World Tribal Day 2021: आदिम संस्कृति की रक्षा के लिए आगे आ रहे हैं युवा, दुनिया में लहरा रहे परचम

झारखंड की पहचान एक आदिवासी राज्य के रूप में होती रही है। यही पहचान इसकी विशेषता भी है। आदिवासी समाज की एक खास पहचान इसकी लोक गीतों और नृत्य के लिए भी है। झारखंड का मनमोहक नागपुरी लोकगीत पूरे भारत में प्रसिद्ध है।

World Tribal Day 2021: आदिम संस्कृति की रक्षा के लिए आगे आ रहे हैं युवा, दुनिया में लहरा रहे परचम

झारखंड की पहचान एक आदिवासी राज्य के रूप में होती रही है। यही पहचान इसकी विशेषता भी है। आदिवासी समाज की एक खास पहचान इसकी लोक गीतों और नृत्य के लिए भी है। झारखंड का मनमोहक नागपुरी लोकगीत पूरे भारत में प्रसिद्ध है। संगीत में उपयोग में आने वाला वाद्य यंत्र पूरी तरह से देशी होता है जिसकी धुन अपने आप में मनमोहक है। इसके साथ ही सोहराई और कोहबर जैसी समृद्ध पेंटिंग कला है। राज्य में आदिवासी खानपान भी अनूठा है। आज की आधुकनिकता में गुम होते राज्य की कला और संस्कृति को एक बड़ा युवा वर्ग है सहेजने पर काम कर रहा है। ऐसे युवाओं से आज मिलते हैं।

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दुनिया के113 देशों में फहराया झारखंडी संस्कृति का परचम

पद्मश्री मुकुंद नायक को झारखंडी संस्कृति के ब्रांड एंबेसडर माने जाते हैं। उनके पुत्र नंदलाल नायक देश में ही नहीं विदेशों में भी झारखंडी आदिवासी संस्कृति का परचम लहरा रहे हैं। नंदलाल नायक ने दुनिया के 113 देशों में झारखंडी आदिवासी लोकसंगीत का कार्यक्रम प्रस्तुत किया है। उन्होंने दुनिया बेहतरीन फिल्म डायरेक्टरों के साथ काम किया है। इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र के जेनेवा मुख्यालय में वर्ष 1998,1999 और 2000 में विश्व आदिवासी दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में भारत की तरफ से कार्यक्रम प्रस्तुत किया। हाल ही में उन्होंने धुमकुड़िया नाम से एक फिल्म बी बनाई है। इस फिल्म के डायरेक्शन के साथ संगीत की बड़ी तारीफ हुई है। फिल्म धुमकुड़िया को विश्व के प्रसिद्ध कांस फिल्म फेस्टिवल के लिए भी चुना गया। इस फिल्म प्रदर्शन 12 जुलाई 2021 को किया गया। नंदलाल नायक बताते हैं कि लोककला संगीत को जीवित रखने के लिए इससे जुड़े लोगों की आमदनी बढ़ाने पर काम करने की जरूरत है। इससे नए युवा इस क्षेत्र में कदम रखेंगे।

पालने में दिख रहे पूत के पांव, लोकसंगीत को दे रही बढ़ावा

पलक सोनी की उम्र महज 14 वर्ष है। मगर उन्होंने अभी तक 20 से ज्यादा लोकगीत गाए हैं। धुर्वा के सेक्टर दो में केराली स्कूल में पढ़ने वाली पालक बताती हैं कि उन्होंने पलक ने आठ साल की उम्र से गाना सीखना शुरू किया था। पलक बताती है कि ये उनके लिए पहला मौका है जब किसी बड़े प्लेटफार्म पर उन्होंने गाना गाया है। उनके घर में कला और संगीत का माहौल है। वहीं उनके दोनों मामा लोकसंगीत से जुड़े हुए हैं। पलक को वो दोनों गायन के टिप्स देते रहते हैं। उन्होंने पहली बार बाल फीचर फिल्म गिलुआ के लिए गीत गाया था। 90 मिनट की इस फिल्म में कई बेहतरीन गीत हैं। इस फिल्म का कई राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में प्रदर्शन किया गया। पलक बताती है कि वो अभी भी संगीत सीख रही हैं। हर रोज रियाज करती हैं। स्कूल में उनके दोस्त उनसे प्रेरित होकर लोकसंगीत और कला सीख रहे हैं। वो बताती हैं कि उनका लक्ष्य झारखंडी संगीत को बालीवुड तक पहचान दिलाने की है।