खगोलीय घटना : लंबी पूंछ वाले टूटते तारों का दिखेगा दुर्लभ नजारा, आप भी बन सकते हैं गवाह

खगोलीय घटना : लंबी पूंछ वाले टूटते तारों का दिखेगा दुर्लभ नजारा, आप भी बन सकते हैं गवाह

Astronomical event

खगोल विज्ञान में रुचि रखने वालों के लिए गुरुवार की रात बेहद खास होने वाली है जब उन्हें आसमान से टूटते हुए तारों (उल्कापिंड) की बारिश का गवाह बनने का मौका मिलेगा। खास बात है कि इसके लिए किसी दूरबीन की आवश्यकता नहीं होगी, नंगी आंखों से ही इस खगोलीय घटना का दीदार किया जा सकेगा। एक घंटे में 20 से ज्यादा टूटते हुए तारे नजर आएंगे। इसकी चमक दक्षिणी गोलार्ध में ज्यादा साफ दिखेगी। इस दौरान ये आसमान में लंबी पूंछ के साथ रोशनी फैलाते हुए दिखाई देंगे।

गोरखपुर के वीर बहादुर सिंह नक्षत्रशाला के खगोलविद अमर पाल सिंह ने बताया कि दुनियाभर के कई देशों में आसमान से उल्कापिंडो की बारिश को देखा जा सकता है। यूं तो पूरी रात इस खगोलीय घटना का लुत्फ दक्षिण पूर्व दिशा में उठाया जा सकता है। मगर रात दो बजे ये खगोलीय घटना अपने चरम पर होगी। 

उन्होंने बताया कि गुरुवार को एटा एक्वारिड्स उल्का बौछार अपने चरम पर रहेगा। यह बौछार 1986 में हेली धूमकेतु के छोड़े गए मलबे के पास से धरती के गुजरने के कारण हो रही है। जिसकी स्पीड अभी धीमी है, लेकिन गुरुवार को यह सबसे ज्यादा होगी। इस बौछार को दक्षिणी गोलार्ध में सबसे अच्छा देखा जा सकता है। हालांकि, यह धरती के अधिकतर हिस्सों में भी दिखाई देगी। उल्का बौछार को देखने का सबसे अच्छा तरीका बिना किसी उपकरणों के देखना है। आप बस किसी अंधेरे जगह को चुन लें और वहां से साफ आसमान की तरफ देखें।

अप्रैल और मई में दिखता है यह नजारा
एटा एक्वारिड्स का नाम एक्वेरियस (कुंभ) नक्षत्र के नाम पर रखा गया है। यह हर साल हर अप्रैल और मई से गिरते दिखाई देते हैं। उत्तरी गोलार्ध के लोगों के लिए आकाश में चमक बहुत अधिक नहीं होगी, इसलिए इन्हें दक्षिण दिशा में क्षितिज पर देखना चाहिए। वहीं, दक्षिणी गोलार्ध में रहने वाले लोगों को सितारों की यह बौछार काफी चमकीली दिखाई देगी।

इसलिए देते हैं दिखाई
उल्कापिंड वे टुकड़े होते हैं जो प्रति घंटे 148,000 मील तक की गति से वायुमंडल में प्रवेश करते हैं। धरती के वायुमंडल के साथ घर्षण के कारण बर्फ, भाप और चट्टान से बने ये पिंड रोशनी की लकीर छोड़ते हुए दिखाई देते हैं। इनके पैदा होने का प्रमुख कारण धरती के किसी बड़े धूमकेतु के रास्ते से गुजरना होता है। ये धूमकेतु काफी समय पहले गुजरते हुए अपने पीछे छोटे-छोटे टुकड़े छोड़ते जाते हैं। इसलिए, हर साल तारों की ये बरसात एक निश्चित तिथि पर दिखाई देती है।