन, संयोग ये है कि मेरी ही फिल्म या सीरीज से बड़ा नाम बनने के बाद ये निर्देशक मुझे ही भूल जाते हैं। पता नहीं ये इरादतन है या संयोग? लेकिन, मैंने किरदार चुनने में हमेशा अपना मकसद साफ रखा है। मुझे हर किरदार को ओढ़कर पहले से बेहतर कलाकार बनना है। सुपरस्टार बनने का मेरा कभी इरादा नहीं रहा।

‘बाबूमोशाय बंदूकबाज’ में बिदिता बाग

लेकिन, स्टार तो आप हैं। आपकी फिल्म ‘मेरा फौजी कॉलिंग’ का ट्रेलर देश के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने रिलीज किया!

कोरोना संक्रमण काल के बीच में ही रिलीज हुई ये फिल्म फौज की पृष्ठभूमि पर बनने वाली दूसरी फिल्मों से अलग फिल्म रही है। हिंदी फिल्मों के प्रचार प्रसार में आमतौर पर फिल्म की हीरोइन से न चर्चा होती है और न ही ये माना जाता है कि फिल्म की मार्केटिंग के लिए वे भी कोई अच्छा विचार दे सकती हैं। लेकिन, मुझे खुशी इस बात की हुई कि ‘मेरा फौजी कॉलिंग’ बनाने वालों ने विषय के मर्म को समझा और मुझे भी उतनी ही तवज्जो दी गई। इसे अगर आप मेरा स्टार बनना कहते हैं, तो मैं इसे स्वीकार करती हूं।

‘तीन दो पांच’ में बिदिता बाग

अभी एक वेब सीरीज आपकी आने वाली है ‘तीन दो पांच’। ट्रेलर के हिसाब से कहानी कुछ अतरंगी सी लगती है, क्या किरदार है इस सीरीज में आपका?

ये एक फिल्म के तौर पर बनी कहानी है जिसे ओटीटी पर सीरीज के तौर पर रिलीज किया जा रहा है। इसकी कहानी मध्यम आयवर्ग की किसी भी ऐसी महिला की कहानी हो सकती है जिसने करियर बनाने के दौर में परिवार पर ध्यान नहीं दिया। ये एक ऐसे दंपती की कहानी है जिसमें पत्नी किसी भी तरह मां का सुख पाना चाहती है और इसके लिए बच्चा गोद लेने को भी तैयार है। बस, यहां दिक्कत ये आ जाती है कि जो बच्ची उसे पसंद आती है, उसको अकेले घर नहीं लाया जा सकता।

बिदिता बाग

आप फैशन की टॉप मॉडल रहीं। शास्त्रीय गायन भी आपने सीखा है। मार्शल आर्ट्स आपको प्रोफेशनल लेवल का आता है। फिर, आप वहां क्यों नहीं हैं जहां आपके बाद आई चंद हीरोइन पहुंच गई हैं?

मैं फिल्म इंडस्ट्री में काम करने आई हूं। पंचायत या प्रपंच करना मुझे आता नहीं। मुझे लगता है कि हिंदी फिल्म निर्देशकों का काम करने का अपना एक अलग तरीका है। वह उनके साथ काम करना चाहते हैं जिनके साथ वह सहज हो सकें। तापसी पन्नू को अनुराग कश्यप या अनुभव सिन्हा का साथ मिला, मुझे नहीं मिला। मुझे लगता है कि तकदीर इसी को कहते हैं। सिनेमा में सिर्फ तदबीर से तस्वीर नहीं बदलती।

बिदिता बाग

मुंबई में इतने साल रहने के बाद भी आपके भीतर वही संतरागाछी की लड़की अब भी दिखती है, जिसके पिताजी बेटी के अभिनेत्री बनने के फैसले पर घर छोड़ गए थे? फिल्म जगत में खुद को कपट से बचाए रखना कितना मुश्किल है?

मैं निजी जीवन में एक्टिंग कर नहीं पाती। एक्टिंग मुझसे या तो रंगमंच पर होती है या फिर कैमरा ऑन होने पर। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में तमाम लोग इतना शिद्दत से एक्टिंग करते हैं कि उन्हें पता भी नहीं होता कि कब कैमरा बंद हो चुका है और जीवन में नकली बनकर रहना अच्छा नहीं है। कपट से अगर आपका मतलब लोगों की लल्लो चप्पो करना है तो मैं वह बिल्कुल नहीं कर पाती। मेरे गिनती के दोस्त हैं इंडस्ट्री में और मैं उनके साथ ही सबकुछ साझा करती हूं। खेमेबाजी में मैं कभी पड़ी नहीं। किसी निर्देशक की खास अभिनेत्री का तमगा भी नहीं हासिल कर पाई। इस पैमाने पर देखें तो मैंने खुद को कपट से दूर ही रखा है।

बिदिता बाग

आपने पिछली मुलाकात में कहा था कि बायोपिक में ईमानदारी न हो तो फिल्म लोगों को पसंद नहीं आती। इन दिनों बायोपिक की जो बाढ़ है उस पर आप क्या कहेंगी?

पहली बात तो यही कहना चाहती हूं कि मेरी फिल्म ‘द शोले गर्ल’ अब रिलीज होनी चाहिए थी। अब तो राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों से लेकर ऑस्कर तक में ओटीटी पर रिलीज हुई फिल्मों को सम्मान मिल रहा है। मेरी फिल्म ‘द शोले गर्ल’ को देखकर मुझे लोग ना जाने कहां कहां से संदेश भेजते रहते हैं। हर संदेश मेरा हौसला बढ़ाता है। बायोपिक में कलाकार को वह किरदार जीना होता है। जैसे फरहान अख्तर ने ‘भाग मिल्खा भाग’ में किया या आमिर खान ने ‘दंगल’ में किया। ‘द शोले गर्ल’ में मैंने भी यही करने की कोशिश की थी।

बिदिता बाग

तो ओटीटी की सुपरस्टार तो आप बन गईं, सिनेमा में यही पोजीशन हासिल करने की आपकी क्या रणनीति चल रही है?

सिनेमा रणनीति से नहीं बनता। ये बस बन जाता है। ‘मुगले आजम’ या फिर ‘शोले’ इसलिए क्लासिक फिल्में हैं क्योंकि इसमें तमाम सारे लोगों का संयोग बना है। मेरे साथ ये संयोग बनना सिनेमा में अभी बाकी है। तमाम बड़े निर्दशकों से मेरी बात होती है। मेरे काम की तारीफ भी वे करते हैं लेकिन शायद मुझे निर्देशकों से ट्यूनिंग बनाना नहीं आता। इस मामले में थोड़ा कच्ची हूं मैं। सिनेमा में कास्टिंग की फाइनल लिस्ट से मेरा नाम एकाएक हट जाने की और कोई वजह तो मुझे समझ नहीं आती।