दबे-कुचलों के फादर नहीं रहे:वकील बोलीं-ठंड में गर्म कपड़े, पार्किन्संस के चलते स्ट्रॉ से पानी पीने तक की मंजूरी नहीं मिली; हक के लिए तड़पते रहे

दबे-कुचलों के फादर नहीं रहे:वकील बोलीं-ठंड में गर्म कपड़े, पार्किन्संस के चलते स्ट्रॉ से पानी पीने तक की मंजूरी नहीं मिली; हक के लिए तड़पते रहे
  • 84 साल के फादर स्टेन स्वामी ने मुंबई के अस्पताल में ली अंतिम सांस, भीमा कोरेगांव ब्लास्ट में बनाए गए थे आरोपी
  • 9 माह से बीमार थे, कई बार गिरने से मल्टीपल फ्रैक्चर के बाद अस्पताल में कराए गए थे भर्ती
  • जून में कोरोना से रिकवर हुए, सांस में दिक्कत के बाद 4 जुलाई को वेंटिलेटर पर डाला गया

झारखंड में आदिवासी अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाले जन-अधिकार कार्यकर्ता और दबे-कुचलों के फादर स्टेन स्वामी (84) का सोमवार को मुंबई के होली फैमिली अस्पताल में निधन हो गया। पहले से ही पार्किन्संस समेत अन्य बीमारियों से ग्रस्त स्वामी की हालत कोरोना संक्रमण के कारण और खराब हो गई थी। 31 दिसंबर 2017 में महाराष्ट्र के पुणे स्थित भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में सीबीआई ने उन्हें 8 अक्टूबर-2020 को रांची के नामकुम बगइचा स्थित आवास से उन्हें गिरफ्तार किया था।

इस मामले में वे नवी मुंबई की तलोजा जेल में न्यायिक हिरासत में थे। वहीं उन्हें संक्रमण हुआ था। इसके बाद 28 मई को उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश पर मुंबई के होली फैमिली अस्पताल में भर्ती किया गया था। हालांकि, जून में वे रिकवर हो गए थे। सोमवार को स्वामी की जमानत पर हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही थी, उसी दौरान उनके वकील ने बताया कि अस्पताल में इलाजरत फादर स्टेन की मौत हो गई है। बताया गया, ‘शनिवार तड़के साढ़े चार बजे स्वामी को दिल का दौरा पड़ा था। वे तब से ही वेंटिलेटर सपोर्ट पर थे। लेकिन उनकी तबीयत में सुधार नहीं हुआ। डॉक्टरों ने उन्हें सोमवार दोपहर 1.30 बजे के करीब मृत घोषित कर दिया।’

इधर, उनकी वकील सुजैन अब्राहम ने दैनिक भास्कर से कहा कि फादर स्टेन स्वामी 9 महीने से बीमार चल रहे थे। उन्हें पार्किन्संस बीमारी के कारण ग्लास पकड़ने में दिक्कत होती थी। तलोजा जेल में खाने के लिए बर्तन, पहनने के लिए गर्म कपड़े और परिवार को पत्र लिखने की अनुमति नहीं दी गई। यहां तक कि पार्किन्संस के चलते स्ट्रॉ से पानी पीने तक की मंजूरी जेल प्रशासन से नहीं मिली। कई बार गिरने से मल्टीपल फ्रैक्चर के बाद अस्पताल में उन्हें भर्ती कराया गया था। जो दूसरे के अधिकारों के लिए लड़ते रहे, खुद अपने हक के लिए तड़पते रहे। स्वामी का देहांत इंस्टीट्यूशल मर्डर है।

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बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा-खेद है, हम पूरी कोशिश के बावजूद उन्हें नहीं बचा सके

उनके निधन पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने खास तौर पर खेद जताया है। हाईकोर्ट के जस्टिस एसएस शिंदे और एनजे जामदार ने शोक संदेश में कहा, ‘हम पूरी विनम्रता के साथ कहते हैं कि इस सूचना पर हमें खेद है। यह हमारे लिए बड़ा झटका है। हमने उन्हें उनकी पसंद के अस्पताल में भर्ती कराने का आदेश जारी किया था। पर आज हमारे पास उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए शब्द नहीं हैं। हम, अाप (अस्पताल) पूरी कोशिश के बावजूद उन्हें नहीं बचा सके।’

स्वामी के वकील बोले- कोर्ट से नहीं, जेल प्रशासन और एनआईए से शिकायत

स्वामी के वकील मिहिर देसाई का कहना है, ‘हमें अदालत और अस्पताल से कोई शिकायत नहीं है। हमारी शिकायत एनआईए और जेल प्रशासन से है। उनकी उदासीनता स्वामी के जीवन पर भारी पड़ी।’ तलोजा जेल में रहते हुए स्वामी ने कई बार शिकायत की थी। बताया था कि उनके इलाज का भी ख्याल नहीं रखा जा रहा। उनका स्वास्थ्य लगातार गिर रहा है। कोरोनाकाल में उन्होंने जेल में आपसी दूरी जैसे नियम-कायदे न मानने की शिकायत की थी। फिर भी ध्यान नहीं दिया गया।

नक्सल गतिविधि में शामिल होने के सबसे बुजुर्ग आरोपी

महाराष्ट्र के पुणे स्थित भीमा-कोरेगांव में 31 दिसंबर 2017 को यलगार परिषद की बैठक हुई थी। इसमें नेताओं ने कथित तौर पर भड़काऊ भाषण दिए थे। इनमें स्टेन स्वामी का भी नाम था। एक जनवरी 2018 को इलाके में हिंसा भड़क गई। एनआईए ने स्वामी को अक्टूबर-2020 को झारखंड से गिरफ्तार किया व गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम कानून की सख्त धाराओं में आरोप दर्ज किए। वे देश के संभवत: सबसे बुजुर्ग आरोपी थे, जिन पर नक्सली गतिविधि में शामिल होने के आरोप लगे थे।

समय से स्वास्थ्य सेवाएं नहीं दी, केंद्र सरकार जवाब दे- हेमंत सोरेन

फादर ने आदिवासी अधिकारों के लिए काम करते हुए पूरा जीवन समर्पित कर दिया। केंद्र जवाब दे कि उन्हें समय पर उचित स्वास्थ सेवाओं से क्यों वंचित रखा गया, जिससे उनकी मौत हो गई।