संडे बाइस्कोप: जब मिथुन का हुआ नरपिशाचों से ये खतरनाक मुकाबला, साथ में चार और फिल्मों के 40 किस्से
ये हफ्ता सिनेमा का हफ्ता है। पहले ही दिन यश चोपड़ा का जन्मदिन, सोमवार को लता मंगेशकर की सालगिरह होगी। फिर महमूद, एस डी बर्मन और ऋषिकेश मुखर्जी की यादों का सिलसिला भी हमें हिंदी सिनेमा के बीते कल की तरफ ले ही जाएगा। इस सबके बीच याद आती रहती हैं, वे फिल्में जिन्होंने हिंदी सिनेमा को किसी मोड़ पर, किसी रास्ते में कोई न कोई शक्ल देने का जतन जरूर किया है। 70, 80 और 90 के दशक के सिनेमा के इस सफर पर बीते हफ्ते मैंने जिन फिल्मों के किस्से आपको सुनाए, उन्हें एक साथ एक ही गुलदस्ते में फिर से पिरो लाया हूं, खास आपके लिए। ‘बाइस्कोप’ को आपका प्यार लगातार मिल रहा है, इसके लिए मैं आपका दिल से आभारी हूं। सिलसिला जारी है.. अगली स्लाइड देखें
मिथुन और रंजीता की हिट जोड़ी
फिल्म ‘भयानक’ अपने समय के समय से आगे की हॉरर फिल्म है। उस दौर में रामसे बंधुओं का बोलबाला था, और तब रक्तपिपासु नरपिशाचों पर फिल्म बनाना ही दूर की कौड़ी था। इसके बावजूद निर्देशक एस यू सैयद ने इस पर काम किया और ये अनोखी फिल्म बनाई। यश चोपड़ा की फिल्म ‘इत्तेफाक’ में सिनेमैटोग्राफर केजी के असिस्टेंट रहे सैयद ने अपनी पहली फिल्म राकेश रोशन और रीना रॉय के साथ बनाई, जिसका नाम था ‘गूंज’। दूसरी फिल्म में ही उन्हें मिथुन और रंजीता मिल गए। रंजीता ने ये फिल्म मिथुन के कहने पर की, इससे पहले दोनों ‘सुरक्षा’ के लिए साथ काम कर चुके थे। रंजीता उन दिनों मिथुन से बड़ी स्टार हुआ करती थीं। पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट से एक्टिंग का कोर्स करके निकलीं रंजीता की पहली ही फिल्म ‘लैला मजनू’ सुपर डुपर हिट रही थी। अबरार अलवी की लिखी इस फिल्म ने रंजीता को शोहरत भी दी, इज्जत भी दी और खूब पैसा भी दिया। लेकिन, चूंकि वह किसी फिल्मी खानदान से नहीं थीं और न ही उनका कोई गॉडफादर था तो पहली फिल्म में ऋषि कपूर के साथ जोड़ी बनाने के बावजूद उन्होंने आगे मिथुन के साथ अपना करियर सुरक्षित समझा। दोनों की जोड़ी हिंदी सिनेमा की हिट जोड़ियों में मानी जाती है।
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सैफ और अक्षय की गजब केमिस्ट्री
निर्देशक नरेश मल्होत्रा को फिल्म ‘ये दिल्लगी’ यश चोपड़ा ने उनसे फिल्म ‘डर’ का पूरा सेटअप ले लेने के बाद दी थी। कम लोगों को ही पता होगा कि फिल्म ‘डर’ की पूरी कहानी और कलाकारों पर पहला काम फिल्म एडीटर से डायरेक्टर बने नरेश मल्होत्रा ने ही किया था। ‘ये दिल्लगी’ के कुछ ही हफ्तों बाद रिलीज हो गई थी फिल्म ‘मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी’ और इसी फिल्म के बाद लोगों ने सैफ अली खान को पहचानना भी शुरू कर दिया। सैफ और अक्षय ने इसके बाद फिल्म ‘तू चोर मैं सिपाही’, ‘कीमत’ ‘आरजू’ और ‘टशन’ में भी साथ काम किया है। लेकिन, फिल्म ‘मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी’ की रिलीज के बाद सैफ अली खान के खिलाफ जो एफआईआर दर्ज हुई उसने सैफ के करियर पर बहुत बुरा असर डाला। फिल्म ‘मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी’ के बाद फिल्म ‘कच्चे धागे’ उनकी अगली हिट फिल्म रही और इस बीच उनके खाते में बैक टू बैक 12 फ्लॉप फिल्में दर्ज हुईं। ये इनके करियर का वैसा ही कुछ दौर रहा, जैसा फिल्म ‘रेस 2’ के बाद सीधे फिल्म ‘तानाजी’ के हिट होने का रहा।
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हिंदी सिनेमा की मनमोहक ‘गुड्डी’
