भारतीय दिग्गज सुनील गावस्कर का दावा, BCCI को बदनाम करने का प्रयास करती है ऑस्ट्रेलियाई मीडिया
भारतीय टीम के पूर्व महान बल्लेबाज और कप्तान सुनील गावस्कर ने दावा किया है कि विदेशी मीडिया भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड यानी बीसीसीआइ को बदनाम करती है। विदेशी मीडिया बीसीसीआइ को ब
मैच के दिनों को छोड़कर जो बाकी समय होता है, उसमें खिलाड़ी किन चीजों से डरता है? यह समय उसके आराम करने का, अपने पसंदीदा काम करने का, यहां तक कि कुछ दर्शनीय स्थलों की यात्रा करने का होता है लेकिन उसे इस बात की भी आशंका होती है कि मीडिया के पास मैदान पर हो रहे खेल के बारे में लिखने के लिए कुछ भी नहीं है। मीडिया उन स्टोरी की तलाश कर रहा है जिसमें अटकलों का पुट ज्यादा है।
दूसरे और तीसरे टेस्ट के बीच लंबे अंतराल के दौरान यह खबरें आ रही थीं कि अगर भारतीय टीम को ब्रिसबेन में क्वारंटाइन किया जाता है तो वह चौथे टेस्ट के लिए वहां नहीं जाना चाहेगी। इससे पहले भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया पहुंचने पर सख्त नियमों के साथ क्वारंटाइन हुई थी जिसमें वे अपने कमरे तक ही सीमित थे और मैदान व होटल के अलावा कहीं बाहर नहीं जा सकते थे। जो कोई भी इस क्वारंटाइन से गुजरता है तो वह जानता है कि यह कितना कठिन है। इसलिए यह समझ में आता है कि भारतीय टीम को क्वारंटाइन को लेकर कैसा लगता होगा।
अगर कहानी उस तक ही सीमित होती, तो ठीक होता, लेकिन ऑस्ट्रेलियाई मीडिया ने इसमें मसाला जोड़ते हुए बीसीसीआइ और उसकी ताकत को लेकर पुरानी बातों को बाहर लाने का फैसला किया। तो अब कहानी यह बन गई कि अगर ब्रिसबेन में टेस्ट आयोजित किया जाता है तो बीसीसीआइ इस दौरे से टीम को हटा लेगा। बीसीसीआइ के किसी भी व्यक्ति को यह कहते हुए नहीं सुना गया था। यह केवल एक प्रकार की कहानी है जिसके जरिये ऑस्ट्रेलियाई मीडिया बीसीसीआइ को एक खराब बिगड़ैल बच्चा बताती है।
इसी तरह 2007-08 में हरभजन सिंह और एंड्रयू साइमंड्स के बीच विवाद के दौरान बीसीसीआइ के खिलाफ गलत खबरें ऑस्ट्रेलियाई मीडिया ने चलाई थीं कि अगर भारतीय ऑफ स्पिनर के खिलाफ फैसला वापस नहीं हुआ तो भारतीय बोर्ड यह दौरा बीच में छोड़ देगा और एक विमान भेजकर टीम को वापस बुला लेगा। कोई विमान नहीं पहुंचा था और टीम को वापस घर बुलाने का कोई इरादा नहीं था। अब भी ऑस्ट्रेलियाई मीडिया ऐसी खबरों को सामने लाता है।
निश्चित रूप से उस समय आइपीएल शुरू नहीं हुआ था इसलिए बीसीसीआइ पर पैसे के बल पर नशे में होने का आरोप लगाने का कोई सवाल ही नहीं था। अब, निश्चित रूप से इन चीजों को लेकर बीसीसीआइ को घेरा जा रहा है लेकिन केवल अजीब मीडियाकर्मी यह इंगित कर रहे हैं कि बीसीसीआइ ने अपनी टीम भेजकर ऑस्ट्रेलियाई बोर्ड को बचाया है और क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने इस दौरे से 300 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर (करीब 23 अरब रुपये) कमाए हैं।
हर एक कदम पर बीसीसीआइ को बदनाम करने के अपने एक लक्ष्य के साथ अधिकांश विदेशी मीडिया यह स्वीकार करने में विफल हुआ है कि कैसे बीसीसीआइ ने उन बोर्ड के खिलाडि़यों के साथ आइपीएल के माध्यम से बड़ी आय हासिल कर ली। तथ्य यह है कि भारत और देश के उद्योगपतियों द्वारा इस खेल में लगाए गए धन को भुला दिया गया है। भारतीय प्रसारकों को टीवी अधिकार के लिए बड़ी राशि का भुगतान करना पड़ता है।
इस बात से सभी परेशान हैं कि बीसीसीआइ बड़ा हिस्सा ले रहा है लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि उनमें से ज्यादातर फंड भारत के ही हैं। यह बात साझा करने की है कि जब अधिकांश अन्य देश भी इस खेल में योगदान नहीं देते हैं तो यह हिस्सा कैसे बराबर हो सकता है। जहां एक देश में मुश्किल से 100 राज्य और क्लब टीमें हैं जबकि भारत में लाखों क्लब और क्रिकेटर्स हैं। इन क्लबों और क्रिकेटरों को बनाए रखने के लिए धन की आवश्यकता होती है। तो अगली बार कुछ जोकर कहते हैं कि शेयर बराबर होना चाहिए तो बस उसे बताएं कि यह क्यों नहीं हो सकता और कभी बराबर नहीं होना चाहिए।