सुनिए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण जी... GST को थोड़ा कम कीजिए, ब्याज दर बढ़ाइए
बीता वक्त आम जनता के साथ ही कारोबारियों उद्यमियों पर भी भारी गुजरा है। ऐसे में आम बजट 2021 से वर्गविशेष को खासी उम्मीदें हैं। झारखंड के व्यापारियों व उद्यमियों के कुछ तार्किक सुझाव हैं और उन्हें अपेक्षा है कि केंद्र सरकार उन्हें निराश नहीं करेगी।
बीता वक्त काफी मुश्किल रहा है। आम जनता के साथ ही कारोबारियों, उद्यमियों पर भी यह वक्त काफी भारी गुजरा है। जाहिर है ऐसे में पेश होने वाले आम बजट 2021-22 से इस वर्ग विशेष को खासी उम्मीदें हैं। झारखंड के व्यापारियों व उद्यमियों के भी कुछ तार्किक सुझाव हैं और उन्हें अपेक्षा है कि केंद्र सरकार उन्हें निराश नहीं करेगी। वैसे तो अपेक्षाओं की सूची खासी लंबी हैं लेकिन जो मूल विषय व्यापार व उद्योग से सीधे जुड़े हैं उनकी चर्चा यहां लाजिमी है। जीएसटी की दरों में सुधार के साथ ही आधारभूत संरचना और स्वास्थ्य सेवाओं की दशा सुधारने की बात राज्य के कारोबारी संगठनों ने उठाई है।
फेडरेशन ऑफ झारखंड चैंबर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष प्रवीण जैन छाबड़ा वर्तमान समय की अर्थव्यवस्था की चुनौतियों को स्वीकारते हैं और इससे निपटने के लिए आधारभूत संरचना और स्वास्थ्य सेवाओं को दुरुस्त करने में जोर देते हैं। जीएसटी की दरों में सुधार का भी वे सुझाव देते हैं। कहते हैं कि वर्तमान में सात तरह की दरें (शून्य से लेकर 28 प्रतिशत तक) जीएसटी के लिए निर्धारित हैं, केंद्र सरकार को मौजूदा बैंड को तीन तरह की दरों में परिवर्तित करने पर विचार करना चाहिए। इससे जटिलता कम होगी और जीएसटी से जुड़े मुद्दे सुलझाने में मदद मिलेगी।
वे जीएसटी स्टेटमेंट में भी सुधार के लिए कारोबारियों को मौका देने का सुझाव देते हैं। कहते हैं कि गलतियों को सुधारने के लिए बिना जुर्माना एक मौका दिया जाना चाहिए। प्रवीण यह भी कहते हैं कि वर्तमान में जीएसटी पर्षद के सदस्यों के साथ चर्चा के लिए स्टेकहोल्डर्स के पास कोई औपचारिक परामर्श का मार्ग उपलब्ध नहीं है। उचित यह होगा कि वर्ष में कम से कम दो बार स्टेकहोल्डर्स को अपनी कठिनाईयों पर चर्चा के लिए जीएसटी काउंसिल के साथ बैठक का अवसर प्रदान किया जाए। प्रवीण ई-कामर्स से प्रभावित हो रहे खुदरा व्यापार की चर्चा करते हुए कहते हैं कि ई-कामर्स पर नियंत्रण के लिए एक ठोस कानून की पहल होनी चाहिए।
कोरोना काल में हुए नुकसान की भरपाई के लिए कदम उठाए सरकार
सिंहभूम चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष अशोक भालोटिया ने कहते हैं कि केंद्र सरकार को आम बजट में कोरोना काल में हुए नुकसान की भरपाई के लिए कुछ बड़े कदम उठाने चाहिए। मसलन कोरोना काल के दौरान उद्योग धंधों पर लगे कर्ज की माफी या उस पर नाममात्र का बैंक ब्याज लेना चाहिए। भालोटिया सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में बजट बढ़ाने का भी सुझाव देते हैं। कहते हैं कि सरकार को नए और बड़े प्रोजेक्ट की घोषणा करनी चाहिए, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार मिले और अर्थव्यवस्था पटरी पर आए। इनकम टैक्स के मामले में नए उद्योग को पूरी तरह छूट की उम्मीद भी वे जताते हैं। भालोटिया एमएसएमई में उद्यमियों को इंवेस्टमेंट बढ़ाने की छूट भी चाहते हैं। इस कदम से छोटे उद्यमियों को काफी राहत मिलेगी।
इस सेक्टर में उम्मीद
- - कच्चे माल मसलन सीमेंट, टाइल्स इत्यादि के लिए जीएसटी दरों को कम करके इन्हें 12-18 फीसद के दायरे में सीमित करना चाहिए।
- - धारा 24 बी के तहत आवास ऋण पर ब्याज में छूट की सीमा को दो लाख रुपये से बढ़ाकर 10 लाख किया जाना चाहिए।
- - रिएल एस्टेट को प्रोत्साहित करते हुए इसे इंफ्रास्ट्रक्चर का दर्जा दिए जाने पर विचार किया चाहिए। साथ ही इस सेक्टर द्वारा प्रयुक्त की जाने वाली वस्तुओं की जीएसटी दरों में भी कमी की जानी चाहिए।
- - महानगरों की तर्ज पर झारखंड में राजधानी रांची से हर प्रमुख शहर के लिए लोकल ट्रेनों का परिचालन की पहल होनी चाहिए।
- - 50 लाख से नीचे सालाना कारोबार करने वाले व्यापारियों को आयुष्मान योजना का मुफ्त लाभ मिलना चाहिए। एक करोड़ से कम टर्नओवर वाले व्यापारियों बहुत ही मामूली प्रीमियम पर यह सुविधा दी जानी चाहिए।
- - छोटे व्यापारी कार्यशील पूंजी संकट से जूझ रहे हैं। कोविड की स्थिति से उबरने के लिए ऐसे व्यवसायियों को न्यूनतम दर पर पांच वर्ष के लिए ऋण प्रदान करने की सुविधा दी जानी चाहिए।
- - मोटर पार्ट्स पर जीएसटी की दर को 12 फीसद के दायरे में लाया जाना चाहिए। - ईपीएफ-ईएसआइ के नियोक्ता व कर्मचारियों का 50 फीसद का वहन सरकार द्वारा किया जाना चाहिए। जीएसटी आडिट की सीमा को भी 10 करोड़ से ऊपर के कारोबार पर लागू किया जाना चाहिए।
- - शहरी निर्धन लोगों के लिए मनरेगा जैसी योजना पर विचार किया जाना चाहिए।
- - सभी अस्पतालों को धारा 35 डी (पूंजीगत व्यय पर 100 फीसद छूट) के तहत कर लाभ का विस्तार किया जाना चाहिए। वर्तमान में यह व्यवस्था केवल 100 बेड की न्यूनतम क्षमता वाले अस्पतालों पर लागू है।