ग्रामीणों का आंदोलनकारियों के खिलाफ बढ़ता जा रहा गुस्सा, कुंडली बार्डर से उखाड़ देंगे आंदोलन के तंबू’
डीएसपी मुख्यालय से वीरेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि आंदोलन में आए लोगों पर ग्रामीणों ने दो दिन में दो स्थानों पर हमला किया है। आसपास के ग्रामीण गुस्से में हैं। हमने सुरक्षा बढ़ा दी है। धरनास्थल पर किसी को नहीं जाने दिया जा रहा है।
दो महीने से ज्यादा घरों में कैद रहने के बाद कुंडली बार्डर के आसपास के लोगों का संयम जवाब दे गया है। गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में उपद्रव के बाद लोगों की धारणा बदल गई है। दर्जनभर गांवों के लोगों ने पंचायत कर हर हाल में सड़क खाली कराने का निर्णय लिया। इसके लिए शुक्रवार को मनौली गांव में 40 गांवों के लोगों की महापंचायत बुलाई गई है। उसके बाद सोमवार को ग्रामीण सड़क पर उतरेंगे और आंदोलन कर रहे किसानों के तंबू उखाड़ेंगे।
कुंडली बार्डर पर चल रहे किसान आंदोलन के कारण हजारों लोग सड़कों पर तंबू लगाकर जमे हुए हैं। इससे दिल्ली का आवागमन ठप होने के साथ ही आसपास के करीब 40 गांवों के लोग बंधक से बन गए हैं। ये गांवों से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। गांवों से जहां दूध और सब्जी शहरों तक नहीं पहुंच पा रही है, वहीं शहरों से आने वाला सामान लोगों को नहीं मिल रहा है। एक किमी की दूरी के लिए लोगों को 25 किमी घूमकर जाना पड़ता है। पिछले दिनों ग्रामीणों ने इसको लेकर पंचायत बुलाई थी। उस समय किसानों की समस्याओं के समाधान तक सहयोग करने का निर्णय लिया गया था।
जिस दिल में हिंदुस्तान नहीं, उसको यहां स्थान नहीं : गणतंत्र दिवस पर जिस प्रकार अराजकता हुई, उससे ग्रामीणों का संयम जवाब दे गया है। इसको लेकर गुरुवार को सेरसा गांव में आसपास के गांवों के प्रतिनिधियों की सभा हुई। इसमें निर्णय लिया गया कि शुक्रवार को गांव मनौली में परेशानी ङोल रहे 40 गांवों के प्रतिनिधियों की महापंचायत होगी। ग्रामीणों ने एलान कर दिया है कि राष्ट्र और सुरक्षाबलों का सम्मान नहीं करने वालों को क्षेत्र में नहीं ठहरने दिया जाएगा। इनसे किसी प्रकार की हमदर्दी नहीं है।
उपद्रवी हो सकते हैं क्षेत्र के लिए खतरा : ग्रामीणों का कहना था कि आंदोलन करने वाले कानून और संविधान को नहीं मानते हैं। ऐसे में यह क्षेत्र के गांवों के लिए खतरा हो सकते हैं। महापंचायत के बाद प्रशासन को रास्ते से इनको हटाने के लिए दो दिन का वक्त दिया जाएगा। दो दिन में नहीं हटाया जाता है तो सोमवार को इन गांवों के महिला-पुरुष खुद आगे बढ़कर इनके टेंट उखाड़ेंगे।