यूपी : मुखर व असंतुष्ट मंत्रियों ने राष्ट्रीय महामंत्री संगठन के सामने रखी पीड़ा, संतोष से मुलाकात करने वालों में कुछ विवादित मंत्री भी

बीएल संतोष ने सोमवार और मंगलवार को प्रदेश सरकार के दोनों उप मुख्यमंत्रियों सहित कुल 14 मंत्रियों से मुलाकात की। जानकारी के मुताबिक मंत्रियों ने मुलाकात के दौरान जहां उनके सवालों के जवाब दिए वहीं अपनी पीड़ा का भी इजहार किया।

यूपी : मुखर व असंतुष्ट मंत्रियों ने राष्ट्रीय महामंत्री संगठन के सामने रखी पीड़ा, संतोष से मुलाकात करने वालों में कुछ विवादित मंत्री भी

विस्तार
भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष के सामने अपनी पीड़ा रखने वालों में ज्यादातर मंत्री ऐसे थे जिनकी पहचान मुखर या असंतुष्ट के तौर पर है। अलबत्ता कुछ ऐसे मंत्रियों ने भी संतोष से मुलाकात की जिन्हें लेकर विवाद चल रहा है। संतोष के सामने असंतोष जाहिर करने वाले योगी सरकार के मंत्री कितना संतुष्ट हो पाते हैं यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन विवादित मंत्रियों की धड़कनें जरूर बढ़ी हुई हैं। संतोष तीन दिन लखनऊ में रुकने के बाद दिल्ली लौट गए लेकिन पीछे तमाम तरह की चर्चाएं छोड़ गए हैं। प्रदेश भाजपा सरकार और संगठन से जुड़े लोगों की निगाहें अब दिल्ली पर टिकी हैं कि महामंत्री संगठन के फीडबैक का क्या नतीजा निकलेगा।
 
बीएल संतोष ने सोमवार और मंगलवार को प्रदेश सरकार के दोनों उप मुख्यमंत्रियों सहित कुल 14 मंत्रियों से मुलाकात की। जानकारी के मुताबिक मंत्रियों ने मुलाकात के दौरान जहां उनके सवालों के जवाब दिए वहीं अपनी पीड़ा का भी इजहार किया। तीन दिन मंथन के बाद संतोष बुधवार दोपहर दिल्ली लौट गए। उनके जाने केबाद सत्ता और संगठन के गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म है कि थोड़ा-बहुत ही सही विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए भाजपा नेतृत्व ‘ऑपरेशन यूपी’ करेगा। सुधार के लिए कुछ करेक्शन हो सकते हैं। हालांकि पार्टी के वरिष्ठ नेता ऐसी किसी संभावना से इनकार कर रहे हैं।


उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का विभागीय कामकाज से लेकर सियासी मोर्चे तक ‘सरकार’ से टकराव जगजाहिर है। मौर्य कई बार दिल्ली तक नाराजगी भी जाहिर कर चुके हैं। ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा की भी अपने महकमे में अधिकारियों की तैनाती सहित अन्य मामलों को लेकर सरकार से नाराजगी सामने आती रही है। वहीं एमएसएमई मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह भी 2019 में हुए मंत्रिमंडल फेरबदल में विभाग बदलने सहित महकमे के कामकाज में दखल के खिलाफ  अपनी नाराजगी उचित जगह पर जाहिर करते रहे हैं।
 
परिवहन मंत्री अशोक कटारिया महकमे में अफसरों की मनमर्जी और सरकार में सुनवाई नहीं होने की बात संगठन में करते रहे हैं। अपने भाई की नियुक्ति और जमीन खरीदने के मामले को लेकर विवाद में आए बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री सतीश द्विवेदी भी विभाग के नीतिगत निर्णयों में उन्हें तवज्जो नहीं मिलने की शिकायतें पार्टी फोरम पर करते रहे हैं। श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य भी उम्मीद के मुताबिक विभाग नहीं मिलने व अपने क्षेत्र के कार्यकर्ताओं की समस्याओं के समाधान सहित अन्य मुद्दों को लेकर समय-समय पर संगठन व सरकार में मुखर होकर बात रखते रहे हैं।

