देश की राजनीति पर अब तक है संपूर्ण क्रांति आंदोलन की छाप, PM मोदी से लेकर CM नीतीश व लालू तक उसी की देन

Sampoorn Kraanti Diwas ठीक 47 साल पहले तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ जयप्रकाश नारायण ने पटना के गांधी मैदान में संपूर्ण क्रांति का बिगुल फूंका था। पीएम मोदी से लेकर सीएम नीतीश व लालू यादव तक कई नेता उसी आंदोलन की उपज हैं।

देश की राजनीति पर अब तक है संपूर्ण क्रांति आंदोलन की छाप, PM मोदी से लेकर CM नीतीश व लालू तक उसी की देन

Sampoorn Kranti Diwas आज पांच जून को संपूर्ण क्रांति दिवस (Sampoorna Kranti Diwas) है। 47 वर्ष पहले इसी दिन पटना के गांधी मैदान (Patna Gandhi Maidan) में जय प्रकाश नारायण (JP) ने तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के तानाशाही शासन के खिलाफ संपूर्ण परिवर्तन का नारा दिया था। उसके  बाद क्रांति की जो लपटें उठीं, उससे पूरे देश की राजनीति में एक नए युग की शुरुआत हुई। इससे बिहार गहरे रूप से प्रभावित हुआ था। असर ऐसा हुआ कि उस दौर के नेताओं के दायरे से बिहार की राजनीति आज भी बाहर नहीं निकल पाई है। राष्‍ट्रीय जनता दल (RJD) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) हों या मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar), दोनों तब जय प्रकाश नारायण (Jai Prakash Narayan) के साथ आंदोलन में साथी थे। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) भी जेपी के आंदोलन की ही उपज हैं।

तेजस्‍वी-चिराग को भी उसी जमीन का सहारा

बिहार की राजनीति की बात करे तो हाल के दिनों में नई पीढ़ी के तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) और चिराग पासवान (Chirag Paswan) ने कुछ उम्मीदें जरूर जगाई हैं, लेकिन उन्हेंं भी इसके लिए उसी जमीन का सहारा लेना पड़ रहा है, जिसे जेपी ने उर्वर बनाया था। तेजस्वी यादव बिहार में डेढ़ दशक तक राज करने वाले जेपी आंदोलन के ध्वजवाहक रहे लालू पसाद यादव के पुत्र हैं, तो चिराग पासवान पटना से लेकर दिल्ली तक की सियासत में दशकों तक धुरी व जेपी के सहयोगी रहे रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) के वारिस हैं। दोनों दूसरी पीढ़ी के नेता हैं और जेपी के जात-पात, तिलक-दहेज और भेद-भाव मिटाने के संकल्प को साकार करने के लिए एड़ी-चोटी का पसीना बहा रहे हैं, लेकिन फिलवक्त बिहार की सियासत में तीन दशक से सीधे जेपी के ध्वज वाहक ही परिवर्तन की इबारत लिख रहे हैं। कह सकते हैं कि रामविलास पासवान की राजनीति जेपी आंदोलन से पहले शुरू हो गई थी। वे पिछली सदी के सातवें दशक में पुलिस उपाधीक्षक की नौकरी छोड़कर राजनीति में आ गए थे। लेकिन वे भी जेपी के सहयोगी रहे।

जेपी के ध्वजवाहकों के हाथों में देश व बिहार

जेपी ने तब कहा था संपूर्ण क्रांति से मेरा तात्पर्य समाज के सबसे अधिक दबे-कुचले व्यक्ति को सत्ता के शिखर पर देखना है। बिहार से उठे जेपी के संपूर्ण क्रांति के नारे का असर पूरे देश में देखने को मिला था। वर्तमान में बिहार से लेकर देश तक की बागडोर जेपी के ध्वजवाहकों के हाथों में है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) तक जेपी के 1974 आंदोलन के ही उपज हैं। बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2020) के दौरान प्रधानमंत्री अपने लोकप्रिय कार्यक्रम मन की बात (Mann Ki Baat) में इसका जिक्र भी कर चुके हैं।

जेपी के साथ थे लालू-नीतीश व सुशील मोदी

बिहार की वर्तमान राजनीति में सक्रिय लालू प्रसाद यादव, सुशील मोदी, शिवानंद तिवारी, नरेंद्र सिंह आदि उसी छात्र युवा संघर्ष वाहिनी का हिस्सा थे, जिसका नेतृत्व जय प्रकाश नारायण करते थे। बिहार बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) के मुख्यालय प्रभारी और जेपी आंदोलन में शरीक रहे सुरेश रूंगटा बताते हैं कि तब जेपी राजनीतिक पार्टियों के बजाय छात्रों और नौजवानों को जगा रहे थे। इसके पीछे वजह यह थी कि सन् 1967 से 1972 के बीच कई राज्यों में गैर-कांग्रेसी सरकारें बनी थीं, लेकिन सभी ने देश को निराश किया था। बिहार में महामाया प्रसाद सिन्हा के नेतृत्व में गैर-कांग्रेसी सरकार बनी थी, उसमें कम्युनिस्ट पार्टियों से लेकर जनसंघ तक की सहभागिता थी। महामाया प्रसाद सरकार नहीं चला पाए थे और बिहार में 11 महीने में ही सरकार गिर गई थी।

तब फ्रांस के आंदोलन से मिली थी प्रेरणा

सुरेश रूंगटा बताते हैं कि 1965 से 70 के दौरान दुनिया भर में, खासकर फ्रांस में नौजवानों का जबरदस्त आंदोलन हुआ था। वहीं से हिंदुस्तान के छात्रों को प्रेरणा मिली थी। वहीं, 1973 में गुजरात में छात्रों के आंदोलन की वजह से चिमन भाई पटेल की सरकार बदल गई थी। गुजरात के आंदोलन को भी जेपी ने समर्थन दिया था। तब जेपी सर्वोदय आंदोलन में थे, लेकिन जब उससे कुछ नहीं हुआ तो छात्र और नौजवानों की ताकत को संगठित करने की पहल की।