आईआईटी कानपुर के शोध में खुलासा: धान की फसलों के दुष्प्रभाव से 50 सालों से लगातार गिर रहा भूजल स्तर

अब कृषि मांग को पूरा करने के लिए भूजल का तेजी से अवशोषण किया जा रहा है। सबसे अधिक गिरावट कुरुक्षेत्र, पटियाला व फतेहाबाद जिले और पानीपत व करनाल में हुआ है।

आईआईटी कानपुर के शोध में खुलासा: धान की फसलों के दुष्प्रभाव से 50 सालों से लगातार गिर रहा भूजल स्तर

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धान की फसलों ने भूजल पर दुष्प्रभाव डाला है। पिछले 50 सालों से भूजल स्तर लगातार गिरता जा रहा है। यह चौंकाने वाला खुलासा आईआईटी के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रो. राजीव सिन्हा ने अपने शोध में किया है। साथ ही ये रिपोर्ट दी है कि अगर जल्द भूजल प्रबंधन के लिए उचित रणनीति तैयार नहीं हुई तो स्थिति बेकाबू हो सकती है। 


पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय और केंद्रीय भूजल बोर्ड के निर्देशन में आईआईटी के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रो. राजीव सिन्हा व पीएचडी स्कॉलर्स डॉ. सुनील कुमार जोशी की देखरेख में टीम ने पंजाब व हरियाणा में भूजल स्तर पर अध्ययन किया।


प्रो. सिन्हा के मुताबिक हरियाणा में धान की खेती का क्षेत्र वर्ष 1966-67 में 192,000 हेक्टेयर था, जो वर्ष 2017-18 में बढ़कर 1422,000 हेक्टेयर पहुंच गया। इसी तरह पंजाब में धान का धान का क्षेत्र वर्ष 1966-67 में 227,000 हेक्टेयर था, जो वर्ष 2017-18 में बढ़कर 3064,000 हेक्टेयर पहुंच गया है।

अब कृषि मांग को पूरा करने के लिए भूजल का तेजी से अवशोषण किया जा रहा है। सबसे अधिक गिरावट कुरुक्षेत्र, पटियाला व फतेहाबाद जिले और पानीपत व करनाल में हुआ है। प्रो. सिन्हा के मुताबिक यह हश्र सिर्फ पंजाब व हरियाणा में नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश और बिहार के गंगा किनारे वाले जिलों का भी है। प्रो. सिन्हा ने सुझाव दिया कि भूजल के बजाए सिंचाई के अन्य साधनों का उपयोग बढ़ाया जाए। जैसे वर्षा का जल संचयन किया जाए, वर्ना परिणाम अच्छे नहीं होंगे।