तेजस्वी ने चिराग को दिया ये बड़ा ऑफर, 2010 की दिलाई याद, एलजेपी में टूट के लिए नीतीश को ठहराया जिम्मेदार
लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) में चल रहा सियासी संग्राम थमने का नाम नहीं ले रहा है। इसी बीच नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव बुधवार को पटना पहुंचे। राजधानी पहुंचते ही उन्होंने चिराग पासवान को साथ आने का ऑफर देते हुए याद दिलाया कि कैसे लालू प्रसाद ने 2010 में रामविलास पासवान को राज्यसभा के लिए नामांकित होने में मदद की थी, जब लोजपा के पास कोई सांसद या विधायक नहीं था।
तेजस्वी ने रामविलास को ऐसे समय पर यह ऑफर दिया है जब चिराग पांच जुलाई से हाजीपुर से अपनी बिहार यात्रा शुरू कर खोई हुई राजनीतिक जमीन फिर से हासिल करने की तैयारी कर रहे हैं। उनके चाचा पशुपति पारस के गुट का लोजपा पर कब्जा हो गया है। पटना पहुंचते ही तेजस्वी ने कहा, 'चिराग भाई तय करें कि उन्हें आरएसएस के बंच ऑफ थॉट्स के साथ रहना है या संविधान निर्माता बाबा साहब ने जो लिखा है, उसका साथ देंगे।'
जदयू का नाम लिए बिना तेजस्वी ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए उन्हें लोजपा में मचे घमासान के लिए जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा, 'कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो षड्यंत्र रचने में माहिर होते हैं। इसके बाद ये लोग राज्य में राजनीतिक घटनाओं के बारे में अनभिज्ञता भी जताते हैं।' तेजस्वी नीतीश के उस बयान का जिक्र कर रहे थे, जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्हें लोजपा में जारी घमासान की जानकारी नहीं है।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा, 'इसी अज्ञानता के कारण ही बिहार इस तरह की स्थिति में आ गया है। यहां बेरोजगारी और भुखमरी हो गई है। आरजेडी ने 2010 में पासवान जी को राज्यसभा के लिए मनोनीत करने में मदद की थी जब लोजपा के पास कोई सांसद या विधायक नहीं था।' चिराग ने जहां तेजस्वी की टिप्पणी पर अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, वहीं लोजपा नेता ने भाजपा से अपने मोहभंग के स्पष्ट संकेत दिए हैं।
चिराग ने अपनी पार्टी को तोड़ने के लिए नीतीश कुमार को दोषी ठहराया था। उन्होंने भाजपा की चुप्पी पर हैरानी जताई है। तेजस्वी यादव के करीबी नेता ने कहा कि 'तुरंत नहीं' लेकिन दोनों के एक साथ आने का राजनीतिक तर्क तो है। पूर्व में भी रामविलास जी ने 2002 के बाद मोदी के साथ मतभेदों के कारण अटल बिहारी वाजपेयी कैबिनेट को छोड़ दिया था।
चिराग ने ही भाजपा का पूरा समर्थन किया था। अगर वह बीजेपी को नुकसान पहुंचाना चाहते और पूरे बिहार से लड़ते तो नतीजे कुछ और होते। इसलिए अब अगर वह खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं और बिहार में गठबंधन के बिना राजनीति नहीं हो सकती है, हमने अतीत में भी एक साथ काम किया है।
नेता ने कहा, 'दोनों अपने-अपने वोटबैंक पर अधिकार रखते हैं और अगली चुनाव प्रक्रिया से पहले उनके पास समय है। दोनों नेताओं और दो मूल आधारों ने एक साथ काम किया है। पासवान और यादव राजनीतिक जातियां हैं जो मुखर हैं और विरोधात्मक नहीं हैं। चिराग और तेजस्वी के बीच अच्छा रिश्ता है। बेशक चिराग एनडीए के करीबी हैं लेकिन ऐसा नहीं है कि दोनों नेताओं में बिलकुल बात नहीं होती।'