राष्ट्रीय महामंत्री संगठन बीएल संतोष ने यूपी के प्रवास के पहले दिन चिकित्सा शिक्षा मंत्री सुरेश खन्ना और चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री जयप्रताप सिंह से मुलाकात की थी। माना जा रहा है कि खन्ना कोरोना संक्त्रस्मण की दूसरी लहर के दौरान सक्त्रिस्य रहे और अस्पतालों का दौरा करने के साथ विभागीय बैठकों और मीडिया के जरिये सरकार का मजबूत पक्ष रखा। वहीं अस्पतालों में दवाओं, बेड, आक्सीजन की कमी से बिगड़ रहे माहौल के बावजूद जयप्रताप सिंह ज्यादा सक्त्रिस्य नजर नहीं आए। जानकारों का मानना है कि जय प्रताप सिंह से सरकार और लखनऊ से लेकर दिल्ली तक संगठन के प्रमुख लोग संतुष्ट नहीं है। वहीं विधि एवं न्याय मंत्री ब्रजेश पाठक की ओर से कोरोना काल में चलाए जा रहे सेवा कार्यों, कम्युनिटी किचन सहित अन्य व्यवस्थाओं से संगठन संतुष्ट है।

यह भी है वजह
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि अगर बीएल संतोष को वास्तविक फीडबैक ही लेना होता तो जनता से सीधे तौर पर जुड़े महकमों के मंत्रियों को भी बुलाया जाता। संतोष ने तीन दिवसीय दौरे में कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही, ग्राम्य विकास मंत्री राजेंद्र प्रताप सिंह मोती सिंह, पंचायतीराज मंत्री भूपेंद्र चौधरी, गन्ना मंत्री सुरेश राणा और नगर विकास मंत्री आशुतोष टंडन से उनके विभागीय कामकाज और आगामी योजनाओं को लेकर चर्चा नहीं की। इससे यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि उनका मकसद ऐसे लोगों का ही फीडबैक लेना था जो सरकार सरकार के रवैये से असंतुष्ट हैं या तवज्जो न मिलने से नाराज हैं।
राजधानी के विधायकों को पढ़ाया सेवा और अनुशासन का पाठ
भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री संगठन बीएल संतोष ने बुधवार को राजधानी के विधायकों और सांसद को कोरोना काल में प्रभावित हुए परिवारों की सेवा और आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अनुशासन का पाठ पढ़ाया। प्रदेश में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान राजधानी लखनऊ सबसे अधिक प्रभावित हुई है। जानकारों का मानना है कि राजनीतिक दृष्टि से दिल्ली के बाद लखनऊ सबसे बड़ा केंद्र है। लिहाजा लखनऊ में संक्रमण के दौरान आई समस्याओं और शिकायतों को लेकर सामने आई खबरों से प्रदेश व देश में भी सरकार व संगठन का माहौल खराब हुआ है। हालांकि लखनऊ में महज एक महीने में तेजी के साथ कोरोना पर नियंत्रण पाया गया है। सरकार के कोरोना प्रबंधन की डब्ल्यूएचओ और नीति आयोग ने भी तारीफ की है। 

इसी के मद्देनजर बीएल संतोष ने प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और महामंत्री संगठन सुनील बंसल की मौजूदगी में लखनऊ के विधायक एवं प्रदेश सरकार के मंत्री ब्रजेश पाठक, आशुतोष टंडन गोपाल, स्वाति सिंह, विधायक नीरज बोरा, सुरेश तिवारी, जया देवी और मोहनलालगंज के सांसद कौशल किशोर से मुलाकात की। उन्होंने जनता के बीच माहौल सुधारने के लिए सभी से कोरोना काल में की गई सेवाओं के साथ उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि की जानकारी ली। उन्होंने कहा कि पार्टी की योजना के तहत कोरोना संक्रमण के कारण जिन परिवारों में किसी सदस्य की मृत्यु हुई है, उन परिवारों के बीच जाकर उनका दर्द सुनें और समाज व सरकार के सहयोग से उनकी मदद करें। उन्होंने आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर जनता और कार्यकर्ताओं के बीच जाकर उनकी समस्याओं को सुनने, उनका समाधान कराने और जनता से मर्यादित व्यवहार करने की भी सीख दी। 

