Chaurichaura: नाम ही नहीं तारीख भी बदलेगी, हटाया जाएगा कांड शब्द- पांच की चार फरवरी दर्ज होगी तारीख
दस्तावेजों में इसका सिर्फ नाम ही नहीं बदला जाएगा बल्कि तारीख बदलने या यह कहें कि सही करने की भी तैयारी है। इंडियन काउंसिल आफ हिस्टोरिकल रिसर्च (आइसीएचआर) ने इस बदलाव की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
स्वाधीनता संग्राम की एकबारगी दिशा बदल देने वाले चौरी चौरा कांड का शताब्दी वर्ष इस प्रकरण में बड़े बदलाव का साक्षी बनने जा रहा है। इस ऐतिहासिक वर्ष में दस्तावेजों में इसका सिर्फ नाम ही नहीं बदला जाएगा बल्कि तारीख बदलने या यह कहें कि सही करने की भी तैयारी है। इंडियन काउंसिल आफ हिस्टोरिकल रिसर्च (आइसीएचआर) ने इस बदलाव की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
चौरा चौरा कोई कांड नहीं था बल्कि सर्वजन का सहज प्रतिरोध
नाम में बदलाव के लिए देश के बहुत से इतिहासकारों की सबसे बड़ी आपत्ति यह है कि चौरा चौरा कोई कांड नहीं था बल्कि सर्वजन का सहज प्रतिरोध था, जिसे जलियावाला कांड से आहत लोगों की प्रतिक्रिया के तौर पर भी देखा जा सकता है। इसके पीछे इतिहासकारों के दो तर्क और भी। पहला यह कि कांड में पराधीनता के खिलाफ अराजकता का भाव निहित है तथा दूसरा यह कि यह शब्द पूरी तरह से नकारात्मक है जबकि चौरी चौरा प्रकरण का लक्ष्य सकारात्मक था। ऐसे में अब हमें चौरी चौरा कांड के लिए 'स्व का जागरण', 'सर्वजन का आक्रोश', 'प्रतिरोध', 'भारतीय जनमानस की प्रतिक्रिया' 'जलियांवाला कांड का प्रतिउत्तर' जैसे शब्दों का प्रयोग करना होगा। चौरा चौरा के बहाने ही स्वाधीनता से जुड़े उन सभी आंदोलनों से कांड शब्द हटाने की तैयारी है, जिसमें भी इस शब्द का इस्तेमाल हुआ। रही बात चौरी चौरा प्रकरण के तारीख की तो अबतक किताबों में इसके लिए तिथि के तौर पर पांच फरवरी अंकित है जबकि यह घटना चार फरवरी की शाम चार बजे हुई थी। यह तारीख प्रशासनिक रिकार्ड में तो दर्ज है ही, उस समय छपने वाले प्रमुख अखबार 'लीडर' में भी यही तिथि अंकित है। ऐसे में किताबों में अबतक इस प्रकरण की गलत तारीख पढ़ाई जाती रही है।
कांड ही नहीं इतिहास के पन्नों में बदले जाएंगे 56 और शब्द
स्वाधीनता संग्राम के इतिहास से जुड़ी किताबों और दस्तावेजों में सिर्फ कांड शब्द ही नहीं बदला जाएगा, बल्कि उसके साथ आइसीएचआर ने 56 ऐसे शब्दों की सूची बनाई है, जिन्हें बदला जाना है। यह सारे ही शब्द ऐसे हैं, जो ब्रिटिश गवर्नमेंट द्वारा इस्तेमाल किए गए और इतिहासकारों को किताबों में उन्हें हूबहू उसी तरह स्थान दे दिया, जो कि गलत था। क्योंकि स्वाधीनता सेनानियों और स्वाधीनता के लिए किए गए प्रयासों को लेकर ब्रिटिश गवर्नमेंट की दृष्टि उनके उनके हित में थी, हमारे हित में नहीं। जिन शब्दों के बदलाव की तैयारी है, उनमें स्वतंत्रता की जगह स्वाधीनता, उग्रवादी की जगह आग्रही, उग्रवाद की जगह क्रांति, विद्रोह की जगह प्रतिरोध, षडयंत्र की जगह योजना, हिंदुइज्म की जगह हिंदुत्व, इंडियन की जगह भारत जैसे शब्द शामिल हैं।
भारतीय स्वाधीनता सेनानियों और उनके प्रयासों के लिए अबतक लिखी गई इतिहास की किताबों में वही शब्द दर्ज है, जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने इस्तेमाल किया था। यह देश की आजादी के लिए सेनानियों के प्रयास और उनके नाम की तौहीन है। ऐसे इन शब्दों को तत्काल प्रभाव से बदला जाना जरूरी है। इसकी प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।