केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार : सात से 2022 के चुनावी चक्रव्यूह का सातवां द्वार तोड़ने की तैयारी

केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार में दिखी यूपी की फिक्र, सामाजिक व क्षेत्रीय गणित साधने की कोशिश प्रदेश से अब 15 मंत्री... सात नए मंत्रियों में अगड़े, पिछड़े व एससी चेहरों को मौका

केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार : सात से 2022 के चुनावी चक्रव्यूह का सातवां द्वार तोड़ने की तैयारी

विस्तार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल के पहले मंत्रिमंडल विस्तार में चुनावी जरूरतों के हिसाब से सामाजिक व क्षेत्रीय गणित साधने की कोशिश की है। यूपी के सात नए चेहरों में एक अगड़े के साथ चार पिछड़े और पहली बार अनुसूचित जाति के दो नए चेहरों को जगह देकर पहले से मौजूद चेहरों के साथ सामाजिक व क्षेत्रीय संतुलन बनाने की कोशिश की गई है। इससे पीएम मोदी और भाजपा हाईकमान की 2022 के विधानसभा चुनाव में यूपी फतह की फिक्र साफ  झलक रही है। सात नए चेहरों से एक तरह से 2022 के चुनावी चक्रव्यूह के सातवें यानी अंतिम द्वार को तोड़ने की कोशिश का संदेश दिया है।


विस्तार में न सिर्फ  जातीय व क्षेत्रीय संतुलन साधने बल्कि सोशल इंजीनियरिंग की पहचान रहे पुराने चेहरों का विकल्प भी तलाशने की कोशिश भी की गई है। अनुप्रिया पटेल को कैबिनेट में शामिल करके जहां गठबंधन को मजबूती से चलाने का संदेश दिया गया है तो संतोष गंगवार को हटाने की एवज में दो कुर्मी चेहरों को शामिल करके भाजपा के परंपरागत कुर्मी वोटों को साधे रखने का प्रयास किया गया है। विस्तार के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल में पीएम मोदी सहित यूपी से अब सर्वाधिक 15 मंत्री हो गए हैं। 


पीएम मोदी ने कौशल किशोर और अजय मिश्र जैसे चेहरों को जगह देकर यह संदेश दिया है कि केंद्रीय नेतृत्व की नजर एक-एक जनप्रतिनिधि पर है। मोहनलालगंज से सांसद कौशल किशोर ने जिस तरह कोरोना महामारी और पंचायच चुनाव के दौरान सार्वजनिक रूप से सवाल उठाए थे, उसे देखते हुए उनको मंत्रिमंडल में शामिल करके पीएम ने संभवत: यह साफ  करने की कोशिश की है कि भाजपा पूरी तरह लोकतांत्रिक परंपराओं पर भरोसा करती है और अभिव्यक्ति की आजादी की भी पक्षधर है। साथ ही कौशल को सरकार का हिस्सा बनाकर उन्हें भी व्यवस्थाओं को सुधार कर खुद को साबित करने का मौका दिया है।

इस तरह साधा गणित
मोदी के मंत्रिमंडल में अब तक यूपी से खुद मोदी सहित पिछड़े वर्ग के चार, दो ठाकुर, एक ब्राह्मण, एक सिख, एक पारसी शामिल थे। सात नए मंत्रियों को शामिल करने के बाद प्रदेश के 15 मंत्रियों में सात पिछड़े, दो ब्राह्मण, दो ठाकुर, एक सिख, एक पारसी और अनुसूचित जाति के दो चेहरे हो गए हैं। पिछड़ों में कुर्मी जाति से संबंधित बृज क्षेत्र के संतोष गंगवार को मंत्रिमंडल से हटाया गया है तो पूर्वांचल में गोरखपुर से लगे महराजगंज से छह बार के सांसद कुर्मी बिरादरी के पंकज चौधरी और वाराणसी से लगे मिर्जापुर से दूसरी बार की सांसद व भाजपा के सहयोगी अपना दल की अनुप्रिया पटेल को शामिल कर कुर्मियों की नाराजगी से बचने की कोशिश की गई है।

साथ ही बृज क्षेत्र को लोगों को संतुष्ट करने के साथ जातीय गणित के मद्देनजर सोशल इंजीनियरिंग के बड़े चेहरे कल्याण सिंह के करीबी बदायूं के बीएल वर्मा तथा बसपा व सपा छोड़कर भाजपा में आए आगरा से सांसद डॉ. एसपी सिंह बघेल को मंत्री बनाकर इस क्षेत्र के लोध, पाल, बघेल, गड़रिया जैसी जातियों को जोड़े रखने की कोशिश की गई है। साथ ही भाजपा के लिए पिछड़े वर्ग के नए चेहरों को आगे लाकर भविष्य की जरूरतों को पूरा करने की तैयारी की गई है।
इस तरह भी कोशिश
लखनऊ से लगी मोहनलालगंज संसदीय सीट से दूसरी बार सांसद कौशल किशोर और जालौन से पांचवी बार के सांसद भानुप्रताप वर्मा को शामिल कर अवध व बुंदेलखंड क्षेत्र की एससी आबादी को भाजपा के साथ लामबंद रखने की कोशिश की गई है। हरजीत सिंह पुरी को तरक्की देकर रुहेलखंड से लेकर लखनऊ, कानपुर सहित कई शहरों में मौजूद सिख मतदाताओं को पार्टी के साथ और मजबूती से जोड़ने की कोशिश की गई है। भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष चंदौली से सांसद डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय के बाद लखीमपुर खीरी से दूसरी बार सांसद अजय मिश्र टेनी को भी विस्तार में जगह दी गई है। इस प्रकार मोदी मंत्रिमंडल में प्रदेश से दो ब्राह्मण चेहरे हो गए हैं। कहा जा रहा है कि पिछले दिनों प्रदेश के ब्राह्मणों में भाजपा को लेकर नाराजगी की खबरों को देखते हुए भाजपा हाईकमान ने यह फैसला किया है ।

महिला समीकरण
अनुप्रिया पटेल को मंत्रिमंडल में शामिल करने के बाद प्रदेश से अब तीन महिलाएं मोदी की कैबिनेट में हो गई हैं। अनुप्रिया से पहले अमेठी से सांसद स्मृति ईरानी तथा फतेहपुर से सांसद साध्वी निरंजन ज्योति ही केंद्र सरकार में मंत्री थीं।

मंत्रियों के लिए भी कठिन चुनौती
जिन चेहरों को जगह मिली है उन्हें एक तरह से यह संदेश भी दे दिया गया है कि उन्हें अपनी भूमिका पर खरा उतरना होगा। अपने-अपने वर्गों के बीच पकड़ व पहुंच को साबित कर खुद की प्रासंगिकता को भी प्रमाणित करना होगा। जिस तरह प्रधानमंत्री ने मंत्रिमंडल से कई वरिष्ठ मंत्रियों, खासतौर से बरेली सीट से कई बार के सांसद संतोष गंगवार की छुट्टी की है, उससे यह बता दिया है कि खुद को साबित करने के अलावा इन सबके सामने कोई विकल्प नहीं है। साबित न कर पाए तो नया रुतबा बरकरार नहीं रह पाएगा।