पंचायत चुनाव में गड़बड़ी करने वाले बख्शे नहीं जाएंगे 
राष्ट्रीय महामंत्री ने कहा कि पंचायत चुनाव में गड़बड़ी करने वाले पार्टी के जनप्रतिनिधि और पदाधिकारी बख्शे नहीं जाएंगे। उन्होंने कहा कि पंचायत चुनाव में किस-किस स्तर पर किसने गड़बड़ी की है इसकी जानकारी उन्हें मिल गई है। उन्होंने विधायकों और पार्टी पदाधिकारियों को लखनऊ जिला पंचायत में भाजपा का अध्यक्ष निर्वाचित कराने के साथ सभी क्षेत्रीय पंचायतों में भी भाजपा के क्षेत्रीय पंचायत अध्यक्ष निर्वाचित कराने की जिम्मेदारी सौंपी। 

सरकार व संगठन के कामकाज का प्रचार करें 
बीएल संतोष ने पार्टी की मीडिया टीम को सरकार व संगठन के कामकाज का मीडिया और सोशल मीडिया में ज्यादा से ज्यादा प्रचार प्रसार करने को कहा। उन्होंने कहा कि मीडिया कर्मियों से लगातार संवाद स्थापित कर सरकार व संगठन का मजबूत पक्ष उनके सामने प्रस्तुत करें। बैठक में प्रदेश सरकार के प्रवक्ता सिद्धार्थनाथ सिंह, मीडिया प्रभारी मनीष दीक्षित, प्रवक्ता हीरो बाजपेयी, समीर सिंह, मनीष शुक्ला, हरीशचंद्र श्रीवास्तव, हिमांशु दुबे, आलोक अवस्थी और अभय प्रताप सिंह उपस्थित थे। 
 
अब कार्यकर्ताओं से जानेंगे जमीनी हकीकत 

भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष तीन दिन के उत्तर प्रदेश दौरे के बाद बुधवार को दिल्ली लौट गए। इस दौरे में उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर संगठन और सरकार के कई प्रमुख लोगों से कभी एक साथ तथा अलग-अलग बातचीत की। कुछ मंत्रियों को बुलाकर उनकी सुनी भी तथा क्षमता व योजना दृष्टि की थाह नापी। बैठक में कोरोना में ऑक्सीजन और बेड की कमी और इस कारण बड़ी संख्या में मौतों को लेकर गैरों के साथ अपनों (भाजपा के लोगों) की मुखर हुई नाराजगी की नब्ज टटोली गई। 

संतोष ने सरकार के प्रबंधन व तैयारियों के दावों की सच्चाई समझी, पंचायत चुनाव के भाजपा के पक्ष में अपेक्षित नतीजे न आने की वजहें जानने की कोशिश की। सरकार व संगठन की नब्ज पर हाथ रखकर बीमारियां समझीं और दिल्ली लौट गए। अब दिल्ली में ऑपरेशन यूपी 2022 की ब्लू प्रिंट तैयार होगा। पूरा जोर कोरोना से हुई मौतों की वजह से हुए नुकसान की भरपाई पर रहेगा। इसके तहत मंत्रिमंडल में कुछ बदलाव के साथ विस्तार और अधिकारियों की चुनाव तक नए सिरे से तैनाती हो सकती है। इस ब्लू प्रिंट का प्रभाव प्रदेश में बदलाव के रूप में तो सामने जरूर आएगा, लेकिन इसके संगठन और सरकार के कुछ मंत्रियों की भूमिका बदलने तथा नौकरशाही के कुछ प्रमुख चेहरों की काट-छांट तक ही सीमित रहने के आसार है। इसका मुख्य आधार पॉलिटिक्स ऑफ  परफॉरमेंस’ व डैमेज कंट्रोल ही होगा। फिलहाल मुखिया परिवर्तन का संकेत कहीं नहीं है।

भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री बीएल संतोष अब भाजपा के साथ विचार परिवार के जमीनी कार्यकर्ताओं से सरकार और संगठन के कामकाज की जमीनी हकीकत पता लगाएंगे। पार्टी सूत्रों के मुताबिक बीएल संतोष ने बुधवार को अवध, काशी, पश्चिम, ब्रज, कानपुर-बुंदेलखंड और गोरखपुर क्षेत्र के दस-दस ऐसे पार्टी और विचार परिवार से जुड़े संगठनों के कार्यकर्ताओं के नाम व फोन नंबर मांगे जो किसी संगठन में किसी भी दायित्व पर नहीं हैं। संतोष का सभी क्षेत्रों के कार्यकर्ताओं को बुधवार को ही फोन कर फीडबैक लेने का प्लान था। लेकिन, बैठकों में अधिक समय लगने के कारण वे बात नहीं कर सके। संतोष सभी छह क्षेत्रों के चयनित कार्यकर्ताओं के नाम और फोन नंबर साथ लेकर गए हैं। आगामी दिनों में उनसे फोन पर बात कर जमीनी हकीकत को जानने का प्रयास करेंगे। 

पंचायत चुनाव के नतीजे ने बढ़ाई चिंता 
वैसे तो प्रदेश की नौकरशाही को लेकर भाजपा कार्यकर्ताओं की ही नहीं बल्कि सांसदों व विधायकों की शिकवा-शिकायतें शुरू से ही मुखर होती रही हैं। पर, कोरोना की दूसरी लहर के दौरान भाजपा के ही लोगों का ऑक्सीजन और अस्पतालों की व्यवस्था को लेकर सार्वजनिक रूप से सवाल खड़े करना तथा उसी बीच पंचायत चुनाव के नतीजे भाजपा की उम्मीदों के अनुसार न आना, संघ से लेकर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व तक की यूपी को लेकर चिंता बढ़ा गया है। भले ही संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले और भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) संतोष के प्रदेश के दौरे तथा लखनऊ प्रवास पूर्व निर्धारित थे लेकिन दोनों ने अपने दौरे का एजेंडा बदलकर जिस तरह 2022 की चुनावी चुनौतियों के समाधान पर केंद्रित कर दिया उससे इस चिंता को समझा जा सकता है। 

बीमारी समझने की कोशिश
लगभग दो दशक बाद अपने बल पर पूर्ण बहुमत पाकर और वह भी 1991 से ज्यादा विधायकों के साथ प्रदेश की सत्ता में आई भाजपा का शीर्ष नेतृत्व तथा उसका मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ किसी स्थिति में उत्तर प्रदेश को खोना नहीं चाहता है। उसे पता है कि यूपी हारने का मतलब क्या होता है? संतोष के दौरे के एजेंडे से भी इसे समझा सकता है। उन्होंने पहला दिन कोरोना महामारी की चुनौतियों के चलते संगठन और सरकार की छवि को पहुंचे नुकसान को समझने और उसकी भरपाई के उपाय समझाने पर लगाया। इसके लिए उन्होंने पार्टी के लोगों को सेवा के साथ पार्टी की सियासी जमीन मजबूत बनाने की तरकीब समझाई। साथ ही पंचायत चुनाव से हुए नुकसान की भरपाई के लिए ज्यादा से ज्यादा जिलों में जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर भाजपा के लोगों को बैठाने का एजेंडा सौंपा। इसके लिए जिताऊ को उम्मीदवार बनाने का फार्मूला समझाया।

दूसरे दिन उन्होंने  सरकार के कामकाज को लेकर उठने वाली शिकवा-शिकायतों की वजहें समझने की कोशिश की। साथ ही कुछ अन्य मंत्रियों से एकांत वार्ता की। बताया जाता है कि इस वार्ता में उन्होंने 2022 की चुनौतियों और उनके समाधान की तैयारी के बारे में सवाल पूछकर यह समझने की भी कोशिश की कि उनके सामने बैठे मंत्री की चिंता सिर्फ  खुद तक सीमित है या उसमें संगठन की साख की फिक्त्रस् भी शामिल है। तीसरे दिन उनका मुख्य फोकस प्रचार में सरकार व संगठन के समन्वय के साथ सभी को मर्यादा में रहने का संदेश देने का रहा।

