हेमंत सोरेन सरकार को अस्थिर करने की रची जा रही साजिश का भंडाफोड़, असमंजस में कांग्रेस
झारखंड प्रदेश कांग्रेस में अभी सबकुछ ठीक नहीं ही चल रहा है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और वित्त मंत्री डा. रामेश्वर उरांव के खिलाफ कुछ विधायक लगातार मोर्चा खोले हुए हैं। उन पर अध्यक्ष पद छोड़ने का दबाव है।
एक निर्दलीय विधायक के साथ मिलकर दो कांग्रेसी विधायकों द्वारा हेमंत सोरेन सरकार को अस्थिर करने की रची जा रही साजिश का भंडाफोड़ होने के बाद राज्य की राजनीति में बेशक कोई भूचाल न आया हो, लेकिन कांग्रेस में अंदरखाने चल रहा घमासान पूरी तरह सतह पर आ गया है। फिलहाल कांग्रेस की स्थिति सांप-छछूंदर वाली हो गई है। न तो वह इस साजिश से पूरी तरह इन्कार कर पा रही है और न ही स्वीकार करने की स्थिति में है।
कांग्रेस इसका ठीकरा विपक्षी भाजपा पर फोड़कर उसे घेरने की नाकाम कोशिश तो कर रही है, लेकिन पार्टी विधायकों को लेकर वह पूरी तरह चुप्पी साधे हुए है। इतना ही नहीं, पार्टी का एक धड़ा आरोपित विधायकों के साथ खड़ा हो गया है और उन्हें पूरी तरह पाक-साफ बता रहा है। रांची पुलिस का विशेष जांच दल (एसआइटी) इस मामले की तफ्तीश में जुटा है। हो सकता है इस जांच का अंतिम परिणाम आने में काफी समय लग जाए, लेकिन इतना जरूर है कि अब सरकार पर दबाव बनाने की रणनीति के तहत कांग्रेसी विधायकों की बार-बार दिल्ली दौड़ पर कुछ समय के लिए अंकुश लग सकता है।
झारखंड प्रदेश कांग्रेस में अभी सबकुछ ठीक नहीं ही चल रहा है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और वित्त मंत्री डा. रामेश्वर उरांव के खिलाफ कुछ विधायक लगातार मोर्चा खोले हुए हैं। उन पर अध्यक्ष पद छोड़ने का दबाव है। उन पर यह भी आरोप लगते रहे हैं कि वह पार्टी विधायकों की बात को सरकार के समक्ष मजबूती से नहीं रख रहे हैं। पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़ की तरह यहां अभी आमने-सामने दो फ्रंट नहीं बने हैं, लेकिन अलग-अलग ग्रुप में कई विधायक दिल्ली के चक्कर लगाकर केंद्रीय नेतृत्व के समक्ष अपना दुखड़ा सुना चुके हैं। जब भी कांग्रेसी विधायकों का कोई ग्रुप दिल्ली जाता है राज्य में हलचल शुरू हो जाती है। कांग्रेस विधायकों की दिल्ली यात्रओं को यहां राजनीतिक गलियारे में हमेशा शक की निगाह से ही देखा जाता रहा है।
सरकार गिराने की साजिश के शक में रांची पुलिस ने जिन तीन आरोपितों अभिषेक दुबे, अमित सिंह व निवारण महतो को गिरफ्तार किया है उनके साथ दिल्ली के विवांता होटल की सीसीटीवी फुटेज में झारखंड कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष व विधायक डा. इरफान अंसारी, उमाशंकर अकेला और निर्दलीय विधायक अमित यादव दिखे हैं। गिरफ्तार आरोपितों के बयान के बाद भी अभी इन तीनों विधायकों का नाम प्राथिमिकी में दर्ज नहीं है। सीसीटीवी फुटेज में महाराष्ट्र के जय कुमार बेलखेड़े उर्फ बालकुडे व महाराष्ट्र के ही भाजपा नेता व पूर्व मंत्री चंद्रशेखर राव बावनकुले व चरण सिंह भी इन विधायकों के साथ दिखे हैं। झारखंड के तीनों विधायक और आरोपित 15 जुलाई को इंडिगो की फ्लाइट से ही दिल्ली गए थे। एक आरोपित के मुताबिक सभी का यात्र टिकट जय कुमार बेलखेड़े ने कटवाया था। इस साजिश पर से पर्दा उठने के बाद भाजपा नेता चंद्रशेखर राव बावनकुले मीडिया के समक्ष आकर इसे बेबुनियाद बता चुके हैं। उनका कहना है कि झारखंड सरकार को गिराने की न तो उनकी हिम्मत है और न ही औकात।
अब बड़ा सवाल यह है कि क्या वाकई ये तीन विधायक सरकार को अस्थिर करने में सक्षम थे? देखा जाए तो 81 सदस्यीय झारखंड विधानसभा में बहुमत के लिए 41 विधायकों के समर्थन की जरूरत है। हेमंत सोरेन की गठबंधन सरकार को 52 विधायकों का समर्थन हासिल है। इसमें झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के 30, कांग्रेस के 16, राष्ट्रीय जनता दल का एक, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (एनसीपी) का एक और दो निर्दल विधायकों विनोद सिंह व सरयू राय के साथ-साथ कांग्रेस में विलय का इंतजार कर रहे बंधु तर्की व प्रदीप यादव शामिल हैं। सरकार गिराने के लिए कम से कम 12 विधायकों की जरूरत होगी। यह तभी संभव है जब कांग्रेस के एक तिहाई विधायक टूटकर नया धड़ा बना लें और भाजपा को समर्थन दे दें।
यह सोलह आना सच है कि सरकार में मंत्री बने कांग्रेस कोटे के चार विधायकों के अलावा अन्य सभी कांग्रेसी विधायक किसी न किसी कारण से अपनी नाखुशी जाहिर करते रहते हैं। इनमें ज्यादातर की नजर कैबिनेट में खाली एक सीट पर लगी हुई है। झामुमो ने कुछ दिनों पहले स्पष्ट कर दिया था कि चुनाव पूर्व हुए समझौते के मुताबिक खाली बर्थ पर उसका हक है। कांग्रेसी बेवजह सपने न पालें। उधर कांग्रेस विधायक 20 सूत्रीय कमेटियों और निगमों-बोर्डो के अध्यक्ष पद पर भी नजर जमाए हुए हैं। झारखंड में गठबंधन की सरकार के पौने दो साल होने को आ रहे हैं और उनका धैर्य अब जवाब दे रहा है। जब हंगामा मचता है तो कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व जल्द से जल्द इन खाली पदों पर नियुक्तियों का सुर्रा छोड़कर सभी को शांत करवा देता है। झामुमो भी इससे खुश है। उसे भी पता है कि सभी को मलाइदार पद चाहिए और यह संभव नहीं है।