बीती सदी के महानायक रहे अमिताभ बच्चन अपनी पत्नी जया बच्चन से उम्र में पांच साल बड़े हैं। करियर में दो साल सीनियर हैं। लेकिन, स्टार बनने के मामले में वह जया से जूनियर ही रहे। अमिताभ बच्चन जब अपने प्रिय निर्देशक ऋषिकेष मुखर्जी की फिल्म ‘आनंद’ में बाबू मोशाय का रोल पाकर मन ही मन खुश हो रहे थे कि अब शायद उनका नाम चमक जाएगा, गीतकार गुलजार के साथ ऋषिकेश मुखर्जी एक दिन बंबई (अब मुंबई) से कार लेकर निकले और जा पहुंचे जया भादुड़ी से मिलने, जो उन दिनों पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट में एक्टिंग की पढ़ाई कर रही थीं। जया को फिल्म इंस्टीट्यूट के मुखिया का बुलावा पहुंचा। वह दफ्तर में आईं तो वहां ऋषिकेश मुखर्जी और गुलजार को पाया। ये दोनों वहां पहुंचे थे महान निर्देशक सत्यजीत रे की फिल्म ‘महानगर’ देखकर। अपनी अगली फिल्म के लिए इन्हें ऐसी ही किसी मासूम लड़की की तलाश थी जो ‘बोले रे पपीहरा..’ गाए तो परदे पर एक कामुक युवती लगे और ‘हमको मन की शक्ति देना...’ गाए तो बिल्कुल स्कूल की बच्ची भी लगे। इसी रोल के लिए डिंपल कपाड़िया का फोटो भी ऋषिकेष मुखर्जी तक पहुंचा, लेकिन ऋषिकेश को जो गुड्डी चाहिए थी, वह उन्हें जया भादुड़ी में ही मिली। ‘गुड्डी’ हिंदी सिनेमा में जया की पहली फिल्म है।
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देश का अपना गजलजीत
गजल को रईसों की महफिलों से निकालकर आम इंसान के ड्रॉइंग रूम में रखे रहने वाले टेप रिकॉर्डर तक पहुंचा देने का श्रेय देश में अगर किसी को जाता है तो वह हैं जगजीत सिंह। लेकिन, जगजीत सिंह को गजल गायक से फिल्म संगीतकार बना देने का श्रेय जिस शख्स को जाता है, उसे शायद आप न जानते हों? मैं बात कर रहा हूं 25 सितंबर 1981 को रिलीज हुई फिल्म ‘प्रेम गीत’ की, जिसका जगजीत सिंह का ही गाया इंदीवर का गीत ‘होठों से छू लो तुम, मेरा गीत अमर कर दो...’ अब भी प्रेमियों के बीच प्रेम को प्रकट करने का सबसे सुंदर गीत माना जाता है। शशि भूषण की लिखी कहानी पर अभिनेता पुनीस इस्सर के पिता सुदेश इस्सर ने ये कमाल फिल्म बनाई। फिल्म की कहानी बहुत अलहदा तो नहीं थी लेकिन फिल्म में एक नई हीरोइन की मौजूदगी ने लोगों की फिल्म में उत्सुकता जरूर जगाई। कुछ ही दिन पहले मैंने जब ऋषिकेश मुखर्जी निर्देशित फिल्म ‘अच्छा बुरा’ का बाइस्कोप लिखा था तो बताया था कि चर्चित अभिनेता जगदीश राज की बेटी अनीता को पहला मौका उसी फिल्म में मिला था। लेकिन, अनीता राज की रिलीज होने वाली पहली फिल्म ‘प्रेम गीत’ ही रही।
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सुपरस्टार का चोला उतार काम किया काका ने
सबको पता है कि राजेश खन्ना ने साल 1969 से लेकर साल 1971 तक 15 सोलो हिट फिल्में दीं। अब न तो किसी हीरो की सिर्फ तीन साल में 15 फिल्में रिलीज होने वाली हैं, और न ही ये रिकॉर्ड टूटने वाला है। हां, आयुष्मान खुराना ने बीच में लगातार आधा दर्जन हिट फिल्में लगातार देकर उम्मीद जताई थी लेकिन ‘गुलाबो सिताबो’ तक आते आते उनके नमक का आयोडीन भी हवा में उड़ गया। अब वह दुनिया की सौ प्रभावशाली हस्तियों में तो शामिल हैं, लेकिन हिंदी सिनेमा के प्रभावशाली हीरो कितने बचे हैं, इस पर बहस उनकी अगली फिल्म से जल्द शुरू होने वाली है। राजेश खन्ना और आयुष्मान खुराना दोनों एक ही इलाके के हीरो हैं। दोनों ने कथानक आधारित फिल्में करने का सबक अपनी फ्लॉप फिल्मों से ही सीखा। राजेश खन्ना की गाड़ी जब तक सरपट दौड़ रही थी, रूपेश कुमार जैसे लोग ‘ऊपर आका, नीचे काका’ जैसे जुमले सुनाकर उन्हें चने के पेड़ पर चढ़ा ही रहे थे, खुद वह भी निश्चिंत थे। लेकिन, अमिताभ बच्चन की साल 1973 में हिट हुई फिल्म ‘जंजीर’ ने हिंदी सिनेमा में रोमांस का तंबू समेट दिया। राजेश खन्ना के पास उन्हीं दिनों पहुंचे निर्देशक बासु भट्टाचार्य, जिनके पास कहानी तो लाजवाब थी, पर पैसे नहीं थे। और, राजेश खन्ना के पास पैसे बेहिसाब थे, पर खुद को फिर से साबित करने वाली फिल्म नहीं थी। बस, यहीं से नींव पड़ी फिल्म ‘आविष्कार’ की।
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