नई चुनौतियां आमंत्रित नहीं करेंगे
यद्यपि संतोष के तीन दिन के दौरे को लेकर कयासों का बाजार काफी गर्म है। प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री परिवर्तन तक की चर्चाएं चलाई जा रही हैं लेकिन परिस्थितियां, राजनीतिक समीकरण और राजनीतिक विश्लेषक ऐसी संभावनाओं को फिलहाल पूरी तरह खारिज कर रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बैठकों का मुख्य फोकस कोरोना की चुनौतियों के मद्देनजर लोगों से निरंतर संपर्क संवाद करते हुए अलग-अलग कारणों से संगठन और सरकार को पहुंचे नुकसान की भरपाई कर 2022 की चुनावी जमीन तैयार करना ही नजर आता है। जहां तक परिस्थितियों और समीकरणों सवाल है तो ये भी फिलहाल भाजपा को इतने बड़े बदलाव का माहौल नहीं दे रहे हैं।

राजनीतिक और आर्थिक विश्लेषक प्रो. ए. पी. तिवारी भी कहते हैं कि कोरोना के चलते देश के सबसे बड़े प्रदेश में जिस तरह की चुनौतियां भाजपा के सामने हैं उनके चलते शीर्ष नेतृत्व नई राजनीतिक उठापटक, खींचतान या चुनौती को निमंत्रण देने के बजाय सबको एक साथ जुटाकर 2022 में सत्ता में वापसी  की होगी। फिर अब चुनावी शंखनाद होने में लगभग छह महीने का ही वक्त बचा है। उसको देखते हुए भी पार्टी की प्राथमिकता जिला पंचायत अध्यक्ष के साथ ब्लॉक प्रमुखों के ज्यादा से ज्यादा चुनाव जीतकर खुद के मजबूत होने का संदेश देने की होगी न कि भीतर चल रही खींचतान को सार्वजनिक होने के लिए खाद-पानी देकर तथा वह भी एक हिंदुत्ववादी चेहरे की भूमिका बदलकर  विपक्ष को हमलावर होने का मौका देने तथा भाजपा में अस्थिरता का माहौल होने का संदेश देने की। वह भी तब जब मुख्यमंत्री कोरोना की चुनौतियों से निपटने के लिए लगातार जिलों का तूफानी दौरा कर रहे हैं और लोगों की सेहत के साथ उनकी मदद की तमाम योजनाएं शुरू करने का एलान कर रहे हैं ।

ये हैं संकेत
प्रो. तिवारी याद दिलाते हैं 1999 की। कहते हैं कि कल्याण सिंह प्रकरण ने यह साफ  कर दिया है कि भाजपा में रहने वाला पद पर रहते हुए लाभ भले न पहुंचाए लेकिन हटने पर वह नुकसान ज्यादा पहुंचा देता है। फिर प्रधानमंत्री मोदी ने बीते सात सालों में जिस तरह प्रदेशों में बीच कार्यकाल में भाजपा सरकार का नेतृत्व कर रहे चेहरों में फेरबदल से परहेज किया है उससे भी अब जब चुनाव में काफी कम वक्त बचा है तो मुख्यमंत्री स्तर पर बदलाव की संभावनाएं नहीं हैं। तिवारी की बात सही लगती है। संतोष से मिलकर बाहर आने वालों ने जिस तरह बैठक का मकसद कोरोना के संकट से परेशान लोगों की सहायता करने में ज्यादा से ज्यादा योगदान और 2022 में भी 300 पार बताया उससे  भी यह संकेत मिल  गया कि सिर्फ  इनकी सुनी नहीं गई है बल्कि संतोष ने सुनाया और समझाया भी है। साथ ही संपर्क , संवाद, समन्वय, संवेदनशीलता व सामूहिकता से काम करने का संदेश भी दे दिया है। जिससे साफ  है कि सरकार में शामिल कुछ मंत्री भविष्य में नई भूमिका में नजर आएंगे तथा कुछ नए चेहरे सरकार में दिखेंगे। पर, मुखिया बदलाव का संकेत नहीं है।