पानी की कमी हुई तो अकेले खोद डाला तालाब, पढ़ें धनबाद के वाटर मैन की खबर
Jharkhand Dhanbad News धनबाद के महरायडीह गांव के भोलानाथ के सभी कायल हो गए हैं। चार साल की अथक मेहनत से इन्होंने एक तालाब बनाया। अब दूसरा खोदने में जुटे हैं। इससे गांव में पानी की समस्या काफी हद तक दूर हो गई है।
धनबाद का निरसा प्रखंड। यहां के महरायडीह गांव में रहते हैं किसान भोलानाथ सिंह। अब 60 वर्ष के हो चुके हैं, लेकिन उत्साह नौजवानों सा है। जिद, जुनून और धुन के पक्के भोलानाथ बोलने से ज्यादा काम करने में भरोसा रखते हैं, इसलिए ज्यादा बातें नहीं करते, अपने काम में लगे रहते हैं। उन्होंने अपने गांव में पानी का संकट देखा तो इसका समाधान ढूंढने में लग गए। ढाई दशक पहले एक दिन बहुत सोच-विचार कर इस नतीजे पर पहुंचे कि बारिश में व्यर्थ बह जाने वाली पानी सहेज कर वह पूरे गांव के किसानों के लिए पानी का इंतजाम कर सकते हैं।
इस पर उन्होंने गांव के लोगों से बात की, लेकिन लोगों ने इसे बहुत गंभीरता से नहीं लिया। इसके बाद भोलानाथ अकेले ही पानी के लिए पसीना बहाने लगे। उनके पास खेती लायक थोड़ी जमीन है। इसी के एक हिस्से पर उन्होंने अकेले ही तालाब खोदना शुरू किया। वह रोज सुबह घर से कुदाल-फावड़ा लेकर निकलते और दिनभर तालाब खोदने के बाद शाम ढलने तक वापस आते। इस क्रम में कई बार घरवालों से लेकर समाज और गांव के लोगों ने उनका मजाक भी उड़ाया, लेकिन वह तनिक भी नहीं डिगे।
रंग लाई मेहनत, अब खोद रहे दूसरा तालाब
भोलानाथ ने चार साल 3 महीने की हाड़तोड़ मेहनत कर 1998 में 50 फीट व्यास का तालाब तैयार कर लिया। तालाब तैयार हुआ तो लोगों ने उनकी मेहनत की खुले दिल से सराहना की। साथ ही उनकी मेहनत और जुनून के कायल हुए। आज फसलों की सिंचाई से लेकर अन्य कार्यों के लिए इस तालाब का उपयोग पूरा गांव करता है। भोलानाथ को इस बात की संतुष्टि रहती है कि उनकी मेहनत काम आई। तालाब की वजह से आसपास का जलस्तर भी पहले से बेहतर हुआ है। एक तालाब खोदने में सफल होने के बाद भोलानाथ अब अपने खेत में दूसरा तालाब खोदने में जुट गए हैं। इस बार तालाब 100 फीट व्यास का है, लेकिन इसकी खोदाई भी वह अकेले अपने दम पर कर रहे हैं। मकसद यही कि गांव व खेतों में बारिश का पानी व्यर्थ न बह जाए।
पानी लाने दो किलोमीटर दूर जाते थे गांव के लोग
भोलानाथ बताते हैं कि ढाई दशक पहले 100 लोगों की आबादी वाले इस गांव में पानी का घनघोर संकट था। इससे उलट बारिश के दिनों में पानी बेकार बहता था। गांव के लोग दो किलोमीटर दूर तालाब पर स्नान को जाते व वहां से पानी लाते। मैं अक्सर इस संकट का समाधान करने के बारे में सोचता था। एक दिन मन में ख्याल आया कि क्यों न जल संचय करूं। इसके बाद 1994 में अकेले ही घर के समीप एक तालाब की खोदाई शुरू कर दी। किसी का साथ नहीं मिला, लेकिन मैं अपने काम में लगा रहा और चार साल तक मुड़कर नहीं देखा। कुदाल-फावड़ा चलाते-चलाते हाथों में छाले पड़ जाते थे तो कुछ दिन छाले ठीक होने का इंतजार करता।
मेहनत रंग लाई और देखते ही देखते तालाब तैयार हो गया। आज यह तालाब पूरे गांव के लोगों के काम आ रहा है। करीब ढाई दशक पहले बना यह तालाब गर्मी में भी नहीं सूखता। गांव के सभी लोग इसका इस्तेमाल करते हैं। अब एक और तालाब खोदने में लगा हूं। दूसरा तालाब भी अपने जीते जी तैयार कर लूंगा। रोज चार से छह घंटे का समय नए तालाब की खोदाई में बिता रहा हूं। भोलानाथ कहते हैं कि पानी को सहेजने का काम हर इंसान को करना चाहिए। यह तो अमृत है, इसे व्यर्थ न बहने दें। अब गांव में चापाकल भी लग गया है, लेकिन लोगों के लिए पानी का बड़ा स्रोत आज भी तालाब ही है। तालाब के कारण आसपास के इलाके का जलस्तर ठीक रहता है।
मेरी मेहनत सबके काम आए, इससे अच्छी बात और क्या होगी
भोलानाथ ने बताया कि उनके चार बेटे किशोर, दीनानाथ, लक्ष्मण व पंचानंद, सबकी बहुएं और बाल-बच्चे उनके साथ रहते हैं। तीन बेटियां भी हैं, जिनकी शादी हो गई है। लड़के मजदूरी व किसानी करते हैं। उनके पास अभी तालाब खोदने के अलावा कोई काम नहीं है। मेहनत करने की आदत है। इसलिए इसमें जुटा रहता हूं। मेरी मेहनत सबके काम आए, इससे अच्छी और क्या बात होगी।
भोलानाथ पर ग्रामीणों को गर्व
एक समय था जब कई ग्रामीण भोलानाथ को देख कर हंसते थे। कहते थे, इसका दिमाग खिसक गया है। लोगों को विश्वास नहीं था कि वह अकेले तालाब खोद सकेंगे। जब तालाब बनकर तैयार हो गया तो सभी उनकी मेहनत और लगन के कायल हुए। गांव के शिवकुमार सिंह, वीरेंद्र सिंह, बीरबल सिंह, गोपाल सिंह कहते हैं कि जल संरक्षण के प्रति ऐसे जुनून को वह सलाम करते हैं। भोलानाथ के जुनून से सबको सबक लेनी चाहिए।
पानी बचाना हम सबकी जिम्मेदारी है, यह सीख हमलोगों को भोलानाथ से मिली। हम सब उनको जलदूत की संज्ञा देते हैं। वहीं भोलानथ के चारों बेटे किशोर, दीनानाथ, लक्ष्मण व पंचानंद कहते हैं कि हम पहले समझ नहीं सके कि पिता का उद्देश्य कितना बड़ा है। इसलिए उन्हें सहयोग नहीं कर सके। उन्होंने कभी सहयोग मांगा भी नहीं। खुद जुटे रहे। अब समझ में आ रहा है कि उनकी सोच कितनी बड़ी है। हमारी ख्वाहिश है कि पिता का मकसद जल्द पूरा हो।