अमर उजाला अभियान अपनत्व : घरों में कपड़े-बर्तन साफ करूंगी, जिगर के टुकड़े अनाथ आश्रम नहीं भेजूंगी
कोरोना महामारी में बेटा-बहू खोने वाली दादी फफकते हुए बोली राजधानी में अब तक 142 बच्चे आए सामने, 42 के माता-पिता दोनों की कोरोना से मौत दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग की टीम का सर्वे जारी, और भी केस आ सकते हैं सामने
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साहब, इस बुढ़िया के पास बोलने के लिए कुछ नहीं बचा। मिट्टी में खेलते-खेलते ब्याह हो गया और समझदार जब बनी तब तक विधवा हो गई। मजदूरी करके बेटा पाला तो देखो भगवान ने उसे भी छीन लिया। पिछले साल बेटा और अब बहू को कोरोना लील गया। आंखों में आंसू भी नहीं आते। उम्र के इस पड़ाव में दो पोते की जिम्मेदारी मेरे सिर पर है। इनकी परवरिश के लिए चाहे अब मुझे कुछ भी काम करना पड़े, मैं करूंगी लेकिन बच्चों को अनाथ आश्रम नहीं भेजूंगीं। ये कहते कहते फफक पड़ीं 65 वर्षीय दादी कहती हैं मैं घरों में जाकर बर्तन साफ भी करूंगी, झाडू भी लगाऊंगी लेकिन अपने बच्चों को अपनी आंखों से दूर नहीं होने दूंगी...
सोहन (12) और मोहन (07) की देखभाल कर रही दादी कहती हैं कि वे अपने बच्चों को अनाथ आश्रम नहीं भेजने वालीं। जितना हो सकेगा, वह खुद इनका पालन पोषण करेंगीं। अगर कोई मदद करनी है तो सरकार यहीं घर में रहकर ही कर दे।वहीं पांच वर्षीय आमोद अपनी मां और पिता दोनों को खो चुका है।
पिछले महीने लोकनायक अस्पताल में उसकी गर्भवती मां की कोरोना से मौत हो गई। जबकि उससे पहले 26 अप्रैल को 35 वर्षीय पिता ने भी संक्रमण के चलते दम तोड़ दिया था। फिलहाल दिल्ली के एक झुग्गी इलाके में आमोद अपनी बुआ सवित्रा के पास है। आमोद, मोहन और सोहन की तरह दिल्ली में और भी बच्चे हैं जिनके सिर से माता-पिता का साया उठ चुका है।
दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) के अनुसार अब तक 142 बच्चों की जानकारी मिली है जिनमें से 100 ने अपनी मां या पिता को महामारी में खोया है। जबकि 42 बच्चों के माता-पिता दोनों की संक्रमण से मौत हुई है।
आयोग की सदस्य रंजना प्रसाद ने यह जानकारी देते हुए बताया कि पिछले साल कोरोना की पहली लहर में ऐसे मामले सामने नहीं आए थे लेकिन इस बार दूसरी लहर ने काफी परिवारों को चपेट में लिया है। सदस्य रंजना प्रसाद ने बताया कि बच्चों के अनाथ होने की यह संख्या और भी अधिक हो सकती है क्योंकि आयोग का सर्वे अभी जारी है। अभी ये बच्चे परिजन या रिश्तेदारों की निगरानी में हैं।
अंतिम विकल्प होना चाहिए अनाथ आश्रम
प्रोत्साहन इंडिया फाउंडेशन की संस्थापक सोनल कपूर बताती हैं कि बच्चों के लिए अनाथ आश्रम अंतिम विकल्प होना चाहिए क्योंकि कितनी भी कोशिश करें ले परिवार जैसी देखभाल आश्रम में नहीं पूरी की जा सकती। उन्होंने कहा कि सोहन और मोहन की परवरिश उनकी दादी कर रही है जोकि घरों में बर्तन साफ करके परिवार चला रही हैं। ऐसे परिवारों की मदद सरकार को सीधेतौर पर करना चाहिए। उन्होंने ये भी कहा कि महामारी में बच्चे अनाथ हुए हैं लेकिन इनसे कहीं ज्यादा यौन शोषण के शिकार भी हुए हैं। उनके लिए भी सरकार को मदद करनी चाहिए।
दिल्ली से केवल तीन बताए थे केस
30 मई को सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रीय आयोग ने जानकारी दी कि 7,464 बच्चों ने एक माता या पिता को खोया। जबकि 1,742 ने माता-पिता दोनों को कोरोना महामारी में खो दिया। जबकि 25 मई को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने देश भर में ऐसे 577 मामले मिलने की जानकारी दी थी जिनमें दिल्ली से केवल तीन केस थे।
मृत्यु प्रमाण पत्र पर कोरोना नहीं
जेजे झुग्गी इलाके में एक महिला ने बताया कि उनके देवर और देवरानी की मौत कोरोना से हुई लेकिन मृत्यु प्रमाण पत्र पर कोरोना की जानकारी नहीं है क्योंकि उन्होंने जांच नहीं कराई थी। बाल अधिकार को लेकर काम कर रहे संगठनों ने भी इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि ऐसे कई मामले देखने को मिल रहे हैं।
यहां से ले सकते हैं मददआयोग की सदस्य रंजना प्रसाद के अनुसार राजधानी में करीब 80 अनाथ आश्रम हैं। यहां बच्चों को सभी प्रकार की सुविधाएं दी जा रही हैं। बाल अधिकार से जुड़ी शिकायत के लिए हेल्पलाइन 9311551393 या फिर स्रष्श्चष्ह्म्ञ्चद्धशह्लद्वड्डद्बद्य.ष्शद्व पर सहायता प्राप्त कर सकते हैं। सुबह नौ से रात 11 बजे तक हेल्पलाइन चालू रहती है लेकिन इसके बाद भी कोई कॉल आता है तो 24 घंटे के अंदर उससे संपर्क किया जाता है।