किसमें कितना है दम, वैक्सीन की प्रतिरक्षा या वायरस का प्रतिरूप
दुनिया की ज्यादातर वैक्सीन वायरस के स्पाइक प्रोटीन को ध्यान में रखकर तैयार की गई हैं जबकि कोवैक्सीन परंपरागत तरीके से बनाई गई है। इस वैक्सीन में संक्रमित व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए निष्क्रिय कोरोना वायरस पर भरोसा जताया गया है।
दक्षिण अफ्रीका में पाया गया कोरोना वायरस का नया स्ट्रेन बी.1.351 एक नई चुनौती पेश कर रहा है। हाल ही में भारत के सीरम इंस्टीट्यूट में तैयार एस्ट्राजेनेका की दस लाख खुराक दक्षिण अफ्रीका भेजी गई थी। वहां टीकाकरण शुरू ही होने वाला था कि उससे तुरंत पहले आई परीक्षण रिपोर्ट में पता चला कि नए स्ट्रेन से संक्रमित लोगों में यह टीका असरदार नहीं है।
फिलहाल टीकाकरण रोक दिया गया है। ब्रिटेन, अर्जेंटीना सहित दुनिया के तमाम हिस्सों में जिस तरह वायरस के नए और ज्यादा घातक स्ट्रेन सामने आ रहे हैं, उससे विशेषज्ञों को लगने लगा है कि अभी यह लड़ाई लंबी ¨खचने वाली है। इस मामले में भारत की स्वदेशी वैक्सीन कारगर साबित हो सकती है। भारत बायोटेक द्वारा परंपरागत तकनीक से विकसित कोवैक्सीन के बारे में विशेषज्ञ आश्वस्त हैं कि ये कोरोना वायरस के नए स्ट्रेन के खिलाफ भी कारगर होगी।
हुआ अध्ययन
यूनिवर्सिटी ऑफ विटवाटर्सरैंड के साथ ऑक्सफोर्ड और एस्ट्राजेनेका ने मिलकर दक्षिण अफ्रीका में एक अध्ययन किया। औसतन 31 साल के करीब दो हजार युवाओं पर किए शोध में पाया गया कि कोरोना वायरस के बी.1.351 स्ट्रेन से हल्के या मध्यम रूप से संक्रमित लोगों में एस्ट्राजेनेका का टीका कारगर नहीं साबित होता है।
दुनिया की अन्य कोरोना वैक्सीन की स्थिति भी अच्छी नहीं
विशेषज्ञ कुछ भी कहने से पहले इस नए स्ट्रेन से संक्रमित लोगों के आंकड़ों का अध्ययन करने की जरूरत बताते हैं। हालांकि कुछ देशों में इस नए स्ट्रेन से संक्रमित लोगों पर जब अन्य वैक्सीन का परीक्षण किया गया तो उनमें से किसी का भी नतीजा बहुत उत्साहजनक नहीं रहा। कोई भी वैक्सीन मूल कोरोना वायरस के खिलाफ जितनी कारगर रही, उसके नए स्ट्रेन में कारगरता काफी कम रही। ब्रिटेन में नोवावैक्स परीक्षणों में 89 फीसद कारगर रही, जबकि दक्षिण अफ्रीका (यहां 92 फीसद मामले नए स्ट्रेन के हैं।) में यह आंकड़ा सिर्फ 60 फीसद रहा। जॉनसन एंड जॉनसन की जैनसेन वैक्सीन का परीक्षण अमेरिका में 72 फीसद कारगर रहा जबकि दक्षिण अफ्रीका में यह 57 फीसद ही कारगर रहा।
अब सामुदायिक प्रतिरक्षा का प्रश्न
शोधकर्ताओं का मानना है कि अब उन्हें नए सिरे से सोचना पड़ सकता है। हालांकि वैक्सीन का एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संक्रमण पर रोक लगाने की जानकारी के लिए ज्यादा डाटा उपलब्ध नहीं है, फिर भी कुछ विशेषज्ञ वैक्सीन और एहतियाती कदमों के बूते हर्ड इम्युनिटी (सामुदायिक प्रतिरक्षा) हासिल करने के प्रति आशान्वित हैं।
मूल वैक्सीन में बदलाव
विशेषज्ञ मानते हैं कि मूल कोरोना वायरस को ध्यान में रखकर बनाई वैक्सीन में बदलाव करके उनके नए स्ट्रेन को रोकने में कामयाबी हासिल की जा सकती है। कई प्रयोगशालाओं में इस पर काम भी जारी है। वायरस के स्पाइक प्रोटीन में बदलाव को पकड़ने के लिए वैक्सीन को नए सिरे से तैयार करना संभव है। लेकिन इसके लिए चुनौतियां कम नहीं हैं। ऐसी वैक्सीन बनाई भी जा रही है जिसे बूस्टर डोज की तरह लोगों को दिया जा सकेगा। दूसरी चुनौती तेजी से म्यूटेट हो रहे वायरस के साथ खुद को अपडेट करने की भी है।
कोवैक्सीन पर दुनिया के भरोसे की वजह
जनवरी में भारत बायोटेक के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ कृष्णा एला ने भरोसा दिलाया था कि उनकी कोवैक्सीन कोरोना वायरस के किसी भी स्ट्रेन से लड़ने में बहुत कारगर साबित होगी। उनके दावे की वजह भी बहुत अहम है।